Monday, 15 July 2013

श्राप : इस गांव में अगर बेचा जाता है दूध, तो थन से बहने लगती है खून की धारा!

श्राप : इस गांव में अगर बेचा जाता है दूध, तो थन से बहने लगती है खून की धारा!हिसार.  इस गांव की परंपरा को जानकर न सिर्फ आपको है रानी होगी, बल्कि आप चौंक जाएंगे कि देश में फैलते दूध के कारोबार के बावजूद हरियाणा के इस गांव में दूध नहीं बेचा जाता। जी हां कुछ ऐसी ही परंपरा को दशकों से गांव वाले निभाते आ रहे हैं।
गांव के लोग दूध पीते जरूर हैं और दूध भी गांव को भरपूर मिलता है, लेकिन दूध को बेचना इनके लिए श्राप समान है। भिवनी जिले में नाथूवास गांव में दशकों से दूध नहीं बेचा गया है।
गांव में करीब 1400 घर हैं और प्रत्येक घर में पशु हैं। जिस घर में पशु दूध नहीं देते उसे भी दूध मिल जाता है। इसके लिए उस परिवार को कोई पैसा नहीं चुकाना होता।
दशकों पहले फैली थी भयंकर बीमारी

गांव के बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें याद नहीं कि कभी गांव में दूध या लस्सी बेची जाती रही है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में कई दशकों पहले पशुओं में कोई भयंकर बीमारी फैली थी। जिससे पशु एक-एक कर मरने लगे।
गांव के मंदिर के महंत फूलगिरी महाराज ने ग्रामीणों को अपने पशुओं का दूध मंदिर में चढ़ाने तथा दूध न बेचने की सलाह दी।
इस सलाह पर लोगों ने अमल किया तो बचे हुए सभी पशु स्वस्थ हो गए। जिन्होंने सलाह नहीं मानी उनका पशुधन भी नहीं बचा। तभी से गांव में यह मान्यता है कि कोई भी दूध नहीं बेचेगा।
उस घटना के बाद से गांव के मंदिर में हर छह माह के बाद पूर्णिमा को भंडारा लगाया जाता है और दूध भी खूब चढाया जाता है।



आज भी बीमार होते हैं पशु

गांव के लोग आज भी मानते हैं कि दूध बेचने पर पशुओं के थनों से दूध के बजाय या तो खून आने लगता है या फिर पशुओं को कोई और बीमारी लग जाती है।
छत्तीस बिरादरी के लोग न केवल मंदिर में आकर दूध चढ़ाते हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर दूसरों के दूध भी देते हैं।


माना जाता है कि अगर गांव का कोई व्यक्ति बाहर जाकर दूध बेचने का काम करता है या डेयरी चलाता है तो उसका कारोबार नहीं चलता।

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