Friday 9 August 2013

फिल्म रिव्यू- चेन्नई एक्सप्रेस: शाहरुख की इमेज को कॉमेडी के ट्रैक पर खूब दौड़ाया रोहित शेट्टी ने


नई दिल्‍ली, 8 अगस्त 2013 |

'चेन्‍नई एक्‍सप्रेस' का एक दृश्‍य
फिल्म रिव्यू: चेन्नई एक्सप्रेस
एक्टरः शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, सत्याराज, निकितन धीर, प्रियमणि
ड्यूरेशनः 2 घंटे 22 मिनट
डायरेक्टरः रोहित शेट्टी
तीन स्टार
टेन प्वाइंट रिव्यू

1. एक लड़का था. सांवला सा, औसत चेहरे और कद काठी वाला. उसने नब्बे के दशक में हमें सिखाया कि भोलेपन के साथ, सही नीयत के साथ और स्मार्टनेस के साथ प्यार करो तो उसे हासिल भी किया जा सकता है. उसने एक यकीन पैदा किया रूमानियत के इर्द गिर्द. दर्जनों फिल्में बनीं उस लड़के शाहरुख के इर्द गिर्द जिन्होंने इस फलसफे को नए नए अध्याय मुहैया कराए. 'चेन्नई एक्सप्रेस' अब अधेड़ हो चले उस लड़के की यादों को बार-बार नए ढंग से याद कराती है. फिल्म की शुरुआत में ही 'डीडीएलजे' की तर्ज पर शाहरुख ट्रेन से लटकते हैं और दरवाजे की तरफ बेतहाशा भागती दीपिका को हाथ बढ़ाते हैं. इस फिल्म में शाहरुख की कई फिल्मी छवियों को, उनके स्टाइल को, उनके गानों को बखूबी इस्तेमाल किया गया है. इसलिए शाहरुख के दीवानों को एक फिल्म में शाहरुख की जर्नी का रेफरेंस देखना लुभाता है. 2. एक और लड़का है, रोहित शेट्टी. पिता एक्शन डायरेक्टर शेट्टी थे. सो उसने जो पहली फिल्म बनाई 'जमीन', उसमें जमकर एक्शन रखा. मगर फिल्म नहीं चली. रोहित को सबक मिला कि एक्शन तो ठीक है, मगर पब्लिक को एंटरटेन करने के लिए कॉमेडी की डोज भी चाहिए. फिर सामने आई 'गोलमाल' फ्रेंचाइजी, 'बोल बच्चन' और 'सिंघम' जैसी फिल्में जिनमें इन दोनों का शानदार मेल दिखा. अच्छे गाने, सिचुएशनल कॉमेडी, एक लव स्टोरी और ऐसा एक्शन जो हीरो को हीरो बनाता है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में भी यही सब है. मगर इसमें एक चीज और जुड़ गई, जिसका जिक्र ऊपर किया गया. शाहरुख खान. ये बड़ा दांव था, जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हुआ है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में शाहरुख को रखने के फेर में वो चीज मिसिंग हो गई, जिसकी हमें आदत है. अजय देवगन का भुजा फड़काता एक्शन. इसके अलावा किरदार के ऊपर स्क्रीन इमेज भी ओवरलैप हो गई. इन सबको भूल जाएं तो रोहित शेट्टी की फिल्मों के दीवानों को निराश नहीं होना पड़ेगा.
3. 'चेन्नई एक्सप्रेस' की कहानी कुछ यूं है कि राहुल के मां पापा नहीं हैं. दादा जी थे. अब नहीं हैं वो, मगर है उसकी दादी का कहा, कि राहुल को मुंबई से रामेश्वर जाकर दादा जी की अस्थियां बहानी हैं. मगर 40 के हो गए और मस्ती के बहाने खोजते राहुल को तो दोस्तों के साथ गोवा जाना है. दादी का मन रखने के लिए वो चेन्नई एक्सप्रेस ट्रेन में सवार होता है, अगले स्टेशन पर उतरने के लिए. मगर वो उतरता है एक नई जमीन पर. दक्षिण भारत में, जिसको लेकर लाख फसाने हैं उत्तर भारतीयों के. फिल्में देखकर, किस्से सुनकर बने, बोरियत से भरे और असलियत की जमीन पर हकलाते से. बहरहाल. राहुल को ट्रेन में मिलती है घर से शादी से बचने के लिए भागी मीना. मीना के फेर में राहुल एक गांव में पहुंचता है. मीना के डॉन पिता से मिलता है. मीना के दावेदार एक पहलवान से दिखते युवक से मिलता है. भागो. बचो. रुको. फिर भागो. इस फेर में प्यार हो जाता है और आखिरी में शाहरुख की ही फिलॉस्फी में कहें तो सब ठीक हो जाता है.
4. चेन्नई एक्सप्रेस हिंदी फिल्म है. मगर इसमें किरदार और लोकेशन के चलते तमिल का भी जमकर इस्तेमाल हुआ है. ये ज्यादातर दर्शकों को हंसाता है, मगर दिल्ली की एक फिल्म देखकर निकली पंजाबी आंटी के शब्दों में कहें तो इल्ले इल्ले एक प्वाइंट के बाद समझ नहीं आता. तमिल के अलावा हिंदी जानने और न जानने को लेकर गढ़ा गया हास ज्यादातर दर्शकों को अच्छा लगता है. अगर आप अच्छे सिनेमा के शौकीन हैं, तो खुद पर तरस खा सकते हैं. मगर रोहित शेट्टी ने कभी इस ट्रिक को छुपाया भी तो नहीं. तो शिकायत कैसी.
5. फिल्म के गाने अच्छे हैं और शाहरुख की रोमांटिक फिल्मों के एलबम में कई नए नगीने जड़ते हैं. वन टू थ्री फोर में प्रियमणि ताजा दिखी हैं. तितली गाने में दीपिका कई तरह की दक्षिण भारतीय साड़ियों में फूलों के बीच महकती खुशबूदार लगी हैं. दूसरे गाने भी अच्छे हैं. मगर एक वक्त के बाद जब आपको लगता है कि अब कहानी में कुछ जोरदार होना चाहिए. गाना आ जाता है. पर शायद यही है रेगुलर मसाला हिंदी सिनेमा. जहां पर्यावरण की रक्षा का संदेश देने के लिए हीरो का हरे भरे मैदानों में मटकना मचलना लाजिमी है.
6. फिल्म हमें दक्षिण भारत की तमीज और तरीके दिखाती है. रोहित अब तक मुंबई, गोवा में अटके थे. मगर यहां एक नया भारत दिखता है. झरने, पहाड़, रंगीनियत से भरपूर गांव, खेत और समंदर. कैमरा वर्क और लोकेशन, इन दोनों मोर्चों पर फतेह हासिल हुई है फिल्म को.
7. जैसा वादा है, फिल्म में जमकर कॉमेडी है. कभी गानों को ट्विस्टेड ढंग में गाकर संदेश देने की कवायद, कभी तमिल और हिंदी के मेल से पैदा हुए हालात की कॉमेडी. इन सबका कोटा पूरा हुआ, तो बौना मिल गया, कुछ मोटे लोग आ गए और इन सबकी क्यूट लानत मलानत करने के लिए राहुल ने दारू पीकर दंगा भी कर दिया. रोहित को पता है कि सीरियस सिनेमा के लिए तमाम दिग्गज हैं, मगर पब्लिक तीन घंटे और सैकड़ों रुपये का टिकट पाकर जो करने आती है, वो है मजा. और उनकी मूवी अपने तईं खूब मजा देती है आम भारतीय दर्शक को.
8. शाहरुख खान को प्यार करते देखना भाता है. मगर यहां तो वह बिल्कुल आखिरी में एक प्रेमी के रूप में नजर आते हैं. उससे पहले वह हालात से जूझते एक आदमी हैं. ऐसे में वह कुछ नया, बेहतर नहीं कर पाते. कॉमेडी के लिहाज से कहें तो ज्यादा जमे नहीं शाहरुख. दीपिका जरूर मीना के रोल में रम सी गईं. उनके और शाहरुख के बीच की केमिस्ट्री लेकिन ज्यादा कुलबुलाहट पैदा नहीं कर पाई. शाहरुख का एक्शन भी उनकी कद काठी के चलते ज्यादा भरोसा पैदा नहीं कर पाता. बार-बार हवा में उछलकर शेर की दहाड़ के बैकग्राउंड स्कोर में झपट्टा मारते अजय याद आ रहे थे. बाकी कलाकारों को सिर्फ हंसाना था और इस काम के लिए उनके मास्टर के रूप में रोहित तैनात थे. अच्छा ये रहा कि शेट्टी टीम के रेगुलर फेस फिल्म में नहीं थे तो कुछ नयापन था.
9. फिल्म के प्रचार के दौरान दावा किया जा रहा था कि ये एक ही मुल्क में कभी राष्ट्रीयताओं के, भाषाओं के, तहजीबों के फर्क को दिखाती और फिर पाटती नजर आएगी. इसके लिए सबको पिरोने वाले धागे के रूप में चुनी गई एक प्रेम कहानी. मगर आखिरी में 'चक दे इंडिया' की सत्तर मिनट वाली स्पीच की तरह मीना के पिता के सामने राहुल की स्पीच उसी निष्कर्ष पर खत्म हुई कि प्यार की कोई बंधी हुई भाषा नहीं होती. पर ये तो हम पहले ही जानते थे न. है कि नहीं.
10. फिल्म देखें, अगर शाहरुख, रोहित शेट्टी, दीपिका पादुकोण, बॉलीवुड की कॉमेडी फिल्मों, गानों, नाच और धुंआधार कार उड़ाऊ एक्शन के फैन हैं. फिल्म के आखिरी में साउथ के सुपर हीरो रजनी अन्ना का योयो हनी सिंह का बनाया गाना मिस न करें. जैसा मीना राहुल को कहती है कहां से खरीदी ऐसी बकवास डिक्शनरी. तो अपनी डिक्शनरी से बकवास शब्द को निकाल दें, तो एंजॉय की जा सकती है फैमिली और खासतौर पर बच्चों के साथ जाकर चेन्नई एक्सपेस.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/chennai-express-movie-review-1-738598.html

भाजपा नेताओं ने किश्तवाड़ हिंसा पर पीएम, सीएम से की बात

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Rajnath singh
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शुक्रवार को जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ में भड़की हिंसा पर तुरंत कार्रवाई और केंद्रीय हस्तक्षेप की मांग की है।
पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से फोन पर बातचीत की, जबकि लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से कार्रवाई करने की अपील की। राजनाथ ने ट्वीट में लिखा है, ''मैंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ फोन पर किश्तवाड़ में भड़की हिंसा को लेकर बात की।'' राजनाथ ने कहा, ''प्रधानमंत्री ने मुझे आश्वासन दिया है कि दंगे पर शीघ्र ही काबू पा लिया जाएगा, क्योंकि किश्तवाड़ में सेना बुला ली गई है।'' सुषमा ने ट्विटर के माध्यम से अब्दुल्ला से हुए संवाद में कहा, ''किश्तवाड़ में कई घायल हुए हैं। घर और दुकानें जलाई गई हैं। कृपया शीघ्र कुछ कीजिए।'' इसके जवाब में अब्दुल्ला ने कहा, ''दोनों तरफ के लोग घायल हुए हैं और नुकसान हुआ है। स्थिति पर नियंत्रण पाया जा रहा है। पर्याप्त बल भेजा गया है।'' सुषमा ने इसके जवाब में लिखा है, ''मैं किसी पक्ष की ओर इशारा नहीं कर रही। घायल होने वाला हर आदमी हिंदुस्तानी है।'' शुक्रवार को करीब 5०० ग्रामीणों के आजादी समर्थक नारे लगाने के बाद दो समुदायों के बीच टकराव शुरू हो गया। हिंसा भड़कने के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है और सेना की दो टुकड़ी तैनात कर दी गई है।

मोस्टवांटेड हाफिज सईद के निशाने पर राजधानी, हाई अलर्ट जारी

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खुफिया ब्यूरो (आईबी) द्वारा आशंका जताई गई है कि स्वतंत्रता दिवस से पहले राष्ट्रीय राजधानी में कोई आतंकवादी हमला हो सकता है। इसके बाद दिल्ली में हाई अलर्ट कर दिया ग या है।
यह जानकारी दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को दी। खुफिया विभाग से मिले पत्र के बाद दिल्ली पुलिस ने हाई अलर्ट जारी किया है। आईबी ने दिल्ली पुलिस को निर्दिष्ट खतरे के संबंध में एक पत्र लिखा है। दिल्ली पुलिस (विशेष शाखा) के विशेष आयुक्त एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि हमें 15 अगस्त से पूर्व आतंकवादी हमले के संबंध में आईबी का एक पत्र प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा, ''दिल्ली में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है और चेतावनी के बाद बाजारों, भीड़भाड़ वाले इलाकों, ऊंची इमारतों और सरकारी दफ्तरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।'' सूत्रों के मुताबिक लश्कर ए तैयबा के संस्थापक और 26/11 के मास्टरमाइंड मोस्ट वांटेड हाफिज सईद की निगाहें राजधानी दिल्ली में आतंकी हमला करवाने पर है। कराची में एक रैली को संबोधित करते हुए सईद ने साल 2000 में लाल किले पर किए गए आतंकी हमले को दोहराने की धमकी दी। हाफिज सईद ने कहा कि भारत में साल 2000 जैसा हमला किया जरूरी हो गया है। आशंका जताई जा रही है कि सईद की इस धमकी के बाद दिल्ली में अलर्ट जारी कर दिया गया है। खबरों के अनुसार छह अगस्त को भारतीय जवानों पर हमले से पूर्व तीन अगस्त को सईद ने पुंछ सेकटर में पाकिस्तानी चौकी पर जाकर सीमा कार्रवाई टीम (बीएटी) से मुलाकात की। इसी टीम के हमले में भारतीय सेना के पांच जवान शहीद हो गये थे। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जमा उद दावा को आतंकी संगठन घाषित कर चुकी है। अमेरिका ने भी पिछले साल सईद पर 100 लाख डॉलर के ईनाम की घोषणा की थी, लेकिन वह अब भी खुलेआम घूम रहा है। उधर लाहौर में मुंबई पर 26:11 हमलों के मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद ने शुक्रवार को प्रसिद्ध गद्दाफी स्टेडियम में ईद की नमाज की अगुवाई की। इसके कुछ ही घंटों पहले जमात उद दावा प्रमुख ने ट्विट किया था, समय नजदीक है जब कश्मीर, फलस्तीन और बर्मा के दबे कुचले लोग आजादी की हवा में ईद मनाएंगे। हजारों लोगों ने सईद के साथ ईद की नमाज अदा की। सईद पर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम है। लोगों के जमा होने से पूर्व सईद के फोटो वाले पोस्टर शहर में विभिन्न स्थानों पर लगे हुए थे। सईद ने अपने टि्वट में कहा, वह समय करीब है जब कश्मीर, फलस्तीन और बर्मा के लोग आजादी की हवा में ईद मनाएंगे। इंशाल्लाह। उसने लिखा, इसलिए इस परीक्षा की घड़ी में हम आपको ईद मुबारक कहते हैं। जल्द ही दुनिया आपकी जीत के बाद आपको ईद मुबारक कहेगी। अल्लाह इसे स्वीकार करे। उसने अपने एट दी रेट आफ हाफिज सईद जेयूडी एकाउंट से टि्वट किया, अल्लाह आपके बलिदान को बेकार नहीं जाने देगा। इस्लाम मजबूत होगा, वह समय करीब है। भारत बार-बार पाकिस्तान से कहा चुका है कि वह मुंबई हमलों के साजिशकर्ता को कानून के कठघरे में खड़ा करे। उसे कई बार पाकिस्तान में भारत विरोधी रैलियों को संबोधित करते देखा गया है। पाकिस्तान कहता है कि उसके पास सईद के खिलाफ कोई सबूत नहीं है ।

मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित करने में देर करेगी बीजेपी!

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future prime minister narender modi
भाजपा दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव समाप्त होने तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में विलंब कर सकती है।
पार्टी के शीर्ष सूत्रों ने बताया कि यद्यपि इस मुद्दे पर भाजपा में चर्चा चल रही है, लेकिन ऐसी राय है कि विधानसभा चुनाव से पहले मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करना सही विचार नहीं होगा। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के प्रति अनिच्छा मुख्यत: विधानसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के खिलाफ जाने की स्थिति में उन्हें आलोचना से बचाने की पार्टी की चिंता की वजह से है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर हम चार में से दो राज्यों में चुनाव हार गए तो मोदी पर इसका इल्जाम लगेगा, क्योंकि हमारे राजनैतिक विरोधी इसके लिए उनपर दोषारोपण करेंगे। पार्टी सूत्रों के अनुसार यद्यपि भाजपा कांग्रेस शासित राजस्थान में जीत के प्रति आश्वस्त है और मध्य प्रदेश के बारे में काफी हद तक आश्वस्त है, लेकिन छत्तीसगढ़ में जीत की संभावना कम और दिल्ली में बेहद कम मानकर चल रही है। काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि क्या कांग्रेस जल्द लोकसभा चुनाव कराती है। भाजपा आम चुनाव के बेहद करीब आने तक मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा नहीं करना चाहती है और चाहेगी कि संदेश लोगों के बीच जोरदार तथा स्पष्ट तरीके से जाए। भाजपा के एक नेता ने कहा कि हालांकि, इस बात की संभावना बेहद कम है कि कांग्रेस समय से पहले चुनाव कराएगी, क्योंकि फिलहाल उसके खिलाफ जबर्दस्त सत्ता विरोधी लहर है। मुख्य विपक्षी पार्टी महसूस करती है कि कांग्रेस चुनाव का सामना करने से पहले खाद्य सुरक्षा अधिनियम और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के साथ-साथ अन्य योजनाओं का लाभ उठा ले। हालांकि, भाजपा में इस बात को लेकर प्रबल राय है कि पार्टी को चुनावों से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करनी चाहिए। सूत्रों ने कहा, 1996 से हर लोकसभा चुनाव में हमने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा की है। इस बीच, भाजपा ने दो पोस्टरों से अपनी दूरी बना ली जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को नयी सोच, नयी उम्मीद के नारे के साथ दिखाया गया है और कहा कि इन होर्डिंग को पार्टी ने अधिकत नहीं किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि प्रचार सामग्रियों और पोस्टरों को अब तक तैयार नहीं किया गया है और फिलहाल सिर्फ नरेंद्र मोदी को उसके लिए पेश करने की कोई योजना नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ये होल्डिंग हो सकता है मोदी के कुछ उत्साही समर्थकों की वजह से आए होंगे। भाजपा ने जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए मोदी का पोस्टर लगाने का कोई फैसला नहीं किया है।

Thursday 8 August 2013

दिल्ली गैंगरेप: कहने को तो बच्चा, लेकिन पूरा देश करता है इससे नफरत

नई दिल्ली, 1 अगस्त 2013 |

दिल्ली में किशोर न्याय बोर्ड से बाहर आता अभियुक्त
गांव का एक लड़का अभावों की जिंदगी से छुटकारा पाने दिल्ली आया और फिर एक ऐसे जुर्म में लिप्त हो गया, जिसकी वजह से पूरा देश उससे नफरत करता है. जानिए आखिर कौन है वह और भारत के किस अंधेरे से वह इंडिया की चकाचौंध में आया था. बारिश की बूंदें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक छोटे से गांव में सुबह की शांति भंग कर रही हैं. सड़क पर कीचड़ इतना है कि चलना मुश्किल है. गांववाले घरों के भीतर हैं. इनमें ज्यादातर खेतिहर मजदूर हैं. लेकिन दूर से आती एक अपरिचित कार की आवाज ने उन्हें एक-एक करके बाहर खींच लिया. वे कार के पीछे हो लिए. आखिरकार कार फूस और ईंट से बने तथा पॉलिथीन से ढके कच्चे मकान के सामने रुकी. इस मकान ने उनके भूले-बिसरे गांव को रातोरात बदनाम कर दिया था.

पूरे गांव में सबसे लुटी-पिटी इस झोंपड़ी में ही वह नौजवान जन्मा था जो 16 दिसंबर के बर्बर बलात्कार और हत्या कांड में शामिल था. वह करीब 11 साल की उम्र तक यहीं पला-बढ़ा था. गांववाले उसका नाम भूरा बता रहे थे और उसके बारे में अलग-अलग तरह की बातें कर रहे थे. उसकी कद काठी, वजन और उम्र का ब्यौरा अलग-अलग था और आखिरी बार उसके गांव आने के बारे में अनुमान भी भिन्न थे. लहराती सफेद दाढ़ी वाले एक बुजुर्गवार सोचते हुए बोले, ‘‘बहुत दिनों से मैंने उसे देखा नहीं है,’’ मानो वे जवानी के किसी साथी को याद कर रहे हों. एक और सज्जन हिचकते हुए बोले, ‘‘कम-से-कम तीन चार साल तो हो गए, वैसे भूरा अच्छा लड़का था.’’

इस अच्छे लड़के को अब बाकी सारा देश बुराई का अवतार मानता है. टेलीविजन के परदे पर ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी में वह दिखाई देता है. पुलिसवाले उसे साथ लेकर चलते हैं. तो चेहरा तौलिये से ढंका रहता है. इस गैंग रेप का मुख्य अभियुक्त राम सिंह तो 11 मार्च को तिहाड़ जेल में रोशनदान के सरिये से फंदे में लटका मिला था. तब से वह लड़का ही इस खौफनाक जुर्म का प्रतिनिधि चेहरा है. शुरू में पुलिस ने उसे छह अभियुक्तों में सबसे जालिम बताया था और अब भारत उससे प्रतिशोध चाहता है. मांग हो रही है कि अदालतें नियम बदल दे, उसकी उम्र को नजरअंदाज कर मौत की सजा सुना दें. उसकी उम्र की सच्चाई को लेकर बहस हो रही है. किशोर अपराधी न्याय बोर्ड के बाहर जुटती भीड़ सवाल कर रही है कि ऐसा अपराध करने वाले 17 साल के उस लड़के को उसके वयस्क साथियों की तरह ही सजा क्यों न दी जाए. भूरा और अब मर चुके राम सिंह सहित छह के छह अभियुक्तों पर हत्या, बलात्कार और अप्राकृतिक सेक्स करने के आरोप हैं.

किशोर अपराधी के लिए अधिकतम सजा किसी सुधारगृह में तीन साल कैद की है जबकि बाकी अभियुक्तों को दोषी पाए जाने पर सात साल की कड़ी कैद से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है. बचे हुए बाकी अभियुक्त हैं 28 साल का अक्षय कुमार सिंह, 26 साल का मुकेश, 19 साल का पवन कुमार और 20 साल का विनय शर्मा. इन चारों पर 5 फरवरी को साकेत में दिल्ली की फास्ट ट्रैक अदालत में मुकदमा शुरू हुआ. भूरे की सुनवाई किशोर अपराधी न्याय बोर्ड में 6 मार्च से शुरू होकर 5 जुलाई तक चली. फैसला 5 अगस्त तक सुरक्षित है.

पिछले चार महीने से भूरा किशोर अपराधी न्याय बोर्ड में पीड़िता के माता पिता-53 वर्षीय बद्रीनाथ सिंह और 46 वर्षीया आशा देवी-से सिर्फ आठ फुट दूर बैठता है, जिससे उनकी पीड़ा और लाचारी साफ झलकती है. उनकी 23 साल की फिजियोथेरेपिस्ट बेटी के साथ चलती बस में बसंत विहार फ्लाईओवर से दिल्ली गुडग़ांव एक्सप्रेस-वे पर महिपालपुर फ्लाइओवर के बीच बलात्कार हुआ और उसे बेरहमी से पीटा गया. विरोध में दिल्ली के इंडिया गेट पर दो हफ्ते तक लगातार धरना-प्रदर्शन हुए.

आशा देवी कहती हैं कि जब भी वे उस लड़के को देखती हैं तो जिंदगी के लिए छटपटाती बेटी की यादें ताजा हो जाती हैं. 29 दिसंबर को जब उसने सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ा तो तत्काल न्याय की आवाजें तूफान बन गईं. बद्रीनाथ सिंह हताश स्वर में पूछते हैं, ‘‘इन्होंने जो कुछ किया सबके सामने है फिर भला फास्ट ट्रैक अदालत को इन्हें सजा देने में सात महीने से भी ज्यादा वक्त क्यों लग रहा है?’’ इस किशोर अपराधी का नाम लेते ही आशा की हल्की आवाज में जोर आ जाता है, ‘‘मैं तो चाहती हूं कि इन सारे राक्षसों को, उस लड़के को भी मौत दे दें.’’

वह लड़की आज नए, जागृत और उभरते भारत की तस्वीर बन चुकी है. एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की उस बेटी ने उजले भविष्य का सपना देखने का अधिकार हासिल किया था जिसे सरेआम उससे छीन लिया गया. लेकिन यह लड़का भी उस भारत का प्रतीक है जहां मुफलिसी, बच्चों को घर छोड़कर काम की तलाश में शहर जाने को मजबूर करती है. उनके चारों तरफ आलीशान गाडिय़ां, 500 वर्ग गज के बंगले और एयरकंडीशंड दफ्तर हैं, पर वे अपने संपन्न पड़ोसियों के टुकड़ों पर गुजर करते हैं. शहरी भारत अपने खोल के भीतर जीता है, गरीबों की तादाद घटने और अवसर बढऩे की गुलाबी तस्वीरें खींचता है पर उसके भीतर गैर-बराबरी के फोड़े टीसते रहते हैं. भूरा बेशक पिछले 18 महीने से गलत सोहबत में था और इतने घृणित अपराध में शामिल हो गया, फिर भी यह सच कि वह हमारे युग की देन है-यह युग जितना त्रासद है उतना ही खौफनाक भी है.

परिवार की हालत दो कमरे के छोटे से कच्चे मकान में भूरा की मां जिस चारपाई पर बैठी है उसे पड़ोसियों से मांग कर लाई है. उसका पति दिमागी मरीज है जो घुटनों में ठोढ़ी घुसाए चुपचाप सामने के दरवाजे के करीब दूसरी चारपाई पर बैठा रहता है या अनापशनाप बोलता रहता है. सात लोगों के इस परिवार में दो किशोर लड़कियां और तीन छोटे लड़के हैं जिन्हें दो दिन से भरपेट खाना नहीं मिला है. बारिश के कारण काम बंद है इसलिए आज भी पेट भरने की कोई उम्मीद नहीं है.

सबसे छोटा बेटा मुश्किल से तीन साल का होगा, वह भूख के मारे रो रहा है. मां बीच-बीच में उसे चुप कराने के लिए प्लास्टिक के गंदे से डिब्बे में से चुटकी भर चीनी चटा देती है लेकिन यही रफ्तार रही तो तीसरे पहर तक चीनी भी खत्म हो जाएगी. आटे का कनस्तर खाली है और अनाज रखने का मिट्टी का कुठार भी खाली है. कितने ही हफ्तों से सब्जी के दर्शन नहीं हुए हैं. उसने इंडिया टुडे को बताया, ‘‘जब काम मिलता है तभी खाना खा पाते हैं जब काम ही नहीं है तो खाएंगे कैसे.’’ उसकी दोनों बेटियां खेत पर मजदूरी से दिहाड़ी के 50 रु. कमाती हैं जबकि मर्दों को 200 रु. दिहाड़ी मिलती है. लड़कियां सोच रही हैं कि शाम को पड़ोसियों से कुछ रोटियां और चटनी मांगकर काम चलाया जाए. घर में एक ही चमकदार चीज है, वह है चमकीले कांच के ग्लासों का सेट जो एक पिरामिड पर सजा है जिसे बेटियों ने कुछ महीने पहले एक फेरी वाले से खरीदा था. उनमें से एक पिछले हफ्ते टूट गया. मां ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘काश! मैं आपको कुछ दे सकती, फिर भी मेरी जिंदगी में आपका स्वागत है.’’

भूरा की बात शुरू करते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए. उसका यह पहला बच्चा 6-7 साल पहले घर छोड़कर चला गया था और बीच में बस दो बार कुछ दिन के लिए आया था. तीन साल पहले चाचा की शादी में गांव आया था. तब से उसे नहीं देखा है. दो साल पहले तक वह मां को पैसा भेजता था, कभी महीने में 500 रु. तो कभी ज्यादा. फिर पैसे आने बंद हो गए. मां बुरी तरह रोते हुए कहती है, ‘‘वह तो गायब हो गया था. जब तक पुलिस यहां नहीं आई मुझे उसका अता-पता तक मालूम नहीं था.’’

उसे याद नहीं भूरा कब पैदा हुआ था. बस इतना याद है कि बरसात के दिन थे. वह बताती है, ‘‘मौसम इन दिनों जैसा ही था, मेरे खयाल से अब 16 या 17 बरस का होगा.’’ गांव के एकमात्र प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल ने किशोर अपराधी न्याय बोर्ड को बताया कि स्कूल के रिकॉर्ड के मुताबिक, अपराध के समय उसकी उम्र 17 साल 6 महीने थी. पुलिस की चार्जशीट में लगी रजिस्टर की फोटोकॉपी में उसकी उम्र की तारीख 4 जून 1995 थी. पर जन्म का कोई सही रिकॉर्ड न होने के कारण यह सबूत जरा कमजोर है. ग्राम प्रधान का कहना है, ‘‘पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, हम अपने बच्चों को स्कूल ले जाते हैं और हेडमास्टर साइज के हिसाब से उनकी उम्र का अंदाजा लगा लेते हैं. यह महज अनुमान है.’’

लेकिन साइज के हिसाब से उम्र का यह अनुपात अब तक भूरा का साथ देता रहा है. गांव में जो लड़के अभी अपने को 20 साल के आसपास का बताते हैं कि भूरा उनसे श्बहुत छोटा्य था और 14-15 साल के बच्चे कहते हैं कि वह उनसे ‘‘थोड़ा बड़ा’’ था. इस तरह यह मामला असमंजस का है. जो भी जानकारी उपलब्ध है कम-से-कम उसके आधार पर मीडिया की यह खबरें गलत लगती हैं कि भूरा को बचाने के लिए उसकी उम्र में हेराफेरी की जा रही है.

भूरा की मां का कहना है, ‘‘मैं उसकी मां हूं, मैं तो चाहती हूं कि वह बाहर आ जाए. एक बार उसे माफ कर सकते हो. उसने दोबारा ऐसा कुछ किया तो मैं भी उसे माफ नहीं कर पाऊंगी. हमारे घर की हालत देखिए. कोई मदद करने वाला चाहिए. हमें घर में एक मर्द चाहिए.’’ भूरा की मां ने किशोर बंदीगृह में उससे मिलने की कोशिश भी की थी. उसने बदायूं जिले में पास के एक कस्बे से आनंद विहार टर्मिनल के लिए 180 रु. का बस का टिकट भी खरीदा था, जहां से उसे कुछ पुलिस वाले ले गए. लेकिन उसने बताया कि किशोर बंदीगृह के बाहर मीडिया की भीड़ के कारण उसे लौटा दिया गया. उसका कहना है, ‘‘मैं फिर जाना चाहती हूं लेकिन मेरे पास न पैसा है और न शरीर में ताकत बची है.’’ पर एक गैर-सरकारी संगठन के अधिकारी ने बताया कि वह अकसर सुनवाई के समय अदालत में मौजूद रहती है. उसके आने-जाने का खर्च बोर्ड देता है.

एक आम लड़काभूरा पहली बार दिल्ली उसी बस से आया था जिससे सात बरस बाद उसकी मां जेल में उससे मिलने आई. पुलिस का कहना है कि उसने पहली नौकरी पूर्वी दिल्ली में त्रिलोकपुरी में गुलशन होटल नाम के ढाबे में की, जहां वह बर्तन धोता था. फिर कोंडली में एक दूधिये के पास नौकरी की और उसके बाद वैशाली, गाजियाबाद के करीब खोड़ा बाईपास के किनारे एक छोले भठूरे वाले के यहां काम किया. उसके बाद, घड़ौली डेयरी फार्म में बरकत ढाबे में काम करते हुए वह फिर परिवार से मिला. चार साल तक वह इस्लामुद्दीन के इस ढाबे में काम करता रहा. वहां वह खाना बनाने और सफाई के काम में हाथ बंटाता था और सीमित लेकिन नियमित ग्राहकों को खाना परोसा करता था.

बरकत होटल पुराने ढंग का ऐसा ढाबा है जिसे लोग देख कर पहचानते हैं, जो किसी नक्शे पर नहीं है और जिसके नाम का कोई बोर्ड भी नहीं है. लोग एक दूसरे से रास्ता पूछते हुए, मटन कोरमा, धीमी आंच पर पकी निहारी, और कीमा गुर्दे की खुशबू के सहारे ईंट-गारे के इस ढाबे तक पहुंच जाते हैं. पांच कदम बाद खुली रसोई के आगे 10 गुना 12 फुट का कमरा है जिसमें सात मेजें लगी हैं. 25 साल का रसोइया फखरुद्दीन 11 साल से यहां काम कर रहा है. उसने बताया कि भूरा छोटे भाई जैसा था.

फखरुद्दीन का कहना है, ‘‘वह जब पहली बार अपने मामू के साथ यहां आया तो छोटा-सा लड़का था. उसे काम की जरूरत थी क्योंकि परिवार की हालत बुरी थी. मालिक मामू को जानता था इसलिए फौरन लड़के को रख लिया.’’ अगले कुछ वर्ष तक भूरा उनके साथ घुल-मिलकर रहा. इस्लामुद्दीन के 18 साल के बेटे शाह आलम के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है. उसने बताया कि वह लड़का शायद सबसे अच्छा था. रोज सुबह जल्दी उठना, हमेशा साफ-सुथरा रहना, खूब मेहनत से काम करना और कभी शिकायत न करना उसकी आदत थी. भूरा ने 1,500 रु. से शुरुआत की थी और 2011 की गर्मियों में काम छोडऩे तक 3,500 रु. महीना कमा रहा था. तनख्वाह उसका मामू ले लेता था और उसके गांव भेज देता था.

उसके दिन ठीक-ठाक बीत रहे थे, दिनचर्या भी तय थी. भूरा और उसके साथी सुबह 8 बजे के आसपास जागते थे, बिस्तर समेटकर कमरा साफ करते थे, मेज लगाकर बर्तन धोते थे और ताजा गोश्त आने का इंतजार किया करते थे. 11 बजे के आसपास रसोई शुरू होती थी. फखरुद्दीन इंचार्ज था, भूरा प्याज काटने और मीट का मसाला तैयार करने में मदद करता था. फिर किसी एक चीज का जिम्मा संभाल लेता था. मिनट-मिनट में बताता था कि रंगत कैसे बदल रही है और कब चलाना है, इस बारे में निर्देश का पूरा पालन करता था. पहला ग्राहक 1 बजे के आसपास आता था और साढ़े 3 बजे तक ये सिलसिला जारी रहता. फिर वे शाम तक के लिए ढाबा बंद कर देते थे.

अगले तीन घंटे सोने, पड़ोसी नसीम कबाड़ी की दुकान पर टीवी देखने या आपस में गपशप में बीत जाते थे. अकसर अपने-अपने गांव में गुजरे दिनों की यादें ताजा होतीं. शाम साढ़े 6 बजे से रात के खाने की तैयारी शुरू हो जाती थी. फखरुद्दीन बताता है, श्श्वह कभी खाने या कपड़े किसी चीज की शिकायत नहीं करता था. हमारे अलावा पड़ोस में उसका कोई दोस्त भी नहीं था. उसके पास मोबाइल फोन नहीं था. क्रिकेट या फिल्मों का शौक भी नहीं था. कभी लड़कियों की बात नहीं करता था. वह आम लड़का था जो किसी तरह अपना गुजर-बसर करने की कोशिश कर रहा था. उसकी शख्सियत में ऐसी कोई बात नहीं थी जिससे लगे कि वह ऐसा कुछ करेगा जैसा उसने किया.’’ भूरा को नियमित रूप से समझने वाले गैर-सरकारी संगठन के कार्यकर्ता का तो यहां तक कहना है कि वह आज भी शराब, सिगरेट या ड्रग्स को हाथ तक नहीं लगाता.

बरकत ढाबे में करीब चार साल काम करने के बाद एक दिन भूरा ने इस्लामुद्दीन को बताया कि वह नोएडा में अपने चाचा के घर जा रहा है, पर उसके बाद वह लौटकर नहीं आया. शाह आलम कहते हैं, ‘‘वह अपने चाचा के घर गया ही नहीं. उसके चाचा कुछ दिन बाद उसकी तलाश में आए थे. वह यहां तीन जोड़े कपड़े और अन्य सामान छोड़ गया था. कुछ ही हफ्ते बाद उसकी मां भी आई थी. लेकिन हमें नहीं मालूम था कि वह आखिर गया कहां.’’ इस्लामुद्दीन, उसके कर्मचारी और स्क्रैप डीलर नसीम ने भूरा को बहुत ढूंढा. नसीम का कहना है, ‘‘किसी ने कहा कि उसे वसंत विहार में देखा है, तो हम उसकी तलाश में वहां भी गए. वह हम में से एक था. हम उसकी सलामती के बारे में निश्चिंत होना चाहते थे.’’

2012 के दिसंबर की शुरुआत में सामूहिक बलात्कार की घटना के कुछ हफ्ते पहले एक दिन अचानक उसका फोन आया. नसीम कहते हैं, ‘‘उसने एक अज्ञात नंबर से मुझे फोन किया और कहा कि मुझे शाह आलम से बात करनी है. लेकिन जब तक आलम आए लाइन कट चुकी थी.’’ उन्होंने उस नंबर पर कई बार बात करने की कोशिश की, पर हर बार यही जवाब मिला कि वह लड़का वहां नहीं है. ‘‘हमने वह नंबर उसके चाचा को दे दिया था. वह पुलिस में इस बात की शिकायत दर्ज कराने की सोच रहे थे. लेकिन पुलिस तक जाने से पहले ही  बलात्कार की खबर सामने आ गई थी. कौन जाने उस दिन राम सिंह ने ही फोन किया हो या हो सकता है फोन करने वाला अन्य आरोपियों में से एक हो.’’

पुलिस अब कहती है कि भूरा ने 2011 में नोएडा में शिव ट्रैवल एजेंसी की बस में राम सिंह के साथ एक खलासी के रूप में कुछ महीने काम किया था. उसके बाद आठ महीने तक भूरा ने आनंद विहार टर्मिनल के सामने कौशांबी में ‘डग्गामार’ अवैध बस सर्विस में काम किया था. डग्गामार बस सेवा की बसें उत्तर प्रदेश में खुर्जा, सहारनपुर और मुरादाबाद के बीच चलती हैं और उनमें टिकट के नाम पर जरूरत से ज्यादा पैसा वसूला जाता है और कभी-कभी यात्रियों को लूट लिया जाता है. हक सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स के काउंसलर शाहनवाज का कहना है, ‘‘ये बसें उन बच्चों के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड हैं जो जुर्म की दुनिया की ओर रुख कर लेते हैं.’’ उसके बाद वह रूट नंबर 33 पर चलने वाली भजनपुरा-नोएडा बस पर खलासी के रूप मे काम कर रहा था, लेकिन दुष्कर्म करने से दो सप्ताह पहले उसकी नौकरी छूट गई थी. इसी बीच वह अपने पुराने साथियों से बरकत ढाबे पर मिला था.

सजा-ए मौत के लिए उम्र कम?मीडिया में आई रिपोर्ट के बावजूद साकेत फास्ट ट्रैक अदालत में दायर 576 पन्नों के आरोपपत्र में साफ  लिखा है कि उस रात बस में मौजूद छह आरोपियों में सबसे क्रूर था मुख्य आरोपी राम सिंह. अपराध के समय बस में मौजूद पीड़ित के 28 वर्षीय दोस्त अवनींद्र प्रताप पांडे के बयान और आरोपियों के इकबालिया बयानों के अनुसार उस लड़के ने बलात्कार तो किया था. बाल अदालत में पेश 56 पेज का आरोपपत्र भी इसकी पुष्टि करता है. लड़के के खिलाफ  अन्य साक्ष्यों में से एक है उसके कपड़ों पर पीड़ित के खून के धब्बों का पाया जाना. हालांकि फॉरेंसिक रिपोर्ट बस में उसकी उंगलियों के निशानों का साक्ष्य पेश करने में नाकाम रही. आशा देवी का कहना है, ‘‘मेरी बेटी ने विशेष रूप से उसका नाम नहीं लिया, लेकिन उसने कहा कि अपराध में सभी बराबर के भागीदार थे. वह सबसे क्रूर था या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

भूरा के लिए किशोर न्याय बोर्ड की ओर से सुधार संबंधी फैसला सुनाने से दो दिन पहले 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘‘किशोर’’ शब्द की ताजा व्याख्या के लिए जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका मंजूर कर ली. स्वामी ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनकी याचिका में यह बात रखी गई है कि किसी किशोर अपराधी की सजा का फैसला 18 वर्ष की आयु सीमा की कसौटी के बजाए उसकी ‘मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता’ के मद्देनजर होना चाहिए. उनकी पेशकश पर गौर करते हुए चीफ  जस्टिस पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ 31 जुलाई को उनकी याचिका पर सुनवाई करेगी और इस सिलसिले में उनसे कहा है कि वे किशोर न्याय बोर्ड को सूचित कर दें कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका मंजूर कर ली है, इसलिए बोर्ड अभी थोड़ा इंतजार करे. इसी के मद्देनजर बोर्ड ने 5 अगस्त तक अपना फैसला टाल दिया है.

उधर सुप्रीम कोर्ट के वकील करुणा नंदी का कहना है कि 18 से कम उम्र के अपराधियों के प्रति अदालत के व्यवहार संबंधी निर्देश अच्छी तरह से सोच-विचार कर बनाए गए हैं. ‘‘वयस्क अपराध न्याय प्रणाली के विपरीत किशोर न्याय प्रणाली में कठोर दंड के लिए कोई जगह नहीं. मौत की सजा या कठोर सजा की बात नहीं उठनी चाहिए, क्योंकि अध्ययनों से पता चला है कि 18 से कम उम्र के लोग अपने आवेगों पर नियंत्रण करने या दबाव संभालने में असमर्थ होते हैं.’’

भूरा बाल सुधार गृह में अदालत के दिए गए निर्देशों का पालन करने के बाद बाहर आता भी है तो उसके सामने जिंदगी को ढर्रे पर लाने के लिए बहुत कम ठौर बचे होंगे. शाह आलम का कहना है कि वे उसे अपने ढाबे पर वापस काम नहीं दे सकते और न ही कोई और उसे काम पर रखना चाहेगा. भूरा के गांव के प्रधान, जो उसके स्कूल के बगल में एक छोटा सा केमिकल कारखाना चलाते हैं जिसकी पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर भूरा भाग गया था, टी-शर्ट और पैंट पहने एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे हैं और उनके आसपास अन्य गांववासी भी बैठे हैं. वह हिरण के एक बच्चे को दुलार रहे हैं जो कुछ हफ्ते पहले उनके गांव में भटक कर आ गया था और कहते हैं कि वह भूरा को अपने इस गरीब ही सही लेकिन पवित्र गांव में नहीं आने देंगे. ‘‘आप किसी डकैत या मारपीट करने वाले को भी एक मौका दे सकते हैं, लेकिन उसने जो किया उसके बाद वह अपना मुंह न दिखाए तो ही बेहतर है. उसे फांसी की सजा हो या न हो, वह लड़का हमारे लिए मर चुका है.


मनोरंजन का मतलब सिर्फ नाच-गाना नहीं: प्रकाश झा

प्रकाश झा
फिल्मकार प्रकाश झा का मानना है कि सिनेमा प्रेमी हर तरह की फिल्मों का लुत्फ उठाते हैं. उन्होंने कहा कि मनोरंजन का मतलब सिर्फ नाच-गाना और हास्य नहीं है. झा ने एक विशेष साक्षात्कार में बताया, 'लोग हर प्रकार की फिल्मों का लुत्फ उठाते हैं. 'कहानी' और 'राजनीति' जैसी फिल्मों ने मनोरंजन के मूल्य बदल दिए हैं. ऐसा नहीं है कि मनोरंजन के लिए नाच-गाना और हास्य जरूरी है. गंभीर विषयों वाली फिल्मों में भी मनोरंजन हो सकता है.'
झा ने 1984 में फिल्म 'हिप हिप हुर्रे' से निर्देशन की शुरुआत की थी. उन्होंने कहा कि यदि मनोरंजन प्रधान फिल्में महत्वपूर्ण हैं तो गंभीर विषयों पर बनने वाली फिल्में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं.
गंभीर फिल्में बनाने के लिए पहचाने जाने वाले झा हल्के-फुल्के विषय वाली फिल्म बनाने में भी रुचि रखते हैं. उन्होंने कहा कि फिल्म के विषय के साथ-साथ मजबूत कहानी भी उनके लिए मायने रखती है.
झा ने अब तक 'दामुल', 'गंगाजल', 'आरक्षण' और 'चक्रव्यूह' जैसी फिल्में बनाई हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी फिल्मों के मुद्दे समाज से जुड़े होते हैं. मैं कोई भी विषय उठाकर उस पर फिल्म नहीं बनाता. मेरे पास एक संवेदनशील कहानी होती है.'
झा की आने वाली फिल्म 'सत्याग्रह' भी समाज में फैले भ्रष्टाचार के बारे में है. फिल्म के बारे में बात करते हुए झा ने कहा, 'यह एक बाप-बेटे की कहानी है. जब मुझे इस कहानी के बारे में पता चला मैंने आज के वर्तमान समाज के विरोध के रूप में इसे तैयार किया.'
झा की दूसरी फिल्मों की तरह ही 'सत्याग्रह' के कलाकार अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अर्जुन रामपाल और करीना कपूर फिल्म के शुरुआती चरण से इसके साथ जुड़े रहे. एक फिल्मकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती दर्शकों और समीक्षकों की पसंद के बीच संतुलन बनाना होता है. 'सत्याग्रह' 23 अगस्त को प्रदर्शित हो रही है.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/entertainment-doesnt-only-come-from-songs-and-dances-says-jha-1-734419.html

शाहरुख की फिल्मी इमेज को कॉमेडी के ट्रैक पर खूब दौड़ाया रोहित शेट्टी ने 'चेन्नई एक्सप्रेस' में

नई दिल्‍ली, 8 अगस्त 2013 |
'चेन्‍नई एक्‍सप्रेस' का एक दृश्‍य
फिल्म रिव्यू: चेन्नई एक्सप्रेस
एक्टरः शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, सत्याराज, निकितन धीर, प्रियमणि
ड्यूरेशनः 2 घंटे 22 मिनट
डायरेक्टरः रोहित शेट्टी
तीन स्टार
टेन प्वाइंट रिव्यू

1. एक लड़का था. सांवला सा, औसत चेहरे और कद काठी वाला. उसने नब्बे के दशक में हमें सिखाया कि भोलेपन के साथ, सही नीयत के साथ और स्मार्टनेस के साथ प्यार करो तो उसे हासिल भी किया जा सकता है. उसने एक यकीन पैदा किया रूमानियत के इर्द गिर्द. दर्जनों फिल्में बनीं उस लड़के शाहरुख के इर्द गिर्द जिन्होंने इस फलसफे को नए नए अध्याय मुहैया कराए. 'चेन्नई एक्सप्रेस' अब अधेड़ हो चले उस लड़के की यादों को बार-बार नए ढंग से याद कराती है. फिल्म की शुरुआत में ही 'डीडीएलजे' की तर्ज पर शाहरुख ट्रेन से लटकते हैं और दरवाजे की तरफ बेतहाशा भागती दीपिका को हाथ बढ़ाते हैं. इस फिल्म में शाहरुख की कई फिल्मी छवियों को, उनके स्टाइल को, उनके गानों को बखूबी इस्तेमाल किया गया है. इसलिए शाहरुख के दीवानों को एक फिल्म में शाहरुख की जर्नी का रेफरेंस देखना लुभाता है. 2. एक और लड़का है, रोहित शेट्टी. पिता एक्शन डायरेक्टर शेट्टी थे. सो उसने जो पहली फिल्म बनाई 'जमीन', उसमें जमकर एक्शन रखा. मगर फिल्म नहीं चली. रोहित को सबक मिला कि एक्शन तो ठीक है, मगर पब्लिक को एंटरटेन करने के लिए कॉमेडी की डोज भी चाहिए. फिर सामने आई 'गोलमाल' फ्रेंचाइजी, 'बोल बच्चन' और 'सिंघम' जैसी फिल्में जिनमें इन दोनों का शानदार मेल दिखा. अच्छे गाने, सिचुएशनल कॉमेडी, एक लव स्टोरी और ऐसा एक्शन जो हीरो को हीरो बनाता है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में भी यही सब है. मगर इसमें एक चीज और जुड़ गई, जिसका जिक्र ऊपर किया गया. शाहरुख खान. ये बड़ा दांव था, जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हुआ है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में शाहरुख को रखने के फेर में वो चीज मिसिंग हो गई, जिसकी हमें आदत है. अजय देवगन का भुजा फड़काता एक्शन. इसके अलावा किरदार के ऊपर स्क्रीन इमेज भी ओवरलैप हो गई. इन सबको भूल जाएं तो रोहित शेट्टी की फिल्मों के दीवानों को निराश नहीं होना पड़ेगा.
3. 'चेन्नई एक्सप्रेस' की कहानी कुछ यूं है कि राहुल के मां पापा नहीं हैं. दादा जी थे. अब नहीं हैं वो, मगर है उसकी दादी का कहा, कि राहुल को मुंबई से रामेश्वर जाकर दादा जी की अस्थियां बहानी हैं. मगर 40 के हो गए और मस्ती के बहाने खोजते राहुल को तो दोस्तों के साथ गोवा जाना है. दादी का मन रखने के लिए वो चेन्नई एक्सप्रेस ट्रेन में सवार होता है, अगले स्टेशन पर उतरने के लिए. मगर वो उतरता है एक नई जमीन पर. दक्षिण भारत में, जिसको लेकर लाख फसाने हैं उत्तर भारतीयों के. फिल्में देखकर, किस्से सुनकर बने, बोरियत से भरे और असलियत की जमीन पर हकलाते से. बहरहाल. राहुल को ट्रेन में मिलती है घर से शादी से बचने के लिए भागी मीना. मीना के फेर में राहुल एक गांव में पहुंचता है. मीना के डॉन पिता से मिलता है. मीना के दावेदार एक पहलवान से दिखते युवक से मिलता है. भागो. बचो. रुको. फिर भागो. इस फेर में प्यार हो जाता है और आखिरी में शाहरुख की ही फिलॉस्फी में कहें तो सब ठीक हो जाता है.
4. चेन्नई एक्सप्रेस हिंदी फिल्म है. मगर इसमें किरदार और लोकेशन के चलते तमिल का भी जमकर इस्तेमाल हुआ है. ये ज्यादातर दर्शकों को हंसाता है, मगर दिल्ली की एक फिल्म देखकर निकली पंजाबी आंटी के शब्दों में कहें तो इल्ले इल्ले एक प्वाइंट के बाद समझ नहीं आता. तमिल के अलावा हिंदी जानने और न जानने को लेकर गढ़ा गया हास ज्यादातर दर्शकों को अच्छा लगता है. अगर आप अच्छे सिनेमा के शौकीन हैं, तो खुद पर तरस खा सकते हैं. मगर रोहित शेट्टी ने कभी इस ट्रिक को छुपाया भी तो नहीं. तो शिकायत कैसी.
5. फिल्म के गाने अच्छे हैं और शाहरुख की रोमांटिक फिल्मों के एलबम में कई नए नगीने जड़ते हैं. वन टू थ्री फोर में प्रियमणि ताजा दिखी हैं. तितली गाने में दीपिका कई तरह की दक्षिण भारतीय साड़ियों में फूलों के बीच महकती खुशबूदार लगी हैं. दूसरे गाने भी अच्छे हैं. मगर एक वक्त के बाद जब आपको लगता है कि अब कहानी में कुछ जोरदार होना चाहिए. गाना आ जाता है. पर शायद यही है रेगुलर मसाला हिंदी सिनेमा. जहां पर्यावरण की रक्षा का संदेश देने के लिए हीरो का हरे भरे मैदानों में मटकना मचलना लाजिमी है.
6. फिल्म हमें दक्षिण भारत की तमीज और तरीके दिखाती है. रोहित अब तक मुंबई, गोवा में अटके थे. मगर यहां एक नया भारत दिखता है. झरने, पहाड़, रंगीनियत से भरपूर गांव, खेत और समंदर. कैमरा वर्क और लोकेशन, इन दोनों मोर्चों पर फतेह हासिल हुई है फिल्म को.
7. जैसा वादा है, फिल्म में जमकर कॉमेडी है. कभी गानों को ट्विस्टेड ढंग में गाकर संदेश देने की कवायद, कभी तमिल और हिंदी के मेल से पैदा हुए हालात की कॉमेडी. इन सबका कोटा पूरा हुआ, तो बौना मिल गया, कुछ मोटे लोग आ गए और इन सबकी क्यूट लानत मलानत करने के लिए राहुल ने दारू पीकर दंगा भी कर दिया. रोहित को पता है कि सीरियस सिनेमा के लिए तमाम दिग्गज हैं, मगर पब्लिक तीन घंटे और सैकड़ों रुपये का टिकट पाकर जो करने आती है, वो है मजा. और उनकी मूवी अपने तईं खूब मजा देती है आम भारतीय दर्शक को.
8. शाहरुख खान को प्यार करते देखना भाता है. मगर यहां तो वह बिल्कुल आखिरी में एक प्रेमी के रूप में नजर आते हैं. उससे पहले वह हालात से जूझते एक आदमी हैं. ऐसे में वह कुछ नया, बेहतर नहीं कर पाते. कॉमेडी के लिहाज से कहें तो ज्यादा जमे नहीं शाहरुख. दीपिका जरूर मीना के रोल में रम सी गईं. उनके और शाहरुख के बीच की केमिस्ट्री लेकिन ज्यादा कुलबुलाहट पैदा नहीं कर पाई. शाहरुख का एक्शन भी उनकी कद काठी के चलते ज्यादा भरोसा पैदा नहीं कर पाता. बार-बार हवा में उछलकर शेर की दहाड़ के बैकग्राउंड स्कोर में झपट्टा मारते अजय याद आ रहे थे. बाकी कलाकारों को सिर्फ हंसाना था और इस काम के लिए उनके मास्टर के रूप में रोहित तैनात थे. अच्छा ये रहा कि शेट्टी टीम के रेगुलर फेस फिल्म में नहीं थे तो कुछ नयापन था.
9. फिल्म के प्रचार के दौरान दावा किया जा रहा था कि ये एक ही मुल्क में कभी राष्ट्रीयताओं के, भाषाओं के, तहजीबों के फर्क को दिखाती और फिर पाटती नजर आएगी. इसके लिए सबको पिरोने वाले धागे के रूप में चुनी गई एक प्रेम कहानी. मगर आखिरी में 'चक दे इंडिया' की सत्तर मिनट वाली स्पीच की तरह मीना के पिता के सामने राहुल की स्पीच उसी निष्कर्ष पर खत्म हुई कि प्यार की कोई बंधी हुई भाषा नहीं होती. पर ये तो हम पहले ही जानते थे न. है कि नहीं.
10. फिल्म देखें, अगर शाहरुख, रोहित शेट्टी, दीपिका पादुकोण, बॉलीवुड की कॉमेडी फिल्मों, गानों, नाच और धुंआधार कार उड़ाऊ एक्शन के फैन हैं. फिल्म के आखिरी में साउथ के सुपर हीरो रजनी अन्ना का योयो हनी सिंह का बनाया गाना मिस न करें. जैसा मीना राहुल को कहती है कहां से खरीदी ऐसी बकवास डिक्शनरी. तो अपनी डिक्शनरी से बकवास शब्द को निकाल दें, तो एंजॉय की जा सकती है फैमिली और खासतौर पर बच्चों के साथ जाकर चेन्नई एक्सपेस.


Wednesday 7 August 2013

कृष 3 के लिए विवेक ही थे रितिक की पहली पसंद

 
 रितिक रौशन की फिल्म कृष 3 का फर्स्ट लुक हाल ही में रिलीज हुआ है। खबर के अनुसार रितिक रौशन ने पहले ही कृष 3 में विलेन के किरदार के लिए एक्टर को सेलेक्ट कर लिया था। कृष 3 के हीरो में तो चेंजेस होने नहीं थे लेकिन फिल्म के विलेन के लिए जरुर रितिक थोड़ा चिंतित थे आखिकार उन्होंने अपनी फिल्म के लिए विवेक ओबरॉय को ही चुन लिया और फिल्म को साइन करते वक्त शायद वि
वेक को भी लगा होगा कि इस फिल्म से उनकी डूबती नैया को तोड़ा सहारा मिल जाएगा। लेकिन कृष 3 के फर्स्ट लुक को देखकर लोग थोड़ा निराश जरुर हुए। रितिक रौशन हर बार की तरह ही एकदम फिट और बेहतरीन दिखे हैं साथ ही फिल्म में कंगना रानावत भी काफी अच्छी नज़र आ रही हैं। कंगना की एक्टिंग की झलक ने लोगों को काफी इंप्रेस भी किया है। कंगना रानावत ने फिल्म में एक गाना भी गाया है। विवेक ओबरॉय की तरह ही कंगना ने भी फिल्म में निगेटिव किरदार निभाया है। कृष 3 की रिलीज डेट को लेकर भी काफी सोच विचार चल रहा है। पहले फिल्म की रिलीज डेट 3 नवंबर थी लेकिन अब खबर आ रही हैं कि फिल्म दीवाली के अगले दिन रिलीज होने के बदले दीवाली के दिन ही रिलीज होगी।
कृष 3 के लिए विवेक ही थे पहली पसंद विवेक को रितिक ने पहले ही पसंद कर लिया था। फिल्म का हीरो तो रितिक रौशन को ही बनना था लेकिन फिल्म के विलेन को लेकर काफी सोच विचार किया गया था और रितिक ने एक बार में ही विवेक ओबरॉय को फिल्म के विलेन के लिए सेलेक्ट कर लिया था।

 

जॉन ने कहा मद्रास कैफ नहीं है एंटी तमिल



जॉन अब्राहम की फिल्म मद्रास कैफे को लेकर कई सारी बातें हो रही हैं और सबसे ज्यादा जॉन अब्राहम के फिल्म में लुक्स को लेकर भी काफी चर्चाएं गरम हैं। मद्रास कैफे एक भारतीय एजेंट की कहानी है जिसे एक मिशन के चलते दूसरे देश में भेजा जाता है और वहां जाकर वो जिन जिन मुश्किलों को झेलता है उसके बारे में फिल्म में दिखाया गया है। जॉन अब्राहम के लुक्स को लेकर फिल्म में काफी मेहनत की गयी है। जॉन ने बताया कि मद्रास कैफे के लिए उन्होंने कुछ खास बॉडी बनाने पर मेहनत नहीं की है बल्कि फिल्म में सबकुछ रियल तरीके से ही दिखाया गया है।
जॉन अब्राहम की फिल्म मद्रास कैफे को कुछ लोग एंटी तमिल भी कह रहे हैं लेकिन जॉन का कहना है कि ये फिल्म ना तो एंटी तमिल है और ना ही फिल्म में किसी भी क्षेत्र को लेकर कुछ भी गलत दिखाया गया है। ये सिर्फ एक फिल्म है और बस हमने इसे एक रियल रुप में पेश करने की कोशिश की है। जॉन अब्राहम ने उन सभी लोगों से जो कि मद्रास कैफे को एंटी तमिल कहकर फिल्म की निगेटिव पब्लिसिटी कर रहे हैं कहा है कि वो खुद पहले फिल्म को देखें और उसके बाद ही कुछ डिसाइड करें।
जॉन ने कहा मद्रास कैफ नहीं है एंटी तमिल
मद्रास कैफे में जॉन अब्राहम के साथ नर्गिस फाखरी मुख्य भूमिका में हैं। मद्रास कैफे फिल्म को लेकर जॉन अब्राहम काफी उत्साहित है। फिल्म में अपनी बॉडी के बारे में बात करते हुए जॉन अब्राहम ने बताया कि फिल्म में उन्होंने अपनी बॉ़डी बिल्कुल नॉर्मल ही रखी है किसी भी तरह की कोई एक्स्ट्रा इफेक्ट का यूज उन्होंने नहीं किया है। नर्गिस फाखरी ने भी फिल्म के बारे में बात करते हुए बताया कि फिल्म में जॉन ने बहुत ही रियल एक्टिगं की है।

एकता की अगली फिल्म में होंगे इमरान-सोनाक्षी!


मुंबई। 'वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' में पहली बार साथ आने वाले इमरान खान-सोनाक्षी सिन्हा की जोड़ी की केमेस्ट्री फिल्म की निर्माता एकता कपूर
को इतनी भा गई है कि उन्होंने इस जोड़ी को अपनी अगली फिल्म में लेने का निर्णय कर लिया है।
एकता मानती हैं कि इमरान-सोनाक्षी एक लाजवाब युगल हैं। इस बारे में पूछे जाने पर अभिनेता इमरान खान ने कहा कि मैं भी कुछ ऐसा ही सुन रहा हूं। फिलहाल मुझे किसी योजना के बारे में नहीं मालूम। लेकिन एकता हमारी पर्दे पर दिखी केमेस्ट्री से काफी उत्साहित हुई हैं।
'वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' 15 अगस्त को रिलीज होगी।

फिर वरुण धवन की हिरोइन बनेगी आलिया

Varun Dhawan
मुंबई। करन जौहर को अपनी फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' से बॉलीवुड में कदम रखने वाले वरुण धवन और आलिया भट्ट की जोड़ी शायद ज्यादा ही रास आ गई है। वह इस जोड़ी को लेकर एक रोमांटिक फिल्म 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' बना रहे हैं। इस फिल्म से शंशाक खेतान फिल्म निर्देशक के तौर पर अपनी पारी की शुरुआत कर रहे हैं।
आलिया के बारे में और पढ़ें
स्टूडेंट ऑफ द ईयर में डेविड धवन के बेटे वरुण और महेश भट्ट की बेटी आलिया की कैमिस्ट्री को पसंद किया गया था। इस फिल्म ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन किया था। यही वजह है कि दोनों नए हैं, फिर भी उनके पास काम की कमी नहीं है। वरुण फिलहाल अपने पापा डेविड धवन की फिल्म 'मैं तेरा हीरो' की शूटिंग में व्यस्त हैं तो आलिया '2 स्टेट्स ' में। 2 स्टेट्स भी करन जौहर की ही फिल्म है। दोनों के अक्टूबर तक खाली हो जाने की संभावना है और इसके बाद ही हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया की शूटिंग शुरू हो सकेगी।
वरुण को सल्लू से क्यों मांगनी पड़ी माफी?
करन जौहर ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि वह वरुण और आलिया की जोड़ी को लेकर फिल्म बना रहे हैं। करन ने बताया, 'शशांक इस फिल्म को डायरेक्ट करेंगे। यह उनकी पहली फिल्म होगी। इसकी कहानी भी शशांक ने ही लिखी है। यह एक लव स्टोरी है, जिसकी काफी शूटिंग पंजाब में होगी। इस फिल्म के जून, 2014 में रिलीज होने की संभावना है।
आलिया की करन के साथ यह तीसरी फिल्म होगी। वैसे उन्हें रणबीर कपूर और अनुराग बसु के प्रोडक्शन हाउस 'शुरू प्रोडक्शन' से भी रणबीर के अपोजिट रोल का ऑफर मिला है।

घूस देते रंगे हाथों पकड़े गए माइक्रोमैक्स के मालिक


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नई दिल्ली।। देश में तेजी से उभरती मोबाइल कंपनी माइक्रोमैक्स के मालिकों को घूस देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने उत्तरी दिल्ली में एक मैरेज हॉल को बनाने की मंजूरी देने के एवज में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के इंजिनियरों को 30 लाख रुपये की रिश्वत देने के आरोप में माइक्रोमैक्स इन्फर्मेटिव्स के मालिक राजेश अग्रवाल और मनीष तुली को गिरफ्तार किया।

सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, दोनों वजीरपुर मे मैरेज हॉल बनाना चाहते थे, लेकिन इसे मंजूरी देने के एवज में एमसीडी अधिकारियों ने 30 लाख रुपये की रिश्वत मांगी। इन अधिकारियों में एक सुपरिंटेंडिंग इंडिनियर और दूसरा एक्जेक्यूटिव इंजिनियर है। इन चारों को सीबीआई ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया है।

टैक्स की ई-फाइलिंग 68 फीसदी बढ़ी


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टैक्सपेयर्स

पीटीआई।। नई दिल्ली
टैक्सपेयर्स ने मौजूदा
फाइलिंग सीजन में 1.23 करोड़ से ज्यादा ई-रिटर्न फाइल किए हैं। यह पिछले साल से 68 फीसदी ज्यादा है। 5 अगस्त को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की डेडलाइन खत्म होने के बाद जोड़े गए आंकड़ों से पता चल रहा है कि 87 लाख से ज्यादा सैलरीड क्लास टैक्सपेयर्स ने इस साल अपने टैक्स रिटर्न ऑनलाइन फाइल किए हैं। यह पिछले साल से 85 फीसदी ज्यादा है।

सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी) ने कहा है, '123.03 लाख रिटर्न 5 अगस्त तक ई-फाइल किए गए, जो पिछले साल के 73.11 लाख रिटर्न से 68.3 फीसदी ज्यादा हैं। 5 अगस्त तक आईटीआर 1 और आईटीआर 2 (टैक्सपेयरों के सैलरीड क्लास) के तहत 87,13,493 रिटर्न फाइल किए गए, जो पिछले फिस्कल में इस कैटेगरी में फाइल 46,90,279 रिटर्न से 85.8 फीसदी ज्यादा हैं।'

बोर्ड ने असेसमेंट ईयर 2013-14 के लिए आईटी रिटर्न फाइल करने की अंतिम तारीख बढ़ाकर 5 अगस्त कर दी थी। डिपार्टमेंट के बंगलुरु के सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर (सीपीसी) पर प्रेशर बढ़ने के चलते डेडलाइन बढ़ाई थी। सीबीडीटी ने कहा था कि ई-फाइलिंग को मिले जबरदस्त रिस्पॉन्स को देखते हुए डेडलाइन 31 जुलाई से बढ़ाकर 5 अगस्त की जा रही है। 5 अगस्त को 6.92 लाख रिटर्न फाइल किए गए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, डिपार्टमेंट के सर्वर्स को मौजूदा फाइलिंग सीजन में प्रति मिनट 2,303 रिटर्न मिले। डिपार्टमेंट में स्पेशल टीम तैनात की गई थी, ताकि वह वेब पोर्टल पर लगातार नजर रख सके और इसके तकनीकी पैरामीटर को चेक करती रहे। इस साल 5 लाख रुपए से ज्यादा आमदनी वालों के लिए इलेक्ट्रॉनिक तरीके से रिटर्न फाइल करना जरूरी बना दिया गया है।

शहीद की पत्नी ने मुआवजा ठुकराया

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पटना/छपरा, एजेंसी| जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर हुई पांच सैनिकों की हत्या के विरोध में पूरे बिहार में पाकिस्तान विरोधी नारे लगे और प्रदर्शन हुए दूसरी ओर एक शहीद की विधवा ने राज्य सरकार की ओर से दी गई मुआवजे की राशि को ठुकरा दिया है।
चार शहीदों में से एक लांस नायक प्रेमनाथ सिंह के मित्रों ने छपरा और सीवान के बीच कोपा सम्हौता रेलवे स्टेशन पर लिच्छवी एक्सप्रेस और एक अन्य यात्री ट्रेन रोककर केन्द्र से पाकिस्तान के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने की मांग की। अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रदर्शन के कारण दो अन्य महत्वपूर्ण ट्रेनों वैशाली एक्सप्रेस और बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस का रास्ता बदल दिया गया। पुंछ सेक्टर में मारे गए पांच सैनिकों में से चार बिहार के हैं और उन चारों के गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। चारों शहीदों में विजय कुमार राय ग्रामीण पटना के बिहटा के रहने वाले थे। शंभु शरण सिंह भोजपुर जिला, प्रेमनाथ सिंह और रघुनंदन प्रसाद सारन जिला के निवासी थे। खबरों के अनुसार, बिहार के चार सैनिकों की मौत की खबर फैलने के साथ ही बेगूसराय, बेतिया, छपरा और अन्य जगहों पर लोग सड़कों पर उतर आए और जमकर पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की।

एंटनी के बयान पर मचा बवाल

भारतीय जवानों की हत्या को लेकर रक्षामंत्री एके एंटनी के बयान पर बुधवार को बवाल मच गया। संसद के दोनों सदनों में हंगामे के दौरान विपक्ष ने रक्षामंत्री का बयान पाकिस्तान को क्लीन चिट देने वाला करार दिया। भाजपा ने कहा कि एंटनी अपने बयान पर माफी मांगें। उन्होंने प्रधानमंत्री से भी स्पष्टीकरण देने को कहा। कांग्रेस ने ये मांगें नकार दी हैं।
सूत्रों के अनुसार, एंटनी गुरुवार को संसद में मामले पर फिर बयान दे सकते हैं। पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पर एंटनी ने कहा था कि हमलावर पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने हुए थे। जबकि रक्षा मंत्रालय ने साफ कहा था कि हमलावरों के साथ पाक सैनिक भी थे।
एंटनी के इस बयान पर लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने कहा, ‘रक्षामंत्री का बयान पाकिस्तान को दोषमुक्त बताने वाला है। उन्होंने सेना के बयान को बदलकर पेश किया।’ पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि एंटनी माफी मांगें। विपक्ष की मांग को नकारते हुए कांग्रेसी नेता रेणुका चौधरी ने कहा कि अब तो स्थिति बेतुकेपन के स्तर तक पहुंच गई है। रक्षामंत्री ने स्पष्ट कहा है कि उनके पास कल तक जो तथ्य थे वही सामने रखे। पाकिस्तान को क्लीनचिट देने की बात एकदम गलत है। इससे पहले एंटनी के बयान को लेकर राज्यसभा में भी हंगामा हुआ।  हंगामे के चलते दोपहर बाद ही दोनों सदनों को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया। हालांकि एंटनी ने सदन में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने उपलब्ध सूचना के आधार पर ही बयान दिया था।  सेना प्रमुख के कश्मीर दौरे से लौटने के बाद वह पूरा ब्योरा देंगे। इसके बाद एंटनी इस मुद्दे पर पीएम से भी मिले। शाम के समय विपक्ष की नाराजगी और अपना पक्ष रखने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपने आवास पर बैठक भी की।

कांग्रेस का पृथक तेलंगाना के फैसले पर पीछे मुड़ने से इंकार

Image Loadingकांग्रेस ने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के फैसले पर पीछे मुड़ने से स्पष्ट तौर पर इंकार किया। यद्यपि पार्टी ने आंध्र प्रदेश में पृथक तेलंगाना राज्य गठित करने के निर्णय से उत्पन्न हो रही चिंताओं को सुनने के लिए रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठि त की है।
पार्टी प्रवक्ता पी सी चाको ने यहां संवाददाताओं से कहा कि नहीं, पीछे हटने का कोई सवाल नहीं है। कई और चीजें तय होनी हैं । यह समिति फैसले को लागू करने के लिए है, न की फैसले को रोकने के लिए। इससे पहले आज दिन में पार्टी ने एंटनी की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की । पार्टी महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पथक तेलंगाना राज्य के गठन के निर्णय से उत्पन्न हो रही चिंताओं को सुनने के लिए एंटनी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित की है। तेलंगाना राज्य बनाने की घोषणा के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में इसी तरह पथक राज्यों की मांग हो रही है। कांग्रेस की इस समिति में एंटनी के अलावा पार्टी महासचिव एवं आंध्र प्रदेश मामलों के प्रभारी दिग्विजय सिंह, पार्टी के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को शामिल किया गया है। चाको ने कहा कि वास्तव में पार्टी नेताओं के बीच दो तरह की राय है लेकिन साथ ही कहा कि हमें पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई कांग्रेस कार्य समिति द्वारा लिये गये फैसले को लागू करना है । चाको ने भाजपा के इस आरोप को भी खारिज किया कि कांग्रेस तेलंगाना के गठन को लेकर टालमटोल कर रही है । उन्होंने सवाल किया कि आखिर राजग अपने शासनकाल के दौरान जब छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन कर रही थी तो उस वक्त उसने तेलंगाना का गठन क्यों नहीं किया। समिति बनाने की यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब आंध्र प्रदेश से पार्टी के कुछ सांसद सदन में लगातार एकीकृत आंध्र प्रदेश की मांग कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश के सीमांध्र क्षेत्र से आने वाले सात केन्द्रीय मंत्रियों ने कल रात कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की और उन्हें तेलंगाना राज्य के गठन के फैसले को लेकर आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र के लोगों की भावनाओं से अवगत कराया था। इस मुलाकात के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें बताया था कि वरिष्ठ नेताओं की एक समिति गठित की जायेगी जो उनकी शिकायतों पर गौर करेगी ।

महिला को पति के साथ नहीं सोने की चेतावनी

Image Loadingलंदन| ब्रिटेन में एक अनूठी अदालती फैसले के तहत एक भारतीय महिला को अपने मानसिक रूप से अशक्त ब्रिटिश सिख पति के साथ नहीं सोने की चेतावनी देते हुए कहा गया है कि यदि वह ऐसा करती है तो उसे सारी जिंदगी जेल में रहना पड़ सकता है।
बर्मिंघम स्थित कोर्ट ऑफ प्रोटेक्शन में न्यायाधीश होलमैन ने कहा कि उसके पति के पास यौन संबंध बनाने के लिए सहमत होने की क्षमता नहीं है। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि यह तथ्य कि दोनों लोगों की एक दूसरे से शादी हुई है बचाव के लिए कोई वजह नहीं है। वह (पति) एक आपराधिक कार्य का पीड़ित बन जाएगा। गौरतलब है कि महिला ने अदालत से दरख्वास्त की थी कि इस व्यक्ति के साथ उसकी शादी रद्द नहीं की जाए। सैंडवेल मेट्रोपोलिटन बोरो काउंसिल ने अदालत से इस शादी को इंग्लैंड और वेल्स में मान्य नहीं घोषित करने को कहा था क्योंकि इस व्यक्ति के पास शादी के लिए सहमति प्रदान करने की क्षमता नहीं थी। हालांकि, न्यायाधीश ने महिला की शादी को रद्द करने से इनकार कर दिया। ऐसा पहली बार माना जा रहा है कि एक ब्रिटिश न्यायाधीश ने एक ऐसी शादी को कायम रहने की इजाजत दी जबकि कानून के तहत यह मान्य नहीं है क्योंकि इस व्यक्ति के पास शादी करने के लिए सहमत होने की क्षमता नहीं थी। न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए महिला से सहानुभूति जताई और कहा कि हालात के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। गौरतलब है कि इस व्यक्ति को उसके माता पिता 2009 में पंजाब लेकर गए थे जिसकी उम्र अब 40 के करीब है। यह महिला अपनी शादी से पहले इस व्यक्ति से नहीं मिली थी और उसे शादी के बाद पता चला कि वह मानसिक रूप अशक्त है। महिला ने बताया कि वे दोनों अपनी शादी की रात और उसके बाद कई मौकों पर साथ साथ सोए हैं।

रघुराम राजन...प्रोफेसर से RBI गवर्नर बनने तक का सफर

Image Loadingवित्त मंत्रालय ने भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार र घुराम जी राजन को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का नया गवर्नर नियुक्त किया है। राजन वर्तमान में आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव की जगह लेंगे, जो अगले महीने चार सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। राजन का कार्यकाल तीन साल का होगा।
राजन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की होगी, जो पिछले वित्त वर्ष में नौ साल के निचले स्तर पर आ चुकी है। एक नजर राजन के अब तक के सफर पर... जन्म
03 फरवरी 1963 (भोपाल) शिक्षा : - सातवीं कक्षा तक विदेश में पढ़ाई। - स्कूल की बाकी की पढ़ाई दिल्ली से। - 1985 में आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन। - आईआईटी दिल्ली में गोल्ड मेडल मिला था रघुराम राजन को। - 1987 में आईआईएम अहमदाबाद से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) - 1991 में मेस्साचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से मैनेजमेंट में पीएचडी करियर
-1991 में शिकागो यूनिवर्सिटी से असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में करियर की शुरुआत की। - अक्तूबर 2003 से दिसंबर 2006 तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में मुख्य अर्थशास्त्री। - नवंबर 2008 में प्रधानमंत्री के द्वारा भारत सरकार में आर्थिक सलाहकार नियुक्त हुए। - 10 अगस्त 2012 को मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया। तब इन्होंने तत्काल मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु का स्थान लिया, जो अब विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री हैं। उपलब्धियां: - आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री बनने वाले भारतीय मूल और किसी भी विकासशील देश के सबसे युवा और पहले व्यक्ति रहे। - रघुराम राजन ने वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी की थी, जो पूरी दुनिया के सामने आई।

सड़क हादसे में घायल 'आप' नेता संतोष कोली की मौत...


AAp Party leaer SAntosh Koli death
आम आदमी पार्टी (आप) की सदस्य और दिल्ली विधानसभा चुना व के लिए सुंदर नगरी से आप की उम्मीदवार संतोष कोली की आज मौत हो गई। कोली 30 जून को सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गई थी।
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर संतोष कोली की मौत की पुष्टि करते हुए कहा कि भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। आम आदमी पार्टी के अधिकारिक ट्विटर अकांउट पर ट्वीट किया गया कि संतोष अब हमारे बीच नहीं रहीं। उन्होंने हार्ट अटैक के बाद अंतिम सांस ली। कोली 30 जून को गाजियाबाद के लिंक रोड पर पुलिस स्टेशन स्थित कौशाबी मेट्रो स्टेशन के पास हादसे की शिकार हुई थी। उस समय कोली बाइक पर पीछे बैठी हुई थी, कि अचानक तेज रफ्तार से आती कार ने जोरदार टक्कर मारी थी। उसके बाद कोली को गंभीर रूप से घायल हो गई थी। गंभीर हालत उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अरविंद केजरीवाल ने बिजली बिल के खिलाफ आंदोलन उन्हीं के घर से शुरू किया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने उस समय हत्या का प्रयास और हिट एंड रन का मामला दर्ज कर लिया था। लेकिन यूपी पुलिस ने अब तक इस मामले में किसी भी व्यक्ति को गिफ्तार नहीं किया है।

Tuesday 6 August 2013

एक मुट्ठी रेत की कीमत तुम क्या जानो..

लोकतांत्रिक विवशता से जकड़े इस देश में एक मुट्ठी रेत की कीमत मात्र चंद रुपये नहीं होती। इस रेत के हर कण-कण में वह भगवान छिपा है, जो नेता, सरकार और मुख्यमंत्री बनाता है। यह रेत केवल जमीन से निकला पदार्थ नहीं है, इससे बनती है एक आलीशान इमारत, जिसमें नेता, माफिया, अफसर, मंत्री जैसे खंभों का सहारा होता है। यह एक मुट्ठी रेत मात्र अवैध खनन का प्रतीक नहीं है, यह निशानी है एक ऐसे कुटुंब की, जिसकी वसुधा में नोटों के पेड़ लगते हैं, जिसके अंदर वोटों के पहाड़ बनते हैं, अराजकता की खाने होती है, अत्याचार के पक्षी फड़फड़ाते हैं, अन्याय के फूल खिलते हैं, भ्रष्टाचार की नदियां बहती हैं, वगैरह।

एक मुट्ठी रेत पकड़ने पर भले ही वह उंगलियों के पोरों से सरक जाए, लेकिन जब उसे मशीनों व ट्रॉलियों से भरा जाता है, तो हाथ की मुट्ठियां नोटों की गड्डियों से भर जाती हैं। शायद लोगों को यह भान हो चुका है कि रेत को मुट्ठी से उठाने का प्रयास व्यर्थ है। यह मुट्ठी तो विरोधियों का मुंह दबाने के काम में लाना कहीं अधिक हितकर है। यह जन-शक्ति का प्रतीक है, भले ही वह जन-शक्ति गुंडे या माफिया ही क्यों न हो। यह सत्ताधारी दल की प्रतिष्ठा का सवाल होता है, भले ही सत्ता के पास किसी बात का कोई जवाब न हो। रेत का अवैध खनन मात्र रुपये बनाने की प्रक्रिया नहीं है।

यह प्रजातंत्र के वातावरण में आहूति किया जाने वाला राजसूर्य यज्ञ है, जिसमें नेता व माफिया गठबंधन करके सांप्रदायिकता की अग्नि की आड़ में ईमानदार अफसरों की आहूति देते हैं। इससे सत्ता पक्ष को सीधा फायदा और विरोधियों को राजनीतिक मुद्दा हासिल होता है। सतयुग में ऋषियों के हवन को राक्षसगण दूषित करते थे और उनकी गुहार पर देवता राक्षसों का वधकर यज्ञ पूर्ण कराते थे। अब कलयुग है, यज्ञ का औचित्य बदल गया है। राक्षस स्वयं यज्ञ कर लेते हैं और जब कोई देवता उस यज्ञ को रोकने की जरा भी हिम्मत दिखाते हैं, तो उनका अपने आप नाश हो जाने की व्यवस्था मौजूद है। शायद कलयुग की यही परिणति है कि ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता आदि जैसे भाव एक मुट्ठी रेत की कीमत के आगे कहीं नहीं ठहरते हैं।

वीना मलिक की कन्‍नड़ फिल्‍म 'सिल्‍क सक्‍कत हॉट' पर मचा बवाल



वीना मलिक
पाकिस्‍तान की बोल्‍ड एक्‍ट्रेस वीना मलिक की कन्‍नड़ फिल्‍म 'सिल्‍क सक्‍कत हॉट' को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. रिलीज के चार दिन बाद फिल्‍म को अच्‍छा रिस्‍पॉन्‍स भी मिला, लेकिन अब कुछ हिंदू संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है.वीना की नागरिकता और फिल्‍म में उनके जबरदस्‍त अंग प्रदर्शन के विरोध में श्री राम सेने ने प्रदर्शन किया और हुबली, बेलगाम, मैंगलोर और मैसूर समेत कई शहरों में फिल्‍म की स्‍क्रीनिंग रोक दी. मांड्या और हसन में दर्शकों को फिल्‍म नहीं देखने दी गई. इन सबके चलते फिल्‍म का बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन प्रभावित हो रहा है.

इससे पहले ज‍ब वीना ने यह ऐलान किया था कि वे 'सिल्‍क सक्‍कत हॉट' का हिस्‍सा हैं तो उन्‍होंने खूब सारी सुर्खियां भी बंटोरी थीं. यह उनकी पहली दक्षिण भारतीय फिल्‍म है. दो अगस्‍त को रिलीज हुई इस फिल्‍म में उन्‍होंने कई सारे हॉट सीन दिए हैं.
हालांकि 'सिल्‍क सक्‍कत हॉट' के रिव्‍यू अच्‍छे नहीं आए, लेकिन इसके बावजूद फिल्‍म को अच्‍छा रिस्‍पॉन्‍स मिला. कई प्रतिष्ठित समीक्षकों ने तो फिल्‍म को बी ग्रेड तक कहा.

बहरहाल, फिल्‍म के विरोध से निर्देशक त्रिशूल काफी दुखी हैं. उन्‍होंने कहा, 'सिर्फ मेरी फिल्‍म का बॉयकॉट करने की वजह क्‍या है? क्‍या इसकी वजह यह है कि इसमें एक पाकि‍स्‍तानी अदाकारा ने काम कि‍या है. हमारे पाकिस्‍तान से मधुर संबंध हैं और दोनों देशों के बीच सांस्‍कृतिक आदान-प्रदान होता रहता है. वीना भी इस बॉयकॉट से बहुत दुखी हैं.'
वीना दक्षिण की एक और फिल्‍म 'नग्‍न सत्‍यम' में काम कर रही हैं.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/veena-maliks-steamy-south-debut-hit-by-boycott-1-738293.html

शानदार एक्शन नजर आ रहा है ऋतिक रोशन की कृष 3 के पहले ट्रेलर में

कृष-3
Krish 3 hritik roshan
ऋतिक रोशन की मोस्ट अवेटेड फिल्म कृष-3 का ट्रेलर रिलीज हो गया है. फिल्म ऐक्शन और फील के मामले में हॉलीवुड की किसी फिल्म से कम नहीं लग रही है. फिल्म का डायरेक्शन राकेश रोशन ने किया है. ऋतिक हर बार की तरह सुपरहीरो के अवतार में हैं. ऋतिक का मानना है कि इस सुपरहीरो फिल्म ने उन्हें मजबूत इनसान बनने में मदद दी है.
तस्‍वीरों में देखें कृष-3 की पहली झलक
ऋतिक कहते हैं, “इस फिल्म को बनाने का सफर अपने आप में काफी महत्वपूर्ण रहा है. फिल्म बनाना लोगों की सेवा करने जैसा है. कृष-3 से जुड़ी कई चुनौतियों के जरिये मैंने काफी कुछ सीखा है. अगर आप अपना एटीट्यूड स्ट्रांग रखते हैं तो आप किसी भी तरह की परिस्थिति से उबर सकते हैं.”

फिल्म में कोई मिल गया वाला जादू नजर आ रहा है और ऋतिक डबल रोल में दिख रहे हैं. यही नहीं, कंगना रनोट भी धमाकेदार अंजाम में हैं जबकि ग्लैमर बिखेरने का काम प्रियंका चोपड़ा के हवाले है. वे ऋतिक रोशन को लिप किस करती दिख रही हैं. कृष-3, 4 नवंबर को दीवाली के मौके पर रिलीज हो रही है. फिल्म 3डी में भी रिलीज होगी. इस बिग बजट फिल्म का दर्शक लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं.

तालिबानियों को कराटे मारने वाली पाकिस्तान की सुपर हीरो बुर्का एवेंजर को देखेगी दुनिया

पाकिस्तान में तालिबानियों समेत हर तरह के आतंकवादियों और गुंडों की जमकर पिटाई कर रही है एक औरत, जिसकी शक्ल नजर नहीं आती क्योंकि वह फाइट करते समय काले रंग का बुर्का पहने रहती है. मगर दिन के वक्त बुर्का एवेंजर नाम की यह सुपर हीरोइन जिया नाम की टीचर के रूप में नजर आती है और बच्चों को पढ़ाती है. ये कहानी है पाकिस्तान की पहली एनिमेशन सीरीज बुर्का एवेंजर की, जिसे जल्द ही 60 और देशों में दिखाया जाएगा.ये बुर्का एवेंजर क्या है
ये एक एनिमेशन सीरीज है. हमारे शक्तिमान की तरह. इसे बनाया है पाकिस्तान के मशहूर पॉप स्टार हारून ने. सीरीज के हर ऐपिसोड को एक सीख के साथ जोड़ा गया है और अली जफर जैसे रॉक स्टार इसके अंत में एक गाना गाते भी नजर आते हैं. बुर्का एवेंजर का मकसद है लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है.
क्या है जिया की कहानी
एक गांव है, नाम है हलवापुर. पहाड़ियों के बीच घिरा सुंदर गांव. यहां के गर्ल्स स्कूल में पढ़ते हैं दो जुड़वां बच्चे. लड़की आशू और लड़का इम्मू. उनका बेस्ट फ्रेंड है मूली और एक बकरी भी साथ है, जिसका नाम है गोलू. इनकी टीचर जी हैं जिया मैडम.जिया को उसे गोद लेने वाले पिता कबड्डी जान ने कराटे सिखा रखे हैं.
एक लोकल बदमाश नेता है टकलू टाइप, जिसका नाम है वडेरो पजेरो. उसे स्कूल के लिए फंड मिलता है, जिसे वह खुद ही खाना चाहता है. इसलिए वह तालिबानी से गुंडे जिसका नाम है बाबा बंदूक, उसे स्कूल बंद कराने को कहता है.बाबा बंदूक बुरा जादूगर भी है. बंदूक स्कूल में ताला डालता है. अंशू उसे हड़काने के लिए भाषण देती है, मगर है तो बच्ची है. तभी आती है बुर्का वुमेन. मारती है गुंडों को मगर बंदूक क्रूर सिंह के अय्यारों की तरह धुंआ कर भाग जाता है.
फिर बंदूक एक रोबॉट बनाता है. जो लंदन न्यू यॉर्क पैरिस उड़ा देगा. उसका चूजा पूछता है, भाई यहां जाने का वीजा कैसा मिलेगा. इंतजाम होता है, मगर तभी दुनिया बचाने के लिए आ जाती है बुर्का एवेंजर.
बुर्का क्यों पहनाया जिया को
पाकिस्तान के उत्तरी हिस्से में बुर्का तालिबानियों के औरतों पर अत्याचार का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में हारून और सीरीज बनाने वाले राशिद से पूछा गया कि बुर्का क्यों. उनका जवाब था कि अगर हम वेस्टर्न सुपर हीरो मसलन कैट वुमेन की तरह स्किन टाइट सूट पहना देते, तो पाकिस्तान में लोग कनेक्ट नहीं कर पाते. दूसरा लॉजिक ये दिया गया कि जिया को अपनी पहचान छुपाने के लिए एक दुशाना पहना होता. यहां हमने काले बुर्के से काम चला लिया.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/pakistani-cartoon-series-burqa-avenger-set-to-go-global-1-738298.html

रणबीर, सुशांत और राजीव बनेंगे जासूस


राजीव खंडेलवाल और सुशांत सिंह राजपूत
राजीव खंडेलवाल और सुशांत सिंह राजपूत


दो जासूस
बॉलीवुड में इन दिनों जासूसों को लेकर कुछ ज्यादा ही जोर है. कुछ दिन पहले खबर आई थी कि रणबीर कपूर जग्गा जासूस फिल्म में नजर आएंगे तो अब कुछ और ऐक्टर भी इसी दिशा में बढ़ रहे हैं.
राजीव खंडेलवाल:
प्रोड्यूसर कविता बडज़ात्या की जासूसी फिल्म सम्राट ऐंड कंपनी में वे लीड रोल में हैं. फिल्म में जबरदस्त सस्पेंस है. इसके डायरेक्टर कौशिक घटक हैं और फिल्म की शूटिंग सितंबर में शुरू होगी.
सुशांत सिंह राजपूत: खबर है कि ब्योमकेश बख्शी पर बन रही फिल्म को दिबाकर बनर्जी डायरेक्ट करेंगे और इसके को-प्रोड्यूसर यश राज फिल्म्स हैं. फिल्म में लीड किरदार के लिए सुशांत सिंह राजपूत को चुना  गया है. शूटिंग जनवरी, 2014 में शुरू होगी. प्रियंका करेंगी कैबरे: बॉलीवुड का सितारा अगर कोई काम एक बार कर ले तो उन्हें उसकी लत लग जाती है. ऐसा ही प्रियंका चोपड़ा के बारे में भी है. शूटआउट ऐट वडाला के बबली बदमाश में डिस्को स्टाइल में कमर मटकाने के बाद वे गुंडे में कैबरे करेंगी. प्रियंका का कॉस्ट्यूम विंटेज अंदाज वाला होगा और इस कैबरे सांग में फिल्म की पूरी स्टारकास्ट होगी. लगता है बबली के इरादे कुछ नेक नहीं हैं.
उभरता सितारा: रिया चक्रवर्ती और साशा आगा के बाद यश राज फिल्म्स की नई खोज है वाणी कपूर. दिल्ली की रहने वाली मॉडल के हाथ में दो प्रोजेक्ट हैं: मनीष शर्मा का शुद्ध देसी रोमांस और बैंड बाजा बारात का तेलुगु रीमेक. शुद्ध देसी रोमांस का प्रोमो खूब हिट हो रहा है, और दक्षिण में जाने का सॉलिड मौका भी मिल गया है. इसे कहते हैं दोनों हाथ में लड्डू.
कश्मीरी हसीना: श्रीनगर में जन्मी अंगीरा एक बुरा आदमी फिल्म से अपना ऐक्टिंग करियर शुरू कर रही हैं. वे बताती हैं, ''मैं चैनल वी के लिए शूट कर रही थी. डायरेक्टर इशराक ने मुझे देखा और ऑडिशन के लिए कहा. ऑडिशन में मैं चुन ली गई.” हालांकि अंगीरा डायरेक्शन ही करना चाहती थीं. लेकिन अब तो उनकी लॉटरी लग गई है.

मेरी पतंग बड़ी मतवाली

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Child flying kite
जब बच्चों की मस्ती हर पल आसमान में उड़ती दिखे तो समझो पतंग उड़ाने के दिन आ गए हैं। दुकानें और बाजार भी तो पतंगों से सजने लगे हैं। अ ब हर शाम पतंगें पेंच लड़ाएंगी और खुशियां चरखी, सद्दी, मांजा, ढील दे और आई बो काटा की आवाज में पूरे आसमान में गूंजेंगी, और क्या होगा जानते हैं पूनम जैन से
बड़े-बड़े पतंगबाज
यदि तुम्हें यह लगता है कि पतंग के इस खेल पर तुम बच्चों का ही अधिकार है तो तुम गलत हो। दुनियाभर में जितने अधिक बच्चे इसके दीवाने हैं, उससे कहीं अधिक संख्या बड़े पतंगबाजों की है। राजा-नवाब भी इसके शौक से दूर नहीं थे। उनके लिए महलों की छतों पर पतंग उड़ाने के लिए खास इंतजाम किए जाते थे। मुगल राजाओं के समय पतंगबाजी को खूब पसंद किया जाता था। उसके बाद लखनऊ, रामपुर और हैदराबाद के नवाबों में भी इसका खुमार चढ़ा। ये लोग अपनी पतंगों के साथ अशर्फियां बांधकर उड़ाते थे। जिन घरों पर ये पतंगें टूट कर गिरती थीं, उन घरों में खुशियां मनायी जाती थीं। पतंग की खोज कब और किसने की, इस बात की निश्चित तिथि तो किसी को पता नहीं, पर इसकी शुरुआत लगभग दो हजार वर्ष पहले चीन में मानी जाती है। कहा जाता है कि पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो जी ने बनाई थी। उसके बाद पतंगबाजी का यह खेल विभिन्न देशों में फैलता चला गया।  भारत में कहां-कहां
यदि तुम्हें लगता है कि पतंग केवल 15 अगस्त के दिन ही उड़ायी जाती है तो तुम गलत हो। 15 अगस्त पर पतंगें दिल्ली में उड़ायी जाती हैं। यहां तक कि लाल किला मैदान में भी लोग इकट्ठे होकर पतंगें उड़ाते हैं और आजादी का जश्न मनाते हैं। हरियाणा में पतंगें तीज पर, पंजाब में बैसाखी पर, गुजरात, बिहार में मकर संक्रांति पर, उत्तर प्रदेश में वसंत पंचमी व मकर संक्रांति के अलावा दिवाली के अगले दिन भी खूब उड़ायी जाती हैं। यहां लगते हैं पतंगों के मेले
पतंग उड़ाना दुनिया के कई देशों में लोकप्रिय खेल माना जाता है। खासतौर पर चीन, जापान, भारत, इंडोनेशिया और अमेरिका में हर साल इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल्स का आयोजन किया जाता है, जहां दुनियाभर के पतंगबाज तरह-तरह की पतंगों से अपनी पतंगबाजी का हुनर दिखाते हैं। हर साल कई रिकॉर्ड बनते हैं। जापान काइट फेस्टिवल
जापान में यह फेस्टिवल हर साल मई माह के पहले वीक में हमामात्सु शहर में आयोजित किया जाता है। इस समय यहां का साफ चमकता नीला आसमान एक दूसरे की पतंगों से पेंच लड़ाते पतंगबाजों का युद्ध का मैदान बन जाता है। हजारों की संख्या में बच्चे, महिलाएं और पुरुष अपने रंग-बिरंगे हैप्पी कोट्स में पतंग उड़ाने का मजा लेते हैं। इस महोत्सव के दौरान फेस्टिवल म्यूजियम तक पहुंचने के लिए हमामात्सु रेलवे स्टेशन से पब्लिक ट्रांसपोर्ट की खास व्यवस्था की जाती है। चीन काइट फेस्टिवल
चीन में हर साल अप्रैल माह में वाइफैंग शहर में काइट फेस्टिवल लगाया जाता है। यहां चीन के साथ-साथ दुनियाभर से पतंग के शौकीन इकट्ठे होते हैं। यहां खास तरह की हैंडीक्राफ्ट पतंगें देखने को मिलती हैं। सप्ताहभर चलने वाले इस पतंगों के त्योहार में पूरे शहर को रंग-बिरंगी लालटेन और स्टीमर्स से सजाया जाता है। वाइफैंग काइट म्यूजियम दुनियाभर में सबसे बड़े म्यूजियमों में से एक है। जकार्ता काइट फेस्टिवल
यह इंडोनेशिया का सबसे प्रसिद्ध और पुराना फेस्टिवल है। यह हर साल जुलाई के महीने में दो दिन तक आयोजित किया जाता है। चीन, जापान, मलेशिया और नीदरलैंड से पतंगबाज इसमें शामिल होने के लिए आते हैं। यहां की बड़ी-बड़ी ड्रेगन काइट खास आकर्षण का केंद्र होती हैं। वॉशिंगटन स्टेट इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल
नॉर्थ अमेरिका के वॉशिंगटन शहर का यह सबसे लोकप्रिय आयोजन है। अगस्त के तीसरे वीक में सात दिन तक चलने वाला यह कार्यक्रम हर साल लॉन्गबीच पेनिन्सुला में आयोजित किया जाता है। इसे देखने के लिए जितनी बड़ी संख्या में दर्शक जुटते हैं, उतने ही उत्साह से देश और विदेश के पतंगबाज भी अपने कौशल को दिखाने के लिए यहां आते हैं। काइट ट्रेड एसोसिएशन इंटरनेशनल द्वारा इसे दुनियाभर में सबसे अच्छे काइट फेस्टिवलों में से एक माना गया है। अहमदाबाद इंटरनेशनल फेस्टिवल
यूं तो भारत में पतंगें किसी एक खास चौक या नदी के किनारों पर ही नहीं, हर गली-मोहल्ले में उड़ती देखी जा सकती हैं, पर जिस काइट फेस्टिवल की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है, वह है गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित होने वाला इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल। यह मकर संक्रांति के अवसर पर यानी 13 जनवरी से शुरू होता है। यह आयोजन तीन दिन तक चलता है। इन दिनों पूरे गुजरात की चहल-पहल सिमट कर अहमदाबाद में अपने रंग दिखाने लगती है। विदेशों के पतंगबाज भी इसमें शामिल होते हैं। पतंगें ऐसी भी..
कागज का अविष्कार होने से पहले से पतंग उड़ायी जाती रही हैं। कहते हैं कि लगभग 3000 साल पहले उड़ायी गयी पहली पतंग पत्तियों से बनी थी।
सन् 1883 में इंग्लैंड के डगसल आकिवेल्ड ने पतंगों के जरिए 1200 फीट की ऊंचाई पर बहती हवा की गति मालूम की थी।
कहते हैं कि 1901 में मार्कोनी ने एक हैक्सागन यानी छह भुजाओं वाली पतंग का प्रयोग अटलांटिक महासागर के पार सिग्नल भेजने के लिए किया था।
यदि तुम यह मानते हो कि पतंग उड़ाना बच्चों का खेल है, तो यह जानकर हैरानी होगी कि पतंग उड़ाने वालों में बच्चों से कहीं अधिक संख्या बड़ की है।
हर साल उत्तरी अमेरिका में लगभग 5 करोड़ पतंगों की बिक्री होती है।
ऐसा कहा जाता है कि दुनिया के किसी न किसी हिस्से में हर सप्ताह कम से कम एक पतंगों का त्योहार मनाया जाता है।
थाईलैंड में होने वाली पतंगबाजी में 78 नियमों का पालन करना पड़ता है।
ओरिएंट में लोग खुशियां, सौभाग्य और अच्छे स्वास्थ्य की शुभकामना के प्रतीक के रूप में एक-दूसरे को पतंग भेंट करते हैं।
जापान में 1760 में पतंग उड़ाने पर बैन लगा दिया गया था। इसका कारण था कि लोग काम करने से ज्यादा समय पतंग उड़ाने में बिताते थे।

खेलमंत्री राष्ट्रमंडल, एशियाई खेलों की तैयारियों से असंतुष्ट

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Sports Minister Jitender Singh Sai
खेलमंत्री जितेंद्र सिंह ने साई अधिकारियों के साथ हुई बैठक में अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों के लिये भारत की तैयारियों का जायजा लिया और अब तक की प्रगति पर असंतोष भी जताया।
खेल मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि केंद्रीय खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने पांच अगस्त को साई के अधिकारियों के साथ बैठक करके राष्ट्रमंडल खेल 2014 और एशियाई खेल 2014 की तैयारियों की समीक्षा की। इसमें कहा गया कि बैठक के दौरान जितेंद्र सिंह ने इस पर असंतोष जताया कि सिर्फ कुछ राष्ट्रीय खेल महासंघों ने संभावित पदक दावेदारों के अभ्यास कार्यक्रम का ब्योरा दिया है। सिंह ने भारतीय खेल प्राधिकरण के अधिकारियों को कई निर्देश दिये और तैयारियों का जायजा लेने के लिये खेल सचिव पीके देब की अध्यक्षता में संचालन समिति का भी गठन किया। विज्ञप्ति में कहा गया कि मंत्री ने निर्देश दिया कि हर खेल में एक मुख्य कोच और सहयोगी स्टाफ की नियुक्ति की जाये और उनकी टीम को संभावित खिलाडिम्यों को तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जाये। इसमें आगे कहा गया कि मंत्री ने खेल सचिव की अध्यक्षता में एक संचालन समिति के गठन का भी निर्देश दिया जिसकी बैठक हर सप्ताह होगी। यह व्यवस्था राष्ट्रमंडल खेल होने तक जारी रहेगी। मंत्री ने खिलाड़ियों की तैयारियों पर हो रहे खर्च का ब्योरा भी मांगा। मंत्रालय ने कहा कि खिलाड़ियों की तैयारियों पर मुख्य खर्च एनएसएसफ को सहायता की मद से होगा। साई के महानिदेशक को खिलाड़ियों की तैयारियों पर होने वाले संभावित खर्च का ब्योरा देने के लिये भी कहा गया। विज्ञप्ति में कहा गया कि बैठक में तय किया गया कि सभी संभावित खिलाड़ियों का वैज्ञानिक डाटा समय-समय पर एकत्र किया जायेगा और कोचों को दिया जायेगा, ताकि वे हर खिलाड़ी के अनुरूप कोचिंग कार्यक्रम तैयार कर सकें। सिंह ने राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती और तीरंदाजी को बाहर किये जाने पर भी अप्रसन्नता जताई। विज्ञप्ति के अनुसार, मंत्री इस बात से चिंतित थे कि अगले राष्ट्रमंडल खेलों से तीरंदाजी, ग्रीको रोमन कुश्ती और निशानेबाजी टीम स्पर्धाओं को हटाये जाने से भारत को कम से कम 30 पदकों का नुकसान हो सकता है।

IAS निलंबन में नया मोड़, वक्फ ने कहा दुर्गा पाकसाफ

Image Loadingआईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन पर मचे सियासी घमासान के बीच उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। बोर्ड ने दुर्गा शक्ति नागपाल की प्रशंसा की है और जोर देकर कहा है कि गौतम बुद्ध नगर में निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार गिराने में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
दनकौर इलाके के कादलपुर गांव का दौरा करने के बाद समिति ने पाया कि आईएएस अधिकारी ने स्थिति का जायजा लेने के लिए इलाके का दौरा किया था और ग्रामीणों को सलाह दी थी कि मस्जिद के निर्माण में वे सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करें। समिति ने यह भी उल्लेख किया कि दुर्गा ने ही अतिक्रमित वक्फ बोर्ड की भूमि को दोबारा पाने की प्रक्रिया शुरू की, जिसके चलते वह रेत एवं भू माफियाओं के निशाने पर आ गईं। समिति ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है और दुर्गा को फिर से बहाल करने का अनुरोध किया है। प्रदेश सरकार ने गौतमबुद्धनगर सदर की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को मस्जिद की दीवार ढहाने के आरोप में निलंबित कर दिया था। विपक्षी दलों की ओर से इस कार्रवाई के पीछे खनन माफिया का हाथ होने का आरोप लगाये जाते ही हंगामा हो गया। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) रिपोर्ट का हवाला देकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किया, उस रिपोर्ट में उनके नाम का जिक्र ही नहीं है। इसके साथ ही नागपाल के निलंबन को लेकर राज्य सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। गृह विभाग को विगत 27 जुलाई को शाम करीब पांच बजे भेजी गई एलआईयू रिपोर्ट में उपजिलाधिकारी (एसडीएम) जेवर, पुलिस उपाधीक्षक और थाना प्रभारी रघुपुरा द्वारा निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार गिरवाने की बात कही गई है। दीवार गिराने का समय उसी दिन दोपहर एक बजे बताया गया। एलआईयू की इस रिपोर्ट में कहीं पर एसडीएम सदर रहीं दुर्गा शक्ति नागपाल का नाम तक नहीं है। ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि जब एलआईयू रिपोर्ट में नागपाल का नाम नहीं है तो आखिर उन पर राज्य सरकार की तरफ  से कार्रवाई कैसे कर दी गई। उल्लेखनीय है कि नोएडा के जिलाधिकारी द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में भी एसडीएम सदर नागपाल को दीवार गिराने की दोषी नहीं बताया गया था। जब मीडिया ने इस रिपोर्ट को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल किया था तो उन्होंने एलआईयू रिपोर्ट का हवाला दिया था। एलआईयू की रिपोर्ट सामने आने के बाद आने वाले समय में अखिलेश यादव सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

भारत में 400 मीटर घुसकर पाकिस्तानी फौज ने आतंकियों की मदद से बोला हमला

भारत में 400 मीटर घुसकर पाकिस्तानी फौज ने आतंकियों की मदद से बोला हमला
नई दिल्ली. पाकिस्तान का 'नापाक' चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। पाकिस्तान ने साल में दूसरी बार सीधे तौर पर भारतीय इलाके में घुसकर हमला किया है। पाकिस्तानी फौजियों ने पुंछ सेक्टर के चकन दा बाग चौकी के करीब भारत की जमीन पर 400 मीटर घुसकर पाकिस्तानी फौजियों ने हमला बोला।  हमले में 21 बिहार रेजिमेंट के एक जेसीओ और चार जवान शहीद हुए हैं। हमले में एक जवान ज़ख़्मी भी हुआ है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तानी फौजी भारतीय सीमा में करीब 400 मीटर तक घुस आए और सरवा पोस्ट पर घुसपैठ की आशंका पर जांच करने पहुंचे भारतीय जवानों पर घात लगाकर हमला किया। हमले में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा के आतंकवादियों ने भी पाकिस्तानी फौजियों की मदद की है। 
सेना ने अभी इस बारे में कोई भी औपचारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन जम्‍मू-कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने ट्वीट कर पांच जवानों के शहीद होने की जानकारी दी। बीती रात एक बजे से लेकर दो बजे के बीच यह हमला हुआ। 
उस वक्त भारतीय सैनिक सीमा के नजदीक अपने इलाके में गश्त लगा ऱहे थे। इसी दौरान पाकिस्तान के 101 मुजाहिद रेजिमेंट के करीब 20 फौजियों ने भारतीय चौकी पर हमला कर दिया। हमले के बाद सेना का चकन दा बाग इलाके में सर्च ऑपरेशन पूरा हो गया है। ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए पांचों जवानों के शव बरामद कर लिए गए हैं। कश्मीर में सेना की उत्तरी कमान की बैठक चल रही है। बैठक के बाद रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को भेजी जाएगी। 
दूसरी तरफ, हमेशा की तरह पाकिस्तान ने इस हमले से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान ने बीते 9 दिनों के भीतर 15 बार सीजफायर का उल्लंघन किया है। इससे पहले इसी साल जनवरी में पाकिस्तानी फौजियों ने पुंछ के मेंढर में हमला कर भारतीय जवानों के सिर काटे थे। 
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान के ताज़ा हमले के पीछे कश्मीर घाटी में आतंकियों की घुसपैठ कराने की रणनीति भी हो सकती है। इसके अलावा भारत में संसद का सत्र जारी है। ऐसे में पाकिस्तान कश्मीर की तरफ ध्यान खींचने के लिए भी ऐसी हरकतें करता रहा है। 
भारत के सामने पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन भी चुनौती पेश कर रहा है। चीन के सैनिक भारतीय सीमा में सिर्फ घुसपैठ ही नहीं कर रहे हैं। वे भारतीय जवानों को अपनी ही सीमा में गश्त करने से भी रोक रहे हैं। पिछले हफ्ते ही चीनी सैनिकों ने ऐसी हिमाकत की है।

बड़ी गहरी हैं माफिया की जड़ें फरजंद

अहमद| उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से सबका ध्यान पिछले 40 साल से फल-फूल रहे माफिया साम्राज्य और समानांतर अर्थव्यवस्था की ओर गया है। आज जिस रेत माफिया की चर्चा हो रही है, वह कोई एक माफिया गिरोह नहीं है
। दिल्ली से सटे गाजियाबाद-नोएडा से लेकर बिहार होते हुए झारखंड और ओडिशा तक रेत के अवैध खनन और तस्करी का धंधा इन दिनों खूब चल रहा है। इस रेत माफिया के अपने-अपने गिरोह हैं और कहीं-कहीं इन गिरोहों की नेटवर्किग भी है। प्राकृतिक संसाधनों की लूट के हिसाब से देखें, तो इस पूरे इलाके में सिर्फ रेत माफिया नहीं हैं। भू-माफिया, जंगल माफिया, पत्थर माफिया, तेंदू पत्ता माफिया, चिप्स माफिया, आयरन ओर माफिया, कोयला माफिया, मोरुम यानी लाल बालू माफिया, मिट्टी माफिया, माइनिंग माफिया, कई तरह के माफिया इन इलाकों की खबरों में लगातार बने रहते हैं। इनके अलावा, शिक्षा माफिया और सरकारी ठेका माफिया का भी जिक्र आता रहता है।

इसी माफिया ने कभी मिर्जापुर सोनभद्र में एक लाल पत्थर के पहाड़ को ही बेदर्दी से तराश डाला था और जिससे पूरा का पूरा पहाड़ ही ध्वस्त हो गया। यह भी कहा जाता है कि अकेले उत्तर प्रदेश में माफिया गिरोहों की सालाना आमदनी राज्य के  पूरे बजट से अधिक है। यह भी दिलचस्प है कि तकरीबन हर सरकार इन पर नकेल कसने की बात करती है, लेकिन साथ ही, माफिया का कारोबार व असर बढ़ने की खबरें भी आती रहती हैं। वैसे उत्तर प्रदेश में माफियागिरी तब शुरू हुई थी, जब किसी ने इस खौफनाक शब्द को मुंबई या दुबई में भी नहीं सुना था। यह अलग बात है कि यह शब्द या तो मुंबई की फिल्मों से आम लोगों की जुबान पर आया, फिर हाजी मस्तान, करीम लाला और दाऊद इब्राहिम जैसे गैंग लीडरों के नाम चर्चा में आने के बाद। इटली के सिसली (माफिया का जन्मस्थान) से सीधे यह माफिया शब्द उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल, खास तौर से गोरखपुर और फिर बलिया से होता हुआ धनबाद-झरिया की कोयला खदानों तक जा पहुंचा।

इटली में इसकी शुरुआत दिलचस्प है। वहां विन सदी में मफुसू नाम का एक बड़ा रंगबाज था। उसी के नाम पर माफिया या मफिओसो नाम पड़ा। दूसरी ओर, लोग कहते है माफिया शब्द अरबी के मह्यास (दादागिरी) से जुड़ा है। दरअसल, माफिया शब्द का अर्थ होता है राज्य संपत्ति और आर्थिक गतिविधि पर कब्जा जमाने और लूटने के लिए अपराधी और स्टेट-प्लेयर्स, यानी राजनेता और नौकरशाही की साठगांठ। वैसे, भारत में आज इसका प्रयोग लगभग इसी अर्थ में होता है। इसे कई तरह के जोखिम, खतरों और अथाह अवैध कमाई से जोड़कर देखा जाता है, इसीलिए यह अन्य अपराधों से अलग है।

एक बार जब यह गोरखधंधा शुरू हुआ, तो इससे खूनी संघर्ष, आतंक और लूट की कई कहानियां भी जुड़ गईं, खासकर गोरखपुर और धनबाद-झरिया इलाके में। यह सिलसिला गोरखपुर में पूवरेतर रेलवे से 1970-80 के दशक में शुरू हुआ, जहां स्क्रैप और अन्य रेलवे ठेकों को लेकर कुछ गिरोहों में जंग शुरू हुई। इसी जंग के बाद जातीय आधार पर दो नेता सामने आए, जिन्होंने राजनीति में भी अपना दबदबा बनाया और उनके गिरोंहों में संघर्ष आए दिन की बात हो गई। दूसरी तरफ, उन्हीं दिनों कोयले का राष्ट्रीयकरण हुआ। इसके पहले के दौर में धनबाद- झरिया में निजी खान मालिकों ने पहले से ही कई बाहुबलियों और लठैतों को पाल रखा था, जिनका काम था मजदूरों व खासकर उनके नेताओं से निपटना। वे ही बाद में माफिया बन गए। समय के साथ-साथ इनकी ताकत और इनका रुतबा, दोनों बढ़े। इस बढ़े हुए रुतबे ने उनके अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी पैदा कीं। इसके बाद ही शुरू हुआ डॉन कहलाने वाले नेताओं के विधान सभाओं और लोकसभा में जाने का सिलसिला।

इनकी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब धनबाद में कोयला माफिया के सरताज कहलाने वाले सूर्यदेव सिंह गिरफ्तार हुए, तो प्रधान मंत्री रहते हुए चंद्रशेखर उनके पक्ष में खड़े दिखाई दिए। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने 1998 में तत्कालीन गृह विभाग से प्रदेश में सक्रिय माफिया की बाकायदा एक सूची तैयार करवाई थी, जिसके अनुसार, उस समय उत्तर प्रदेश में 744 माफिया गिरोह सक्रिय थे और तब उनका सालाना टर्नओवर 10,000 करोड़ रुपये का था। उस समय तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा था, जिसमें माफिया सक्रिय न हों। तब उनके सफाए के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन हुआ था और कई माफिया सरगना मारे गए। इसके बावजूद माफियागिरी खत्म नहीं हुई। अप्रैल 2006 में हाई कोर्ट ने माफिया पर सरकार से रिपोर्ट मांगी थी, जिसके जवाब में प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया था कि हर आर्थिक क्षेत्र में माफिया का दखल है। सामाजिक शोधकर्ता और पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा का दावा है कि आज उनकी आमदनी प्रदेश सरकार की कुल आमदनी से भी ज्यादा है। यह भी कहा जाता है कि राजनेता और अधिकारी सब जानते हैं, मगर कुछ करते नहीं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी माफिया के खिलाफ कई बड़ी पहल कीं। उनके पहले कार्यकाल में लगभग 65000 (अब तक एक लाख से अधिक) अपराधी फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से जेल गए। इनमें कई नामी-गिरामी अपराधी और माफिया सरदार शामिल थे। लेकिन पिछले दिनों जब ‘डॉन’ की छवि वाले विधायक अनंत सिंह पटना में एके-47 लहराते हुए दिखाई दिए, तो लगा कि अभी इस दिशा में बहुत होना शेष है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के राजीव कुमार के अनुसार, बिहार विधान सभा में 2005 के मुकाबले 2010 में अधिक अपराधी आए और माफिया छवि के विधायकों की संख्या बढ़ी थी। यह भी कहा जा रहा है कि बिहार में राजनीतिक समीकरण जिस तरह से बदल रहे हैं, उसमें उनकी पूछ आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है।
इस पूरे क्षेत्र में माफिया के पांव जमाने का इतिहास बहुत लंबा है। उसके मुकाबले उन पर लगाम कसने और उन्हें पूरी तरह खत्म करने के प्रयास बहुत कम और छिटपुट ही हुए हैं। यह ऐसी लड़ाई है, जिसे राजनीति और प्रशासन को मिलकर ही लड़ना होगा। अगर राजनीति और प्रशासन ही एक-दूसरे से मुठभेड़ की मुद्रा में दिखाई दिए, तो जीत माफिया की ही होगी।