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समाचारों की बाढ़ में कई बार महत्वपूर्ण घटनाएं भी आवश्यक चर्चा से वंचित रह जातीं हैं। ऐसा ही कुछ पड़ोसी देश भूटान के आम चुनाव परिणामों के मामले में हुआ है। वहां के संसदीय चुनाव में मुख्य विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की विजय तो इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि आने वाले पांच वर्ष तक उसके नेतृत्व में वहां सरकार चलने की संभावना है और हमारा सीधा संबंध उस सरकार से रहेगा। उसकी जीत पर भूटान विशेषज्ञों को भी आश्चर्य हुआ, क्योंकि ज्यादातर यही मान रहे थे कि सत्तारूढ़ द्रुक फ्यूनसम शोग्पा पार्टी (डीपीटी) ही सत्ता में वापस आएगी। भूटान के संसदीय चुनाव दो चरणों में होते हैं। पहले चरण में जिन दो दलों को सर्वाधिक बहुमत मिलता है उनके बीच दूसरे चरण में मुकाबला होता है। 31 मई को हुए पहले चरण के चुनाव में डीपीटी को 33 और पीडीपी को 12 स्थान मिले थे। लेकिन डेढ़ महीने में परिणाम ऐसा पलटा जिसकी कल्पना मुश्किल थी।
पूर्व प्रधानमंत्री जिग्मे वाई थिनले द्वारा मनमाने ढंग से विदेश नीति का संचालन करने से भारत में असहजता महसूस की जा रही थी। खासकर चीन के प्रति निकटता का उनका अति उत्साह ऐसे नीतिगत परिवर्तन का संकेत दे रहा था जिसकी हवा में भारत-भूटान संबंधों की स्थापित दीवारों के ढहने का संकेत छिपा था। 1949 की ‘भारत-भूटान मैत्री संधि’ में प्रावधान था कि भूटान अपनी विदेश नीति भारत की सलाह पर संचालित करेगा, लेकिन 2007 में संधि के नवीनीकरण के बाद यह प्रावधान हट गया था, पर व्यावहारिक रुप में भारत के अंदर आम धारणा यही रही है कि भूटान की विदेश नीति का निर्धारण भारत की सलाह से हो। इसीलिए चीन से निकटता बढ़ाने का प्रयास हतप्रभ करने वाला था। पिछले वर्ष ब्राजील के रियो द जेनेरो में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान थिनले ने चीन के प्रधानमंत्री से मुलाकात तक की थी जिसकी जानकारी भारत को नहीं थी। चीन के साथ अब तक भूटान के राजनयिक संबंध नहीं हैं।
पिछले दिनों चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद हल करने की जो घोषणा की उसकी तार्किक परिणति वही होनी थी। चुंबी घाटी तक चीन की रेल लाइन बिछाने की योजना से भूटान और चीन की नजदीकी और बढ़ सकती है। भारत और भूटान के रिश्ते काफी गहरे हैं। भूटान की सभी 10 पंचवर्षीय योजनाएं भारत की सहायता पर ही चलीं हैं। जल विद्युत परियोजनाएं भारत की सहायता से चल रही हैं। यह बात अलग है कि बिजली हमें ही मिल रहा है। वैसे यह भी कहा जाता है कि भारत की तरफ से पेट्रोल और गैस पर भूटान को दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती की बात से वहां माहौल भारत के खिलाफ हो गया था। कुछ भी हो, मामला इस हद तक न पहुंच सके इसका खयाल रखने की जिम्मेदारी भारत सरकार की ही थी, जिसमें वह पूरी तरह कामयाब नहीं रही।
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