क्या आपकी याददाश्त कमजोर हो रही है? आप अक्सर भूल जाते हैं कि किस शहर में
हैं, कौन-सा महीना या साल चल रहा
है। बेवजह गुस्सा आता है? तारीख भी किसी
से पूछनी पड़ती है? अगर हां, तो आप डिमेंशिया के शिकार हो सकते हैं। क्या
है ये बीमारी और कैसे बचेंगे इससे, बता रही हैं आरती मिश्र
एक मल्टीनेशनल कंपनी में वरिष्ठ पद पर काम कर रहीं नंदिता अभी 32
साल की ही हैं, लेकिन वे अक्सर ऑफिस में दिए गए अपॉइंटमेंट्स भूल जाती हैं।
कुछ दिन पहले तो वे अपने एक पूर्व सहकर्मी से जब मिलीं तो काफी देर तक
उन्हें उसका नाम ही याद नहीं आया। अक्सर घर में रखे समान तक उन्हें याद
नहीं रहते। वे इसे अपनी भागमभाग जिंदगी का एक हिस्सा ही समझ रही थीं, लेकिन
जब समस्या बढ़ने लगी तो पता चला कि वे डिमेंशिया बीमारी की ओर बढ़ चली
हैं।
यूं आमतौर पर अल्जाइमर या डिमेंशिया को बुढ़ापे की बीमारी ही माना जाता है,
लेकिन खराब खानपान और आधुनिक जीवनशैली कब आपको इसका शिकार बना दें, कह
नहीं सकते।
क्या है डिमेंशिया
डिमेंशिया शब्द डीई यानी (बिना) और एमईएनटीआईए (मेंशिया यानी दिमाग) को
जोड़कर बनाया गया है। दरअसल, यह रोग है दिमाग की कार्यक्षमता के कम होने
का। यह दिमाग की बनावट में शारीरिक बदलावों के परिणाम स्वरूप होता है। ये
बदलाव स्मृति, सोच, आचरण और मनोभाव को प्रभावित करते हैं।
मोटे तौर पर यह याददाश्त कम होने का सूचक है। जैसे-जैसे यह बढ़ता जाता है,
व्यक्ति नियमित कार्यों को करने में अक्षम हो जाता है। इसका एक रूप
अल्जाइमर बीमारी भी है। डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति अपना पर्स रखकर भूल
जाता है, बिल पे करना, खाना बनाना, जरूरी लोगों से मिलना, पड़ोसियों के
चेहरे-नाम तक याद रखना भूल जाता है। इसके बाद ये लक्षण तेजी से बढ़ते हैं।
क्या है कारण
डिमेंशिया बीमारी दिमाग के कुछ खास सेल्स नष्ट होने से होती है। इन सेल्स
के नष्ट होने से दिमाग के भीतर के अन्य सेल्स आपस में संचार नहीं कर पाते,
जिससे सोचने की शक्ति कम होती है, व्यवहार और अनुभूतियों में दिक्कत आती
है। डॉक्टर बताते हैं कि हमारे दिमाग के भीतर कई हिस्से होते हैं, जो
अलग-अलग कार्य करते हैं। किसी हिस्से में सेल्स नष्ट होने से वह हिस्सा
अपना कार्य सुचारू तरीके से नहीं कर पाता और दिक्कतें आरंभ हो जाती हैं।
अलग-अलग तरह का डिमेंशिया दिमाग के अलग-अलग हिस्सों के प्रभावित होने से
होता है। उदाहरण के लिए अलजाइमर बीमारी का कारण है दिमाग के भीतर कुछ खास
तरह के प्रोटीन स्तर का उच्च होना। जब भी दिमाग में किसी तरह की गड़बड़ी
होती है तो सबसे पहले दिमाग का वह हिस्सा प्रभावित होता है, जो याददाश्त को
समेटे रखता है। इसे हिपोकैंपस कहते हैं। इस हिस्से के ब्रेन सेल्स सबसे
पहले नष्ट होते हैं।
ये है पहला लक्षण
डिमेंशिया का पहला लक्षण है भूलना। ऐसे लोग अक्सर काम करने के बीच में ही
भूल जाते हैं कि वे क्या कर रहे थे। चीजों को रखकर भूल जाते हैं, लोगों के
नाम भूल जाते हैं, समय-तारीख और कहां जा रहे हैं, ये तक भूलने लगते हैं।
इसके अलावा इन्हें माइंड गेम खेलने में दिक्कत आती है। रोज के रास्तों में
ही खो जाते हैं, बोलने में दिक्कत आनी आरंभ होती है। पहले जो काम करने में
मजा आता था, उसका अब उतना अधिक आनन्द नहीं ले पाते। इनका व्यवहार भी बदलने
लगता है।
डिमेंशिया में एक स्थिति ऐसी भी आ जाती है, जब इससे पीड़ित व्यक्ति रोज के
काम नहीं कर पाता। खाना खाने का तरीका उसे याद नहीं रहता, कपड़े नहीं पहन
पाता, नहा नहीं पाता आदि। वह अपने परिवार के लोगों को नहीं पहचान पाता, कोई
बात उसकी समझ में नहीं आती।
लक्षण
ये मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है। हम अपने दैनिक कार्यो के लिए मस्तिष्क
पर ही निर्भर हैं। इसलिए सबसे पहला असर हमारे कामों पर दिखता है, स्वभाव पर
पड़ता है। पहले तो चीजें रखकर भूल जाना, तारीख भूलना जैसी साधारण समस्याएं
होती हैं, लेकिन बाद में चल पाना, बात करना और खाने-पीने तक में दिक्कत
होने लगती है। कुछ में तो खाना खाना, चबाना तक भूलने की समस्या देखी गई है।
दरअसल, पहले लोग लक्षणों को समझ नहीं पाते, न ही उनके आसपास के लोग उनके
व्यवहार में हो रहे बदलावों को भांप पाते हैं। ऐसा व्यक्ति कभी भुलक्कड़ कह
दिया जाता है तो कभी थका हुआ बताया जाता है। सामान्य तौर पर इसके लक्षणों
में याददाश्त कमजोर होना, बातों को दोहराना, निर्णय न ले पाना, काम करने
में दिक्कत होना, स्वभाव में बदलाव, बोलने में दिक्कत, गाड़ी चलाने में
परेशानी आदि को शामिल किया जा सकता है। पर इसके दूसरे चरण में दिमाग के कई
हिस्से प्रभावित हो जाते हैं। फिर लोगों को कपड़े बदलने, शौच जाने, नहाने
और खाने में भी दिक्कत होने लगती है।
दैनिक जीवन में बदलाव
नंबर जोड़ने में दिक्कत होना, बिना कारण चिल्लाना-गुस्सा करना, लोगों पर शक
करना, गुमसुम रहना, कुछ काम आरंभ करना और फिर उसे भूल जाना और बीच में ही
छोड़ देना, दिन-तारीख भूल जाना, रोज के कामों को करने में मुश्किल होना,
हाल ही में हुई घटनाएं भूल जाना, किसी चीज को देखकर समझ न पाना कि वह क्या
है, कपड़े गलत पहन लेना आदि।
क्यों है खतरनाक
डिमेंशिया में दिमाग में होने वाले बदलाव स्थिर होते हैं। यानी
उन्हें किसी भी तरीके से पहले जैसा नहीं किया जा सकता। डॉक्टर मानते हैं कि
दिमाग के कुछ खास हिस्सों में प्रोटीन स्ट्रक्चर्स में अनियमितता इसका
प्रमुख कारण होता है। उम्र बढ़ने के साथ इस तरह की समस्याएं होती जाती हैं।
इसके अलाव डिमेंशिया रोग ऐसे संक्रमण से भी हो सकता है, जो सीधा दिमाग को
प्रभावित करते हैं, जैसे एचआईवी। पार्किसन रोग से भी इसके होने की आशंका
होती है।
कैसे होती है जांच
डॉक्टर कई तरह की जांच करते हैं। इनमें विटामिन बी12 का स्तर, अमोनिया स्तर, रक्त के रसायन, थायरॉइड जांच, हेड सीटी आदि शामिल हैं।
क्या है उपचार
डिमेंशिया किस लेवल पर है, इस बात की अच्छी तरह जांच करने के बाद
ही उपचार आरंभ किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मानसिक व्यायाम से भी
इसके उपचार में मदद मिलती है।
तेजी से फैलती ये बीमारी
24.3 मिलियन लोग 2005 में पूरी दुनिया में इसकी चपेट में थे। यह जानकारी मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में छपे एक शोध में दी गई थी।
4.6 मिलियन नए मरीज इसमें हर साल जुड़ रहे हैं। इस तरह हर दो दशक में ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी हो रही है।
81.1 मिलियन लोग 2040 तक दुनियाभर में इससे पीड़ित होंगे। मरीजों की हर साल बढ़ती संख्या को देखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
07 लाख लोग लंदन में इस बीमारी से पीड़ित हैं। यह संख्या ब्रिटेन की अल्जाइमर सोसायटी द्वारा जारी की गई है।
9.5 लाख लोग 2021 तक इसकी चपेट में आ जाएंगे। यह संभावना इस वजह से बन रही है कि लोगों में हर साल यह बीमारी बढ़ती जा रही है।
दिमाग को स्वस्थ बनाएं
डिमेंशिया का पूरी तरह इलाज संभव नहीं है, लेकिन कुछ उपाय अपनाकर खुद को इससे लंबे समय तक बचाया जा सकता है।
फुर्तीले रहें
दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए दिल को तंदुरुस्त रखना जरूरी है। खून
का संचालन जब तक सुचारू रूप से चलता रहेगा, तब तक हमारा दिल और दिमाग दोनों
ही स्वस्थ रहेंगे। व्यायाम इसमें मददगार साबित होता है। इसके लिए रोजाना
जिम जाने की जरूरत नहीं है। हर दिन 20 मिनट का व्यायाम आपके दिल और दिमाग
दोनों को सुरक्षित रख सकता है।
खाने-पीने का ध्यान रखें
ओमेगा-3 फैटी एसिड अल्जाइमर और डिमेंशिया से लड़ने में मदद करता है।
मछलियों में खासकर सालमन, टूना में ओमेगा-3 की अत्यधिक मात्र पाई जाती है।
बादाम का सेवन भी लाभदायक है।
जंक फूड से बचें
डॉक्टरों के मुताबिक डिमेंशिया से बचने के लिए संतुलित आहार और स्वस्थ रहना
जरूरी है। इसलिए जितना संभव हो, जंक फूड से बचें। खाने में फल और सब्जियों
को शामिल करें। एक शोध के मुताबिक डायबिटीज के रोगी अल्जाइमर और डिमेंशिया
के जल्दी शिकार होते हैं।
तनाव न पालें
डिमेंशिया से बचने के लिए जरूरी है कि दिमाग को शांत रखा जाए। अत्यधिक तनाव
की वजह से भी इसका खतरा बढ़ जाता है। एक शोध के मुताबिक, तनाव और अवसाद
डिमेंशिया को जन्म देते हैं।
अच्छी नींद है जरूरी
स्वस्थ दिमाग के लिए सोना बेहद जरूरी है। नींद में गड़बड़ी शरीर
में मौजूद प्रोटीन एमिलॉयड बीटा को असंतुलित कर देती है, जिसकी वजह से
अल्जाइमर होने का खतरा बना रहता है।
धूम्रपान छोड़ दें
शोधकर्ताओं के मुताबिक धूम्रपान और शराब की लत आपके दिमाग को सात
साल पहले बूढ़ा बना सकती है। धूम्रपान और शराब दिमाग की कोशिकाओं को मार
देते हैं।
सामाजिक बनें
आपकी सामाजिक गतिविधियां भी कुछ हद तक डिमेंशिया से लड़ने में मदद करती हैं। इसलिए सामाजिक गतिविधियों में भाग लें।
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