असम में एक शिकारी अवैध शिकार के जोखिमों और निर्दोष जानवरों की बेबसी
देखकर इतना प्रभावित हुआ, कि वह शिकार करना छोड़कर वन्यजीवों का संरक्षक बन
गया।
90 के दशक में महेश्वर बसुमतारी जब 19 साल के थे, तो उन्हें वन्यजीवों का शिकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन जल्द ही उन्हें अवैध शिकार में जोखिम का एहसास हो गया और वन्यजीवों की बेबसी ने उसे बदल दिया। वह अंतत: शिकारी से वन्यजीवों एवं पर्यावरण के संरक्षक बन गए।
अपने साथियों के बीच ओंतेई नाम से जाने जाने वाले महेश्वर ने बताया कि वह मानस अभयारण्य के आवागमन के रास्तों से भली प्रकार से परिचित थे इसलिए शिकारी उनकी मदद लेते थे। उन्होंने कहा, कि मेरा विवाह 19 वर्ष की आयु में हो गया था और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं था। मेरे पास शिकारी बनने के अलावा कोई चारा नहीं था। हालांकि जब मेरी पत्नी को मेरी आय के स्रोत का पता चला तो उसने मुझे छोड़ दिया।
महेश्वर ने 2005 में वन विभाग एवं बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद उन्होंने मानस राष्ट्रीय उद्यान में सुधार का काम करने वाले एक संगठन में शामिल होकर अपनी नई यात्रा की शुरुआत की।
भारतीय पशु कल्याण-वन्यजीव ट्रस्ट के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड के क्षेत्रीय प्रमुख भास्कर चौधरी ने कहा कि उन्हें तेंदुआ पुनर्वास परियोजना में मदद के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति की तलाश थी, जो यहां की परिस्थितियों, वन्यजीवों, उनके प्राकृतिक वास और व्यवहार के बारे में जानता हो और उन्हें इसके लिए महेश्वर एक दम उचित व्यक्ति लगा।
महेश्वर ने कहा कि वह इस परियोजना से जुड़कर गौरवान्वित हैं। उन्होंने कहा कि मेरा परिवार और मित्र मुझे ऐसा कार्य करते टीवी पर देख सकते हैं, जिससे वे गर्व महसूस कर सकें।
90 के दशक में महेश्वर बसुमतारी जब 19 साल के थे, तो उन्हें वन्यजीवों का शिकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन जल्द ही उन्हें अवैध शिकार में जोखिम का एहसास हो गया और वन्यजीवों की बेबसी ने उसे बदल दिया। वह अंतत: शिकारी से वन्यजीवों एवं पर्यावरण के संरक्षक बन गए।
अपने साथियों के बीच ओंतेई नाम से जाने जाने वाले महेश्वर ने बताया कि वह मानस अभयारण्य के आवागमन के रास्तों से भली प्रकार से परिचित थे इसलिए शिकारी उनकी मदद लेते थे। उन्होंने कहा, कि मेरा विवाह 19 वर्ष की आयु में हो गया था और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं था। मेरे पास शिकारी बनने के अलावा कोई चारा नहीं था। हालांकि जब मेरी पत्नी को मेरी आय के स्रोत का पता चला तो उसने मुझे छोड़ दिया।
महेश्वर ने 2005 में वन विभाग एवं बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद उन्होंने मानस राष्ट्रीय उद्यान में सुधार का काम करने वाले एक संगठन में शामिल होकर अपनी नई यात्रा की शुरुआत की।
भारतीय पशु कल्याण-वन्यजीव ट्रस्ट के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड के क्षेत्रीय प्रमुख भास्कर चौधरी ने कहा कि उन्हें तेंदुआ पुनर्वास परियोजना में मदद के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति की तलाश थी, जो यहां की परिस्थितियों, वन्यजीवों, उनके प्राकृतिक वास और व्यवहार के बारे में जानता हो और उन्हें इसके लिए महेश्वर एक दम उचित व्यक्ति लगा।
महेश्वर ने कहा कि वह इस परियोजना से जुड़कर गौरवान्वित हैं। उन्होंने कहा कि मेरा परिवार और मित्र मुझे ऐसा कार्य करते टीवी पर देख सकते हैं, जिससे वे गर्व महसूस कर सकें।
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