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ऐसे में श्रवण साहिल को रंगीनियत के टिप्स देने पर तुला है। पर साहिल है पक्का प्रेमिका भक्त मुंडा। मोटे तौर पर कहें तो श्रवण साहिल का घर बसने से पहले ही उसे तोड़ने के गुर सिखा रहा है। ना नुकुर करते-करते आखिर साहिल श्रवण के झांसे में आ भी जाता है और फिर सारा गुड़गोबर हो जाता है। जॉली एलएलबी जैसी फिल्म के बाद अरशद वारसी का ये रूप भाता है। पूरी फिल्म में वही छाए रहे हैं। हालांकि अरशद के अभिनय का अंदाज वही पुराना है, लेकिन वो बांधे रखते हैं। नए कलाकार ताहिरा और आकाश लाख कोशिशों के बावजूद प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। इन दो कलाकारों को छोड़ कर फिल्म के तमाम चरित्र कलाकार अपने छोटे-छोटे रोल में जमे हैं। हालांकि फिल्म की कहानी भी बहुत प्रभावित नहीं करती, लेकिन विशेष प्रभाव की मदद से टीनू आनंद जैसे इकहरे बदन वाले व्यक्ति को पहलवान के रूप में देखना गुदगुदाता है।
इसी तरह से सूरी के रूप में एक शादीशुदा मर्द होते हुए भी अपनी पत्नी को बात-बात पर बेवकूफ बनाने की कला में माहिर शक्ति कपूर का रोल भी ठीक है। निर्देशक अमृत सागर ने इससे पहले एक फिल्म बनाई थी ‘1971’। ये फिल्म उसके बिलकुल उलट है। ये फिल्म उनके निर्देशन कौशल के आसपास भी नहीं फटकती। फिल्म केवल कुछेक सीन्स में ही बांधे रखती है। संगीत औसत है। अरशद वारसी के फैन हैं तो फिल्म बुरी नहीं है।
कलाकार: अरशद वारसी, आकाश चोपड़ा, ताहिरा कोचर, परेश रावल, राज बब्बर, टीनू आनंद, शक्ति कपूर, अनुराधा पटेल, राकेश बेदी, नवनी परिहार, रिया सेन, हिमानी शिवपुरी, सुष्मिता मुखर्जी
निर्देशक: अमृत सागर
निर्माता: मोती सागर
बैनर: मोती सागर प्रोडक्शंस, सीता फिल्म्स
संगीत: सलीम-सुलेमान
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