Wednesday, 31 July 2013

उत्तर प्रदेश के थानों में पांच रुपये में भर पेट भोजन कराती है पुलिस !

यूपी पुलिस
केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा गरीबी का बेतुका मानक तय किए जाने के बाद भर पेट भोजन को लेकर देश भर में हायतौबा मची है. लेकि
न उत्तर प्रदेश पुलिस अभी भी हिरासती व्यक्ति को पिछले एक दशक से पांच रुपये में भर पेट भोजन करा रही है.
केन्द्रीय योजना आयोग ने हाल ही में ग्रामीण क्षेत्र में 27 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोजाना खर्च करने वाले को अमीर का दर्जा दिए जाने का बेतुका मानक तय किया. इसके बाद कांग्रेसी नेताओं के बयानों के बाद समूचे देश में भोजन को लेकर गरीबी और अमीरी को परिभाषित करने की बहस छिड़ गई है.
उल्लेखनीय है कि राज बब्बर ने 12 रुपये, रशीद मसूद ने पांच रुपये और केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला एक रुपये में भर पेट भोजन की बात कही थी. कांग्रेसी नेता रोजाना कितने रुपये में पेट भरते हैं, यह तो वे खुद जानें, पर तल्ख सच्चाई यह है कि देश के किसी भी हिस्से में नेताओं के रेट पर भर पेट भोजन नहीं मिलता और उत्तर प्रदेश की पुलिस पिछले एक दशक से, हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पांच रुपये के सरकारी मानक में भर पेट भोजन करा रही है, और इसी मानक के अनुसार सूबे की सरकार भुगतान भी करती आई है.
हालांकि भोजन के इस पांच रुपये में भी पुलिस खेल करती रहती है, क्योंकि ज्यादातर थानों के हवालातों में बंद व्यक्ति के भोजन का इंतजाम उसके परिजन ही करते हैं.
बांदा के अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद के अनुसार, एक दशक पूर्व, हिरासत में लिए गए व्यक्ति के भोजन के लिए शासन से सिर्फ दो रुपए प्रति खुराक का प्रावधान था, बाद में मंहगाई को देखते हुए यह रकम बढ़ा कर पांच रुपये कर दी गई है. रकम थाना प्रभारियों को उपलब्ध करा दी जाती है.
स्वामी प्रसाद कहते हैं, 'आज आसमान छू रही मंहगाई को देखते हुए यह धनराशि ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है, लेकिन एक दशक से इस धनराशि में कोई इजाफा नहीं किया गया.' वह कहते हैं, 'होटल से पांच रुपये में अच्छी चाय भी नहीं मिल पाती, परंतु पुलिस किस तरह पांच रुपये में भर पेट भोजन उपलब्ध कराती होगी? आप अंदाजा लगा सकते हैं.'
बिसंडा के थानाध्यक्ष पंकज तिवारी का कहना है, 'वैसे तो हिरासत में लिए गए आसपास के गांवों के व्यक्तियों के भोजन का इंतजाम उनके परिजन ही करते हैं, यदि दूर-दराज का व्यक्ति पकड़ा गया तो सिपाहियों का पेट काट कर भोजन देना मजबूरी होती है.'
उनके अनुसार जिले के अधिकारी उसी व्यक्ति के नाम का भुगतान करते हैं, जिन्हें न्यायालय में पेश किया जाता है. जबकि अक्सर ऐसे भी व्यक्ति हिरासत में लिए जाते हैं, जिन्हें जेल नहीं भेजा जा सकता और उनके पेट का प्रबंध अपनी जेब से करना पड़ता है.
पुलिस हिरासत में भोजन की हकीकत जानने के लिए एक संवाददाता ने बांदा जेल में बंद रहे तेन्दुरा गांव के विचाराधीन युवक रिंकू उर्फ संकल्प से मुलाकात की. उसने बताया कि उसे चार दिन नरैनी पुलिस की हिरासत में रहना पड़ा था. एक भी दिन पुलिस ने खाना नहीं दिया. तीसरे दिन उसके परिजन खाना लेकर पहुंचे, तब कहीं भूख मिटी.
मुकदमा अपराध संख्या-149/20013 में गिरफ्तार इस युवक के नाम भुगतान की गई धनराशि के बारे में पुलिस लाइन बांदा में तैनात प्रतिसार निरीक्षक (आरआई) ने बताया कि नरैनी पुलिस को तीन खुराक के हिसाब से केवल 15 रुपये का भुगतान किया गया है. अब इस युवक के मामले से साफ जाहिर होता है कि स्थानीय पुलिस ने उसे एक बार भी भोजन नहीं दिया और उसके नाम पर मिले 15 रुपये भी हजम कर गई.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/-up-police-feeds-prisoner-in-5-rs--1-737691.html

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