Sunday 4 August 2013

फिल्म रिव्यू: बी.ए.पास

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BA pass
इसे बॉलीवुड में सेक्सी और हॉट (गंभीर ट्रीटमेंट के सं दर्भ में) फिल्मों की कमी कहिये या फिर ऐसी फिल्मों के प्रति एक दकियानूसी सोच, हमारे यहां जब भी किसी फिल्म पर ‘ए’ सर्टिफिकेट (सेक्स सीन्स को लेकर) का टैग लगता है तो दर्शकों की मानसिकता केवल एक बिन्दु पर केन्द्रित दिखाई देती है। ऐसी फिल्मों को लेकर अमूमन टिकट खिड़की पर पहली कतार के दर्शक बतियाते हैं, ‘भाई  इसमें ‘सीन’ कितने हैं’.. ‘यार ‘सीन’ कहीं काट तो नहीं लिये होंगे..’ वगैरह वगैरह। सेक्स सीन्स को लेकर दर्शकों (अधिकतर) के अरमान उस समय टूट जाते हैं, जब उन्हें मनमाफिक रिजल्ट नहीं मिलते। निर्देशक अजय बहल की फिल्म बी. ए. पास भी कुछ ऐसी ही वजहों से सुर्खियों में है। इस फिल्म का पूरा ट्रेलर नेट पर ही देखा जा सकता है, क्योंकि टीवी पर परिवारजन के बीच उसे दिखाना ठीक नहीं है। लंबे समय बाद एक ऐसी फिल्म आयी है, जिसके सेक्स सीन्स को लेकर कांट-छांट की गुंजाइश न के बराबर दिखती है। शायद अजय बहल को पता था कि सेंसर की कैंची अपनी धार जरूर दिखाएगी, इसलिए उन्होंने बेवजह के स्किन शो से परहेज किया है, केवल मुद्दे के चुनिंदा सेक्स सीन्स पर ही फोकस किया है।

ये कहानी है मुकेश (शादाब कमल) की, जिसके  पिता की मौत हो गयी है। वह अपनी दो बहनों के साथ  चाचा-चाची के पास रहता है। चाची के तानों ने उसे लक्ष्य दिया है कि वह जल्दी से जल्दी बीए पास करे तथा अपना और अपनी बहनों का खर्चा खुद उठाए। बेमन से मुकेश को घर का हर छोटा-मोटा काम भी करना पड़ता है। यही छोटा-मोटा काम करते-करते एक दिन उस पर सारिका आंटी (शिल्पा शुक्ला) मेहरबान हो जाती है। सारिका की ये मेहरबानी तन और धन, दोनों रूप में बरसती है। शुरुआत में मुकेश को तन और धन की ये मेहरबानी अजीब लगती है, लेकिन जब धन का सवाल रोज उसके सामने आईने की तरह खड़ा होने लगता है तो वो न केवल सारिका के सामने, बल्कि उसकी सहेलियों के समक्ष भी खुद को परोसने से परहेज नहीं करता। सारिका के तन की भूख शांत करते-करते वह बहुत दूर निकल जाता है। ये बात एक दिन सारिका के पति खन्ना (राजेश शर्मा) को पता चल जाती है और मुकेश की जिंदगी नरक बन जाती है।

फिल्म में सारिका और मुकेश का पहला गरमा-गरम सीन सपनों सरीखा है। 18-19 साल का एक लड़का एक खूबसूरत, जवान और शादीशुदा महिला के घर किसी काम से जाता है। महज पांच मिनट में वो महिला उससे अंतरंग हो जाती है। सपनों सरीखा इसलिए, क्योंकि ऐसे वाकिये चाहे बहुतेरों लड़कों के साथ हुए होंगे, पर जिनके साथ नहीं हुए होंगे, उन्होंने भी  यार-दोस्तों के सामने ऐसे झूठे वाकियों की झड़ी लगा दी होगी। लेकिन फिल्म का सार केवल इसके सेक्स सीन्स में समाहित नहीं है। दिल्ली की तंग गलियों में एक निम्न मध्य वर्ग के घर का सटीक चित्रण है यानी रसोई से उठता छौंक का धुआं, घर का अस्त-व्यस्त साजो-सामान, मध्यम रोशनी में बार-बार नजर आती पैसों की कमी और बेबस युवा की परिस्थितियों से घिरी लाचारी। ये कुछ तमाम बातें बी. ए. पास को एक डार्क श्रेणी की तरफ ले जाती है, जिसके पहले भाग में कई गरमा-गरम दृश्य हैं तो दूसरे भाग में परिस्थितियों का एक झंझावात।

पिछले साल दिल्ली के ओसियान फिल्म समारोह में इस फिल्म को खूब वाहवाही मिल चुकी है। जाहिर है कि सेक्स सीन्स की वजह से ही इसे रिलीज का इतना बड़ा प्लेटफार्म मिला है, वरना कला फिल्मों का हमारे यहां क्या हश्र होता रहा है, ये दर्शक अच्छी तरह से जानते हैं। फिल्म के दो मुख्य पात्र शिल्पा शुक्ला और शादाब कमल, दोनों का ही अभिनय काफी बढ़िया है। अंतरंग दृश्यों में शिल्पा शुक्ला का सहज भाव उन्हें एक परिपक्व कलाकार के रूप में दर्शाता है। फिल्म की दूसरी सबसे अच्छी चीज है फिल्मांकन और छायांकन, जिसकी कमान भी अजय बहल के हाथों में ही है। बी. ए. पास रूटीन मसाला फिल्म नहीं है, इसलिए केवल सेक्स सीन्स की चाह में इस फिल्म को न देखें। इसमें मानवीय पहलू की कई और अच्छी-बुरी बातें भी हैं।

सितारे: शिल्पा शुक्ला, शादाब कमल, राजेश शर्मा, दिबेन्दु भट्टाचार्य
निर्देशक, निर्माता: अजय बहल 
बैनर: टोंगा टॉकीज
संगीत: आलोकानंदा दासगुप्ता
लेखक-पटकथा-संवाद: रितेश शाह

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