Friday 2 August 2013

सर्वशक्तिमान CBI निदेशक घातक हो सकता है: केन्द्र सरकार

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केन्द्रीय जांच ब्यूरो को स्वायत्ता प्रदान करने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में टकराव की भूमिका तैयार हो रही है। केंद्र सरकार ने कोर्ट के सुझाव को दरकिनार करते हुए शुक्रवार को उसे यह सुझाव दिया।
केन्द्र सरकार ने सीबीआई के निदेशक का न्यूनतम कार्यकाल तीन साल करने के ब्यूरो के सुझाव को दरकिनार करते हुये कहा है कि बगैर किसी नियंत्रण और असंतुलन के सर्वशक्तिमान निदेशक के निरंकुश होने का खतरा होगा। जांच एजेन्सी के लिये जवाबदेही आयोग के सीबीआई के विरोध को अस्वीकार करते हुये केन्द्र सरकार ने एक हलफनामे में कहा है कि एक बाहरी, स्वतंत्रता निगरानी तंत्र की आवश्यकता है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने वरिष्ठ नौकरशाहों पर मुकदमा चलाने की अनुमति के लिये केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र समिति गठित करने के सीबीआई के तर्क को भी ठुकरा दिया है। सरकार का यह दृष्टिकोण इस जांच एजेन्सी की स्वायत्ता सुनिश्चित करने के बारे में उच्चतम न्यायालय को दिये गये आश्वासन पर भी सवाल उठाता है। शीर्ष अदालत ने सीबीआई को कैद में तोते के रूप में परिभाषित करते हुये कहा कि उसे राजनीतिक सत्ता के हस्तक्षेप और बाहरी प्रभावों से मुक्त कराना होगा। केन्द्र सरकार ने न्यायालय में दाखिल 22 पेज के हलफनामे में कहा है, समुचित नियंत्रण और संतुलन के बगैर ही सीबीआई के निर्देशक का सर्वशक्तिमान होना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा और इसके हमेशा ही दुरुपयोग का खतरा बना रहेगा और यह सभी स्तरों पर इस संगठन के स्वतंत्र और निर्भय होकर काम करने के अनुकूल नहीं होगा। केन्द्रीय जांच ब्यूरो को स्वायत्ता देने का मसला कोयला खदान आवंटन कांड की जांच रिपोर्ट राजनीतिक आकाओं से साझा करने को लेकर उठा था। कोयला कांड की जांच की निगरानी कर रहा उच्चतम न्यायालय अब छह अगस्त को वकील मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिका में सीबीआई और केन्द्र सरकार के दृष्टिकोण को परखेगी। ए वर्ग के अधिकारियों का अनुशासनात्मक नियंत्रण पूरी तरह से जांच ब्यूरो के निदेशक को सौंपने के सीबीआई के आग्रह का विरोध करते हुये केन्द्र ने कहा है कि कोई नयी परंपरा शुरू करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे कटुता बढ़ेगी और ऐसी स्थिति वाले दूसरे संगठनों में असंतोष पनपेगा। सरकार ने हलफनामे में कहा है, ए वर्ग के अधिकारियों का अनुशासनात्मक नियंत्रण निदेशक को सौपना सिर्फ कानून के खिलाफ ही नहीं होगा बल्कि यह प्रशासन के उन प्रतिपादित सिद्धांतों के भी विरूद्ध होगा जिनमें अधिकारियों के हितों की रक्षा की व्यवस्था है ताकि वे बगैर किसी भय या पक्षपात के अपना काम कर सकें। सीबीआई के कामकाज पर निगाह रखने के लिये एक बाहरी व्यवस्था की वकालत करते हुये हलफनामे मे कहा गया है कि यह बहुत जरूरी है, क्योंकि इस एजेन्सी का सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर होना और बगैर किसी जवाबदेही का प्राधिकरण रहना खतरनाक हो सकता है। हलफनामे में कहा गया है कि सीबीआई की आंतरिक सतर्कता की व्यवस्था उसके ही अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों पर नतीजे नहीं दे सकेगा, क्योंकि जांच ब्यूरो का सतर्कता अधिकारी तो एजेन्सी का ही पूर्णकालिक कर्मचारी है और वह निदेशक की भूल चूक के खिलाफ सवाल करने की स्थिति में नहीं होगा। हलफनामे के अनुसार पहले भी जांच एजेन्सी के अधिकारियों के खिलाफ वसूली और रिश्वत के आरोपों की जांच में लीपा पोती का पता चला है। ऐसी स्थिति में एक बाहरी जवाबदेही आयोग ही इस जांच एजेन्सी की निष्पक्षता को बढ़ाने में मददगार होगा। केन्द्र सरकार ने सीबीआई के निदेशक का न्यूनतम कार्यकाल तीन साल करने और इसमें अधीक्षण स्तर पर काम कर चुके अधिकारी को ही इसका मुखिया नियुक्त करने के जांच ब्यूरो के प्रस्ताव का भी विरोध किया है। सरकार ने हलफनामे में कहा है, वैसे भी दो साल का न्यूनतम कार्यकाल संगठन के दीर्घकालीन दृष्टिकोण में बाधक नहीं होगा। यदि आवश्यकता हो तो यह लंबी अवधि को भी बाधित नहीं करता है। भारत सरकार के सभी वरिष्ठ महत्वपूर्ण पदों का कार्यकाल इसी तरह का है। मुकदमा चलाने के लिये मंजूरी के सवाल पर केन्द्र सरकार ने कहा है कि कोई अन्य समिति गठित करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रशासनिक मंत्रलय को ही किसी भी परिस्थिति में अपने अधिकारी की संलिप्तता पर स्पष्ट दृष्टिकोण के बारे में बेहतर जानकारी होती है। सरकार ने उसकी मंजूरी के बगैर ही विशेष वकीलों का पैनल तैयार करने के लिये स्वायत्ता के बारे में सीबीआई के आग्रह का भी विरोध किया। हलफनामे में कहा गया है कि अभियोजन की राय को दरकिनार करने या इसमें हस्तक्षेप के लिये निदेशक को किसी भी प्रकार का अधिकार देने से इसकी निष्पक्षता से समक्षौता होगा।

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