Suraj Ki kiran |
अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक दल ने अब हाइ ड्रोजन को बिजली के अलावा सूरज की किरण से अलग करने की यह तकनीक खोजी है। उन्होंने इसका सफल प्रयोग भी किया है। सूरज की किरणें इस तकनीक के तहत वैसे ही इस्तेमाल की जाती हैं जिस तरह उनकी मदद से मैग्निफाइंग ग्लास के जरिये आग जलायी जाती है। वैज्ञानिकों ने स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन का विकल्प बताया था, लेकिन अब तक हाइड्रोजन को पानी से अलग करने की कोई स्वच्छ तकनीक नहीं खोजी जा सकी थी। कोलोरैडो प्रांत के वैज्ञानिकों के एक दल ने सौर ऊर्जा के प्रयोग सेहाइड्रोजन और आक्सीजन को अलग-अलग करने की ढूंढ़ निकाली है। इससे अब हाइड्रोजन को स्वच्छ ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल करने का रास्ता साफ हो गया है। अनुसंधान पत्र साइंस के ताजा संस्करण में यह शोध प्रकाशित हुआ है। अनुसंधानकर्ताओं ने कई एकड़ में फैले विशाल सौर उष्मीय पैनलों के घेरे में बने टावर को करीब 1350 से 2500 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करके यह शोध किया है। उन्होंने पैनलों के घेरे में बने टावर में रखे मेटल आक्साइड कंपाउंड की मदद से वाष्प से हाइड्रोजन को अलग किया। ये सभी पैनल सूर्य की किरणों को एक खास बिंदु से टावर की ओर भेजते हैं। हाइड्रोजन को आक्सीजन से अलग करने की यह विधि प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं छोड़ती है। कोलोरैडो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलन वीमर के अनुसार इस तकनीक से सबसे पहले आक्सीजन हाइड्रोजन से अलग होता है। आक्सीजन का मुक्त अणु दूसरे आक्सीजन की खोज करता है, लेकिन इस प्रणाली में प्रयुक्त पानी वाष्प में परिवर्तित होकर आक्सीजन को मेटल आक्साइड की सतह पर रहने को मजबूर कर देता है। इसी के बाद हाइड्रोजन आक्सीजन से पूरी तरह अलग होकर गैस बन जाता है। इस गैस को एक खास तरह से निर्मित किये गये जार में एकत्र किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि मेटल आक्साइड उच्च तापमान पर गर्म न हो पाये, क्योंकि इससे रासायनिक प्रतिक्रिया और इस संयंत्र को नुकसान पहुंच सकता है। इस तकनीक के जरिये उतपदित होने वाले हाइड्रोजन गैस की मात्रा आयरन, कोबाल्ट, एल्यूमीनियम के मिश्रण से बने मेटल आक्साइड और वाष्प की मात्रा पर निर्भर करती है।
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