Friday 2 August 2013

RTI से बाहर रहेंगे दल, दागी कौन...संसद करेगी तय

Image Loadingदागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था राजनीतिक दलों को रास नही आई है। पार्टियों के सांसदों ने गुरुवार को हुई एक सर्वदलीय बैठक में कोर्ट के फैसलों पर असहमति जताई। इस बीच आम सहमति बनी कि ‘दागी नेता’ किसे कहा जाएगा, यह कोर्ट नहीं बल्कि संसद तय करेगी। मानसून सत्र से पहले आयोजित इस बैठक में संसद की सर्वोच्चता की गिरती साख पर चिंता जताई गई।
सभी पार्टियों के सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का मुद्दा उठाया, जिसमें दो साल की सजा पाने वाले किसी भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता रद्द होने व जेल में बंद नेताओं को चुनाव लड़ने से वंचित करने संबंधी व्यवस्था दी गई है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों की मांग पर सरकार संसद के मानसून सत्र में जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सभी दलों की मांग के बाद सरकार इसी सत्र में संसद और विधायिका की सर्वोच्चता कायम रखने के लिए बिल लेकर आएगी। इसके लिए सत्र का समय बढ़ाया जा सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि सांसदों के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। कई नेताओं ने आरक्षण में अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए कोई रास्ता निकालने की मांग रखी। यह मांग भी उठी कि हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति तंत्र में भी बदलाव किया जाए। बैठक में तेलंगाना का मुद्दा भी उठा। भाजपा ने नए राज्य गठन का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार इसी सत्र में विधेयक लाए। क्योंकि यह मांग काफी समय से लंबित है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि सरकार खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण विधेयक पर पार्टी की चिंताओं पर विचार करें। आरटीआई से बाहर रहेंगे दल
देश की राजनीतिक पार्टियां अब सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून से बाहर रहेंगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए कानून में संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब सरकार को संसद के मानसून सत्र में इस विधेयक को पेश करना होगा। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। इस दौरान आरटीआई संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को हरी झंड़ी दिखाई गई। असल में सरकार इस विधेयक के जरिए सार्वजनिक इकाइयों की परिभाषा बदलना चाहती है, ताकि सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा जा सके। यूं तो सरकार ने आरटीआई को जनता के हाथ में ताकत देने का सबसे बड़ा हथियार बताया था, लेकिन खुद इसके दायरे से बाहर रहने में जुटी रही। सरकार इस मुद्दे पर पहले ही सभी दलों की राय ले चुकी है। भाजपा ने इस प्रस्ताव पर संसद में सरकार को समर्थन देने का भरोसा दिलाया है। सीआईसी ने भी लगाए थे आरोप
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल और अनिल बैरवाल ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराकर राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के तहत लाने की मांग की थी। इस मामले पर सुनवाई के दौरान पिछले दिनों सीआईसी ने कहा था कि छह राष्ट्रीय दलों (कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, बसपा और राकांपा) को केंद्र सरकार की ओर से परोक्ष रूप से आर्थिक मदद मिलता है। ऐसे में पार्टियों को जनसूचना अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए, क्योंकि आरटीआई कानून के तहत उनका स्वरूप सार्वजनिक इकाई का है। सीआईसी ने पार्टियों को जन सूचना अधिकारी और अपीली अधिकारी की नियुक्ति के लिए छह सप्ताह का समय दिया था। हालांकि इस दौरान केवल भाकपा ही एक ऐसी पार्टी रही, जिसने आरटीआई के जरिए मांगी गई सूचना आवेदक को मुहैया कराई।

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