Sunday 4 August 2013

बारिश में मस्ती पड़ी भारी

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Raining season time cartoon
घर के बाहर खड़ी दादीजी ने कुणाल को आवाजें लगानी शुरू कीं, लेकिन कुणाल ने उनकी आवाज को अनसुना कर दिया। एक-एक करके बारिश में नहा रहे सारे बच्चे अपने-अपने घर चले गए, लेकिन पता नहीं कुणाल को क्या हो गया था कि उसका मन बिल्कुल भी घर जाने को नहीं हो रहा था। बारिश भी तो नहीं रुक रही थी, बल्कि और तेज होती जा रही थी।
जुलाई का महीना था। मानसून आकर छाया हुआ था। स्कूल की छुट्टियां खत्म हुए अभी कुछ ही दिन बीते थे। कुणाल के घर में उसके मम्मी-पापा के साथ दादा-दादी भी रहते थे। कुणाल के पापा सुबह ऑफिस चले जाते थे और मम्मी भी एक स्कूल में टीचर थीं। कुणाल का स्कूल घर के पास ही था। कुणाल जब स्कूल से लौटता तब दादा-दादी ही उसे घर पर मिलते थे। मम्मी आधे घंटे बाद घर लौटती थीं, उन्हें आते-आते तीन तो बज ही जाते थे। आज कुणाल जब स्कूल से बाहर निकला तभी बारिश शुरू हो गयी थी। बारिश कुणाल का पसंदीदा मौसम था, इसलिए उसने बारिश से बचने की कोई कोशिश नहीं की। जैसे ही वह घर पहुंचा तो दादीजी ने उसे बताया, ‘अभी-अभी तेरी मम्मी का फोन आया था। वो बारिश की वजह से लगे ट्रैफिक जाम में फंस गयी हैं, इसलिए थोडम लेट आयेंगीं, तू जल्दी से कपड़े बदल, खाना खा और सो जा!’ संयोग से दादाजी भी अपनी पेंशन के सिलसिले में बैंक गए हुए थे। कुणाल ने सोचा कि आज तो बारिश में नहाने का अच्छा मौका हाथ लग गया! वरना तो कभी दादा-दादी और कभी मम्मी-पापा बारिश में नहाने से उसे रोकते ही रहते थे- ‘बीमार पड़ जाओगे, जुकाम हो जायेगा, वगैरह-वगैरह..’ आज बारिश में नहाने के मौके को वह बिल्कुल भी हाथ से खोना नहीं चाहता था। दादीजी ने पहले-पहल तो उसे मना किया, लेकिन जब कुणाल ने कई बार, ‘प्लीज दादी! बस थोड़ी-सी देर नहा लेने दो!’ प्लीज कहा तो उन्होंने उसे केवल 15 मिनट बारिश में नहाने की इजाजत दे दी। दादी ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘तेरी मां आएगी तो गुस्सा करेगी, इसलिए उसके आने से पहले आ जाना! नहीं तो तेरी खैर नहीं।’ कुणाल बड़ी फुर्ती से हिरन की तरह कुलांचें मारता बारिश में नहा रहे अपने दोस्तों के संग जा मिला। बरसात से पार्क में बहुत सारा पानी भर गया था! बच्चे मस्ती के साथ ‘छपाक-छपाक’ खेल रहे थे। बडम मजा आ रहा था। 15 मिनट तो पलक झपकते ही बीत गए। घर के बाहर खड़ी दादीजी ने कुणाल को आवाजें लगानी शुरू कीं, लेकिन कुणाल ने उनकी आवाज को अनसुना कर दिया। एक-एक करके बारिश में नहा रहे सारे बच्चे अपने-अपने घर चले गए, लेकिन पता नहीं कुणाल को क्या हो गया था कि उसका मन बिल्कुल भी घर जाने को नहीं हो रहा था। बारिश भी तो नहीं रुक रही थी, बल्कि और तेज होती जा रही थी। उधर घर के बाहर खड़ी दादी एक साथ कई चिंताओं से परेशान थीं। पहली तो यही कि कहीं कुणाल बीमार न पड़ जाए और दूसरी कि अगर दादाजी या कुणाल की मम्मी घर आ गए, तो वे उन्हें ही कहेंगे कि वह तो बच्चा है, आपने क्यों उसे जाने दिया? उधर पार्क में, कुणाल मस्ती से बारिश में सराबोर होकर नाच रहा था और इधर दादी की चिंता बढ़ती जा रही थी। दादी खुद भी पार्क में जाकर उसका हाथ पकड़कर खींच कर नहीं ला सकती थीं, क्योंकि वे बूढ़ी तो थीं ही, ऊपर से अस्थमा की मरीज भी थीं। पूरा डेढ़ घंटा झमाझम बरसकर आखिर बारिश खत्म हुई। कुणाल घर आया। दादी ने डांटते हुए कहा- ‘ले जल्दी-जल्दी सूखे कपडे़ पहन ले। आज के बाद तुझे कभी बारिश में नहीं नहाने दूंगी!’ लेकिन ये क्या? कुणाल ने अभी कपडे़ पहने भी नहीं थे कि उसे तड़ातड़ छींकें आने लगीं। और तो और उसका सारा शरीर अचानक कांपने लगा। कुणाल को इस हालत में देखकर दादी बहुत घबरा गईं। कुणाल तो मारे डर के रोने लगा।
उसी समय बाहर से कुणाल की मम्मी और दादाजी भी घर लौट आए। कुणाल की हालत देख वे भी घबरा गए और दादी की ओर प्रश्नभरी निगाह से देखने लगे। दादी ने सकुचाते हुए उन दोनों को कुणाल के बारिश में नहाने वाली सारी बात बता दी। मम्मी ने अपना माथा पकड़ लिया। लेकिन दादाजी ने समझाया कि यह समय चिंता या कुणाल पर गुस्सा करने का नहीं है। हमें पहले कुणाल को संभालना होगा। मम्मी ने उठकर कुणाल का टेम्परेचर नोट किया। उनके मुंह से निकला, ‘बाप रे! 102 डिग्री बुखार! कुणाल लगभग बेहोश हो चुका था!’
दादाजी जल्दी से ऑटो लेकर आए। मम्मी और दादाजी दोनों उसे लेकर अस्पताल की ओर भागे। दादीजी ने पापा के ऑफिस फोन कर दिया, पापा भी जल्दी-जल्दी ऑफिस से सीधे अस्पताल पहुंचे। कुणाल को तेज ठंड भी लग रही थी और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। मम्मी-पापा, दादा-दादी के साथ ही सभी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, कुणाल के दोस्तों, स्कूल के टीचर्स, सबको कुणाल की बहुत ज्यादा फिक्र हुई। सबने कुणाल के ठीक होने के लिए अपनी-अपनी तरह से ईश्वर से प्रार्थनाएं कीं। जब कुणाल को होश आया तो उसने देखा कि सब बड़े परेशान हैं। उसको बड़ा दुख हो रहा था। धीरे-धीरे उसका बुखार ठीक हुआ, फिर जुकाम ठीक हुआ और खांसी को ठीक होने में तो बहुत दिन लगे। मतलब कि कुणाल को पूरी तरह स्वस्थ होने में पूरा महीना लग गया। उसके स्कूल की पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ, मम्मी को अपने स्कूल की और पापा को ऑफिस की कई-कई छुट्टियां उसके बीमार पड़ने और अस्पताल के चक्कर काटने की वजह से करनी पड़ीं। दादीजी को बहुत दिनों तक यही अफसोस रहा कि अगर मैं कुणाल को बारिश में नहाने से रोक लेती तो यह सब न होता। पर कुणाल इस घटना से और समझदार हो गया था। सबकी परेशानी, सबकी चिंता को समझ रहा था। बीमार होने की वजह से कोई उसे डांट भी नहीं रहा था। उसे बार-बार अपने-आप पर शर्म आ रही थी और यही पछतावा हो रहा था कि मेरी जरा-सी लापरवाही और थोड़ा-सा मजा करने के चक्कर में कितनी बड़ी आफत आ गयी। उसने यह फैसला किया कि अब वो बारिश में इतनी देर कभी नहीं नहाएगा।

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