लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती रफ्तार को
रोकने तथा महिलाओं के सशक्तिकरण और वर्षों से संसद में लटके बहु
प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक के बीच घनिष्ठ संबंध बताया है, लेकिन साथ
ही इस विधेयक के भविष्य को लेकर संशय भी जाहिर किया है।
मीरा कुमार ने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगायी जा सकती है और इस कड़ी में महिला आरक्षण विधेयक बहुत महत्व रखता है। उन्होंने सशंकित लहजे में कहा कि ये विधेयक बहुत दिनों से लंबित है, लेकिन इस पर सबकी सहमति नहीं है। जब तक सब की सहमति नहीं हो जाती, इसका पारित होना संभव नहीं लगता। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाला यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है, लेकिन वर्षों से लोकसभा में लंबित है। पहली संप्रग सरकार ने मई 2008 में महिला आरक्षण विधेयक (108वां संशोधन) पेश किया था। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित कुल सीटों की एक तिहाई सीटें इन समूहों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। समाजवादी पार्टी और राजद जैसे दलों के इस विधेयक में कोटे के भीतर कोटे का प्रावधान किए जाने पर अड़े रहने संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि सब को मिलकर महिला आरक्षण विधेयक पर आम राय बनानी चाहिए। सपा और राजद के अलावा बसपा, शिवसेना तथा कई अन्य दल भी विधेयक के मौजूदा प्रारूप के खिलाफ हैं। महिलाओं को आरक्षण संबंधी इसी प्रकार के विधेयक 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में भी पेश किए जा चुके हैं, लेकिन वे संबंधित लोकसभाओं के भंग होने के साथ ही समाप्त हो गए। इस संबंध में सबसे पहला विधेयक लोकसभा में देवगौड़ा सरकार द्वारा 12 सितंबर 1996 को पेश किया गया था।
मीरा कुमार ने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगायी जा सकती है और इस कड़ी में महिला आरक्षण विधेयक बहुत महत्व रखता है। उन्होंने सशंकित लहजे में कहा कि ये विधेयक बहुत दिनों से लंबित है, लेकिन इस पर सबकी सहमति नहीं है। जब तक सब की सहमति नहीं हो जाती, इसका पारित होना संभव नहीं लगता। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाला यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है, लेकिन वर्षों से लोकसभा में लंबित है। पहली संप्रग सरकार ने मई 2008 में महिला आरक्षण विधेयक (108वां संशोधन) पेश किया था। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित कुल सीटों की एक तिहाई सीटें इन समूहों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। समाजवादी पार्टी और राजद जैसे दलों के इस विधेयक में कोटे के भीतर कोटे का प्रावधान किए जाने पर अड़े रहने संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि सब को मिलकर महिला आरक्षण विधेयक पर आम राय बनानी चाहिए। सपा और राजद के अलावा बसपा, शिवसेना तथा कई अन्य दल भी विधेयक के मौजूदा प्रारूप के खिलाफ हैं। महिलाओं को आरक्षण संबंधी इसी प्रकार के विधेयक 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में भी पेश किए जा चुके हैं, लेकिन वे संबंधित लोकसभाओं के भंग होने के साथ ही समाप्त हो गए। इस संबंध में सबसे पहला विधेयक लोकसभा में देवगौड़ा सरकार द्वारा 12 सितंबर 1996 को पेश किया गया था।
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