Sunday 4 August 2013

रामलिंगम बना तेनालीराम

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Ramlingam dress Tanaliram
छह सौ साल पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर ज गह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्यायप्रियता और प्रजा से प्रेम के कारण वहां प्रजा बहुत खुश थी।
राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी हमलावर की नहीं होती थी।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गांव में एक बडम बुद्धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हंसोड़ और हाजिरजवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मजाक तेनाली गांव के लोगों को खूब भाती थी। रामलिंगम खुद ज्यादा हंसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कह देता कि सुनने वाले हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में छिपा होता था व्यंग्य और सूझ-बूझ, इसलिए वह जिसका मजाक उड़ाता, वह शख्स भी औरों के साथ खिलखिलाकर हंसने लगता था। अब तो गांव के लोग कहने लगे थे, ‘बड़ा अद्भुत है यह बालक। हमें तो लगता है कि यह रोते हुए लोगों को भी हंसा सकता है।’ रामलिंगम कहता, ‘पता नहीं, रोते हुए लोगों को हंसा सकता हूं कि नहीं, पर सोते हुए लोगों को जरूर जगा सकता हूं।’ सुनकर आसपास खड़े लोग हंसने लगे। यहां तक कि तेनाली गांव में जो लोग बाहर से आते, उन्हें भी गांव के लोग रामलिंगम के अजब-अजब किस्से और कारनामे सुनाया करते थे। सुनकर वे भी खिलखिलाकर हंसने लगते थे और कहते, ‘तब तो यह रामलिंगम सचमुच अद्भुत है। हमें तो लगता है कि यह पत्थरों को भी हंसा सकता है!’ गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, ‘भाई, हमें तो लगता है कि यह घूमने के लिए पास के जंगल में जाता है तो वहां के पेड़-पौधे और फूल-पत्ते भी इसे देखकर जरूर हंस पड़ते होंगे।’ एक बार की बात है, रामलिंगम जंगल में घूमता हुआ मां दुर्गा के एक प्राचीन मंदिर में गया। उस मंदिर की मान्यता थी और दूर-दूर से लोग वहां मां दुर्गा का दर्शन करने आया करते थे। रामलिंगम भीतर गया तो मां दुर्गा की अद्भुत मूर्ति देखकर मुग्ध रह गया। मां के मुख-मंडल से प्रकाश फूट रहा था। रामलिंगम की मानो समाधि लग गई। फिर उसने दुर्गा माता को प्रणाम किया और चलने लगा। तभी अचानक उसके मन में एक बात अटक गई। मां दुर्गा के चार मुख थे, आठ भुजाएं थीं। इसी पर उसका ध्यान गया और अगले ही पल उसकी बड़े जोर से हंसी छूट गई। देखकर मां दुर्गा को बड़ा कौतुक हुआ। वे उसी समय मूर्ति से बाहर निकलकर आईं और रामलिंगम के आगे प्रकट हो गईं। बोलीं, ‘बालक, तू हंसता क्यों है?’ रामलिंगम मां दुर्गा को साक्षात सामने देखकर एक पल के लिए तो सहम गया, पर फिर हंसते हुए बोला, ‘क्षमा करें मां, एक बात याद आ गई, इसीलिए हंस रहा हूं।’ ‘कौन सी बात? बता तो भला!’ मां दुर्गा ने पूछा। इस पर रामलिंगम ने हंसते-हंसते जवाब दिया, ‘मां, मेरी तो सिर्फ एक ही नाक है, पर जब जुकाम हो जाता है तो मुझे बड़ी मुसीबत आती है। आपके तो चार-चार मुख हैं और भुजाएं भी आठ हैं। तो जब जुकाम हो जाता होगा तो आपको और भी ज्यादा मुसीबत..!’ रामलिंगम की बात पूरी होने से पहले ही मां दुर्गा खिलखिलाकर हंस पड़ीं। बोलीं, ‘हट पगले, तू मां से भी मजाक करता है!’ फिर हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘पर आज मैं समझ गई हूं कि तुझमें हास्य की बड़ी अनोखी सिद्धि है। अपनी इसी सूझ-बूझ और हास्य के बल पर तू नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। पर एक बात याद रख, अपनी इस हास्यवृत्ति का किसी को दुख देने के लिए प्रयोग मत करना। सबको हंसाना और दूसरों की भलाई के काम करना। जा, तू राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जा। वही तेरी प्रतिभा का पूरा सम्मान करेंगे।’ उस दिन रामलिंगम दुर्गा मां के प्राचीन मंदिर से लौटा, तो उसका मन बड़ा हल्का-फुल्का था। लौटकर उसने मां को यह अनोखा प्रसंग बताया। सुनकर मां चकित रह गईं। और फिर सुबह होते-होते पूरे तेनाली गांव में यह बात फैल गई कि रामलिंगम को दुर्गा मां ने बडम अद्भुत वरदान दिया है। यह बडम नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। उसके साथ ही साथ तेनाली गांव का नाम भी ऊंचा होगा।  

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