तेलंगाना पर संप्रग के फैसले पर जहां मायावती ने खुशी जताई, वहीं
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाराजगी जाहिर की है। उधर प्रमुख विपक्षी दल
भाजपा व वाम दलों ने कुछ शंकाओं की ओर इशारा किया है।
अलग तेलंगाना राज्य ब नाने के संप्रग के फैसले पर प्रसन्नता और शंका दोनों जाहिर करते हुए भाजपा ने बुधवार को मांग की कि राज्य पुनर्गठन आयोग का फिर से गठन करके बुंदेलखंड राज्य सहित पृथक राज्य बनाने के सभी प्रस्तावों पर विचार किया जाए। पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती और प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने नई दिल्ली में संयुक्त प्रेस वार्ता में यह मांग की। उमा ने कहा कि राज्य पुनर्गठन आयोग को फिर से बनाया जाए और अलग राज्य बनाने के जो अन्य प्रस्ताव फैसले से वंचित रह गए हैं, उन पर भी विचार किया जाए। उन्होंने कहा कि इनमें मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों को मिलाकर उसे पृथक राज्य बनाने और उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने के बसपा प्रमुख मायावती के प्रस्ताव सहित ऐसी सभी मांगों पर विचार हो। मायावती की मांग को हालांकि उन्होंने राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि जब चुनाव करीब होते हैं, तभी वह ऐसी मांग उठाती हैं। लोकसभा चुनाव करीब आता देख उन्होंने यह मांग की है और इससे पहले यूपी के अपने शासन के अंतिम दिनों में उन्होंने उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, अवध प्रदेश और बुंदेलखंड में बांटने का प्रस्ताव पारित कराया था। भाजपा नेता ने कहा, बहरहाल जिस भी उद्देश्य से पृथक राज्यों की मांग की गई हो, अच्छा यही होगा कि राज्य पुनर्गठन आयोग का फिर से गठन हो और उसमें अलग राज्यों के सभी प्रस्तावों पर विचार के बाद संसद में उन पर व्यापक चर्चा से अंतिम फैसला किया जाए। तेलंगाना राज्य बनाने के संप्रग के निर्णय पर उमा ने कहा, इस फैसले से भाजपा को प्रसन्नता के साथ शंका और चिंता भी है, क्योंकि एक तो कांग्रेस में ही इसे लेकर फूट है और दूसरे यह कि इस मुद्दे पर यह पार्टी बार-बार धोखाधड़ी करती आई है। वामदलों के अलग अलग सुर
उधर, तेलंगाना के मुद्दे वामदल विभाजित नजर आए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] और रिवोल्यशुनरी सोशलिस्ट पार्टी [आरएसपी] ने इसका विरोध किया। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [भाकपा] और फारवर्ड ब्लाक उसके पक्ष में खड़ी हो गयी। हालांकि चारो दल इस पक्ष में थे कि नये तेलंगाना राज्य के गठन पर आगे बढ़ने के सरकार के फैसले के आलोक में आंध्रप्रदेश के लोग शौहार्द बनाए रखे।
फारवर्ड ब्लाक ने पृथक विदर्भ राज्य के गठन एवं द्वितीय राज्य पुनर्गठन समिति बनाने की भी मांग की ताकि छोटे राज्यों सभी पुरानी मांगों को उचित हल ढूढ़ा जा सके। माकपा पोलित ब्यूरो ने यहां जारी एक बयान में कहा कि ऐसा जान पड़ता है कि तेलंगाना राज्य बनाने का फैसला आगामी लोकसभा चुनाव से बाध्य है। इससे अन्य स्थानों पर पृथक राज्यों की मांगों को बढ़ावा मिलेगा।
तेलंगाना की मांग का समर्थन करने वाली माकपा ने कहा कि वह हमेशा भाषाई राज्य के लोकतांत्रिक सिद्धांत के आधार पर राज्यों की अखंडता के पक्ष में खड़ी रही है। उसने कांग्रेस और संप्रग पर आंध्रप्रदेश को बांटकर तेलंगाना बनाने का फैसला काफी हीलाहवाली तथा श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट मिलने के दो साल से भी अधिक समय बाद किया। माकपा महासचिव प्रकाश करात से इससे पहले कहा कि तेलंगाना राज्य बनाने से देश के अन्य हिस्सों में ऐसी मांग बढ़ेगी। करात ने कहा कि केंद्र सरकार को यह देखने की जिम्मेदारी लेनी होगी कि राज्यों का और विभाजन न हो, चाहे वह पश्चिम बंगाल हो या अन्य कोई। यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि आप राज्य के अंतहीन विभाजन या नये राज्यों का गठन नहीं कर सकते। लेकिन भाकपा सचिव डी राजा ने इस फैसले को काफी देरे से लिया गया निर्णय करार दिया और कहा कि उनकी पार्टी गहर विचार विमर्श और सभी विकल्पों पर गौर फरमाने के बाद पृथक तेलंगाना पर सहमत हुई। उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश के सभी क्षेत्रों को इस फैसले को बिना किसी वैमनस्य या कटुता के भाईचारा के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने साथ ही स्पष्ट किया कि सैद्धांतिक तौर पर भाकपा छोटे राज्यों के गठन के पक्ष में नहीं है, लेकिन तेलंगाना एक बड़ा क्षेत्र है और पृथक राज्य के लिए आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। आरएसपी नेता अबनी राय ने कहा कि उनकी पार्टी छोटे राज्यों के गठन का विरोध करती रही है और झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के गठन के समय भी उसने विरोध किया था। राय ने कहा, यदि लोग चाहते हैं और सरकार राजी हो जाती है तब हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन छोटे राज्यों की मांग त्वरित विकास की जरूरत से प्रेरित होती है। पर, झारखंड और उत्तराखंड के हमारे अनुभव ने दर्शा दिया है कि यह नहीं हो रहा है। इन जनजाति बहुल राज्यों में लोगों का विकास नहीं हुआ। हालांकि फारवार्ड ब्लाक ने इस कदम का स्वागत किया और कांग्रेस पर देरी करने एवं क्षेत्र के लोगों को लंबे समय से बेवकूफ बनाने का आरोप लगाया। उसने यहां जारी एक बयान में सरकार से महाराष्ट्र से विदर्भ बनाने की भी मांग पर विचार करने की मांग की। ममता कांग्रेस पर आग बबूला
दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पृथक तेलंगाना राज्य को मंजूरी देने के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की बुधवार को आलोचना की और इसे 'विभाजनकारी राजनीति' करार दिया। ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उनसे पूछा है कि आखिर इस निर्णय के पीछे क्या कारण हैं? ममता ने यहां राज्य सचिवालय में संवाददाताओं से कहा, ''मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पूछा है कि यह निर्णय सही है या गलत।'' तेलंगाना पर संप्रग के निर्णय ने उत्तरी बंगाल में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को तेज कर दिया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने अपनी मांग के समर्थन में अनिश्चितकालीन बंद का आह्वान किया है। इन सबके मद्देनजर ममता ने कहा कि मैं तेलंगाना के खिलाफ नहीं हूं, यह उनका विशेषाधिकार है। लेकिन अन्य राज्यों से भी यदि इसी तरह की मांग उठने लगे तो क्या होगा? क्या कांग्रेस इन सभी मांगों को मंजूरी देगी और देश को कई टुकड़ों में बांट देगी? यह देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों पर जिम्मेदारी है, वही गैर-जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आखिर यह निर्णय ऐसे वक्त में क्यों लिया गया, जब आम चुनाव होने वाले हैं? कांग्रेस ने पांच साल पहले अपने घोषणा-पत्र में कहा था कि वह पृथक तेलंगाना के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन यह निर्णय अभी क्यों लिया गया, जबकि चुनाव होने वाले हैं? सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ अधिक सीटें मिल जाएंगी? ममता ने कहा कि मैं इस रवैये की आलोचना करती हूं और इस पर हैरान हूं। राजनीतिक उद्देश्य एवं आपसी झगड़ों के कारण संवैधानिक जवाबदेहियों को खतरे में नहीं डाला जाना चाहिए। मायावती गदगद
उधर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने नया तेलंगाना राज्य बनाए जाने का समर्थन करते हुए बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। इसलिए वह केंद्र के इस कदम का समर्थन करती हैं। मायावती ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के विभाजन को लेकर भी केंद्र को जल्द ही प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। राजधानी लखनऊ में पार्टी कार्यालय में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए मायावती ने जहां उप्र के विभाजन की अपनी मांग को फिर से हवा दी, वहीं दूसरी ओर सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर भी जमकर हमला बोला। पृथक तेलंगाना राज्य का समर्थन करते हुए मायावती ने कहा, ''केंद्र सरकार द्वारा यह देर से उठाया गया कदम है, लेकिन केंद्र सरकार के इस कदम के बाद तेलंगाना क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें और आकांक्षाएं पूरी हुई हैं। उम्मीद है कि उनका बेहतर विकास होगा।'' मायावती ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर के पद चिन्हों पर चलने वाली बसपा ने हमेशा छोटे राज्यों और छोटी इकाइयों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, ''उप्र की चार बार मुख्यमंत्री रही हूं और इस दौरान हमने तहसीलों, जिलों एवं मंडलों के अलावा नए पुलिस जोनों को स्थापित किया।'' मायावती ने कहा कि उप्र की 20 करोड़ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य के विभाजन का प्रस्ताव पहले मंत्रिमंडल और फिर विधानसभा में पारित कर 23 नवंबर, 2011 को केंद्र के समक्ष भेजा गया था। प्रस्ताव में उप्र को चा र भागों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिमी एवं हरित प्रदेश में विभाजित करने की बात कही गई थी। यह प्रस्ताव अब तक केंद्र सरकार के समक्ष लंबित है। उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार से मांग करती हूं कि जल्द से जल्द उप्र के विभाजन की प्रक्रिया भी शुरू की जाए, ताकि लोगों का और उपेक्षित क्षेत्रों का समुचित विकास हो सके। मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर जवाबी हमला बोलते हुए कहा, ''उप्र के मुख्यमंत्री मुझे राज्य में न आने की नसीहत दे रहे हैं। इसकी बजाय उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव को उप्र में न घुसने का फरमान जारी करना चाहिए, क्योंकि वह खुद सरकार की कार्यशैली पर कई बार सवाल खडे़ कर चुके हैं। निलंबित आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन को वापस लेने की मांग करते हुए मायावती ने कहा कि सपा के शासन में ईमानदार और निष्ठावान अधिकारियों को काम करने की छूट नहीं है। यह सरकार गुंडों और माफियाओं के हवाले हो चुकी है। सूबे में कानून का राज नहीं रह गया है। मायावती ने कहा कि दुर्गाशक्ति नागपाल के मामले में राज्यपाल और केंद्र को भी संज्ञान लेना चाहिए, वर्ना आने वाले समय में ईमानदार अधिकारियों के सामने और चुनौतियां आ सकती हैं। मायावती ने कहा कि मैं पहले भी कह चुकी हूं कि उप्र में कानून का राज समाप्त हो गया है और इसलिए यहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए और आज मैं फिर अपनी वही मांग दोहरा रही हूं।
अलग तेलंगाना राज्य ब नाने के संप्रग के फैसले पर प्रसन्नता और शंका दोनों जाहिर करते हुए भाजपा ने बुधवार को मांग की कि राज्य पुनर्गठन आयोग का फिर से गठन करके बुंदेलखंड राज्य सहित पृथक राज्य बनाने के सभी प्रस्तावों पर विचार किया जाए। पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती और प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने नई दिल्ली में संयुक्त प्रेस वार्ता में यह मांग की। उमा ने कहा कि राज्य पुनर्गठन आयोग को फिर से बनाया जाए और अलग राज्य बनाने के जो अन्य प्रस्ताव फैसले से वंचित रह गए हैं, उन पर भी विचार किया जाए। उन्होंने कहा कि इनमें मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों को मिलाकर उसे पृथक राज्य बनाने और उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने के बसपा प्रमुख मायावती के प्रस्ताव सहित ऐसी सभी मांगों पर विचार हो। मायावती की मांग को हालांकि उन्होंने राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि जब चुनाव करीब होते हैं, तभी वह ऐसी मांग उठाती हैं। लोकसभा चुनाव करीब आता देख उन्होंने यह मांग की है और इससे पहले यूपी के अपने शासन के अंतिम दिनों में उन्होंने उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, अवध प्रदेश और बुंदेलखंड में बांटने का प्रस्ताव पारित कराया था। भाजपा नेता ने कहा, बहरहाल जिस भी उद्देश्य से पृथक राज्यों की मांग की गई हो, अच्छा यही होगा कि राज्य पुनर्गठन आयोग का फिर से गठन हो और उसमें अलग राज्यों के सभी प्रस्तावों पर विचार के बाद संसद में उन पर व्यापक चर्चा से अंतिम फैसला किया जाए। तेलंगाना राज्य बनाने के संप्रग के निर्णय पर उमा ने कहा, इस फैसले से भाजपा को प्रसन्नता के साथ शंका और चिंता भी है, क्योंकि एक तो कांग्रेस में ही इसे लेकर फूट है और दूसरे यह कि इस मुद्दे पर यह पार्टी बार-बार धोखाधड़ी करती आई है। वामदलों के अलग अलग सुर
उधर, तेलंगाना के मुद्दे वामदल विभाजित नजर आए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] और रिवोल्यशुनरी सोशलिस्ट पार्टी [आरएसपी] ने इसका विरोध किया। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [भाकपा] और फारवर्ड ब्लाक उसके पक्ष में खड़ी हो गयी। हालांकि चारो दल इस पक्ष में थे कि नये तेलंगाना राज्य के गठन पर आगे बढ़ने के सरकार के फैसले के आलोक में आंध्रप्रदेश के लोग शौहार्द बनाए रखे।
फारवर्ड ब्लाक ने पृथक विदर्भ राज्य के गठन एवं द्वितीय राज्य पुनर्गठन समिति बनाने की भी मांग की ताकि छोटे राज्यों सभी पुरानी मांगों को उचित हल ढूढ़ा जा सके। माकपा पोलित ब्यूरो ने यहां जारी एक बयान में कहा कि ऐसा जान पड़ता है कि तेलंगाना राज्य बनाने का फैसला आगामी लोकसभा चुनाव से बाध्य है। इससे अन्य स्थानों पर पृथक राज्यों की मांगों को बढ़ावा मिलेगा।
तेलंगाना की मांग का समर्थन करने वाली माकपा ने कहा कि वह हमेशा भाषाई राज्य के लोकतांत्रिक सिद्धांत के आधार पर राज्यों की अखंडता के पक्ष में खड़ी रही है। उसने कांग्रेस और संप्रग पर आंध्रप्रदेश को बांटकर तेलंगाना बनाने का फैसला काफी हीलाहवाली तथा श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट मिलने के दो साल से भी अधिक समय बाद किया। माकपा महासचिव प्रकाश करात से इससे पहले कहा कि तेलंगाना राज्य बनाने से देश के अन्य हिस्सों में ऐसी मांग बढ़ेगी। करात ने कहा कि केंद्र सरकार को यह देखने की जिम्मेदारी लेनी होगी कि राज्यों का और विभाजन न हो, चाहे वह पश्चिम बंगाल हो या अन्य कोई। यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि आप राज्य के अंतहीन विभाजन या नये राज्यों का गठन नहीं कर सकते। लेकिन भाकपा सचिव डी राजा ने इस फैसले को काफी देरे से लिया गया निर्णय करार दिया और कहा कि उनकी पार्टी गहर विचार विमर्श और सभी विकल्पों पर गौर फरमाने के बाद पृथक तेलंगाना पर सहमत हुई। उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश के सभी क्षेत्रों को इस फैसले को बिना किसी वैमनस्य या कटुता के भाईचारा के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने साथ ही स्पष्ट किया कि सैद्धांतिक तौर पर भाकपा छोटे राज्यों के गठन के पक्ष में नहीं है, लेकिन तेलंगाना एक बड़ा क्षेत्र है और पृथक राज्य के लिए आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। आरएसपी नेता अबनी राय ने कहा कि उनकी पार्टी छोटे राज्यों के गठन का विरोध करती रही है और झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के गठन के समय भी उसने विरोध किया था। राय ने कहा, यदि लोग चाहते हैं और सरकार राजी हो जाती है तब हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन छोटे राज्यों की मांग त्वरित विकास की जरूरत से प्रेरित होती है। पर, झारखंड और उत्तराखंड के हमारे अनुभव ने दर्शा दिया है कि यह नहीं हो रहा है। इन जनजाति बहुल राज्यों में लोगों का विकास नहीं हुआ। हालांकि फारवार्ड ब्लाक ने इस कदम का स्वागत किया और कांग्रेस पर देरी करने एवं क्षेत्र के लोगों को लंबे समय से बेवकूफ बनाने का आरोप लगाया। उसने यहां जारी एक बयान में सरकार से महाराष्ट्र से विदर्भ बनाने की भी मांग पर विचार करने की मांग की। ममता कांग्रेस पर आग बबूला
दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पृथक तेलंगाना राज्य को मंजूरी देने के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की बुधवार को आलोचना की और इसे 'विभाजनकारी राजनीति' करार दिया। ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उनसे पूछा है कि आखिर इस निर्णय के पीछे क्या कारण हैं? ममता ने यहां राज्य सचिवालय में संवाददाताओं से कहा, ''मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पूछा है कि यह निर्णय सही है या गलत।'' तेलंगाना पर संप्रग के निर्णय ने उत्तरी बंगाल में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को तेज कर दिया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने अपनी मांग के समर्थन में अनिश्चितकालीन बंद का आह्वान किया है। इन सबके मद्देनजर ममता ने कहा कि मैं तेलंगाना के खिलाफ नहीं हूं, यह उनका विशेषाधिकार है। लेकिन अन्य राज्यों से भी यदि इसी तरह की मांग उठने लगे तो क्या होगा? क्या कांग्रेस इन सभी मांगों को मंजूरी देगी और देश को कई टुकड़ों में बांट देगी? यह देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों पर जिम्मेदारी है, वही गैर-जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आखिर यह निर्णय ऐसे वक्त में क्यों लिया गया, जब आम चुनाव होने वाले हैं? कांग्रेस ने पांच साल पहले अपने घोषणा-पत्र में कहा था कि वह पृथक तेलंगाना के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन यह निर्णय अभी क्यों लिया गया, जबकि चुनाव होने वाले हैं? सिर्फ इसलिए कि इससे कुछ अधिक सीटें मिल जाएंगी? ममता ने कहा कि मैं इस रवैये की आलोचना करती हूं और इस पर हैरान हूं। राजनीतिक उद्देश्य एवं आपसी झगड़ों के कारण संवैधानिक जवाबदेहियों को खतरे में नहीं डाला जाना चाहिए। मायावती गदगद
उधर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने नया तेलंगाना राज्य बनाए जाने का समर्थन करते हुए बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। इसलिए वह केंद्र के इस कदम का समर्थन करती हैं। मायावती ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के विभाजन को लेकर भी केंद्र को जल्द ही प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। राजधानी लखनऊ में पार्टी कार्यालय में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए मायावती ने जहां उप्र के विभाजन की अपनी मांग को फिर से हवा दी, वहीं दूसरी ओर सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर भी जमकर हमला बोला। पृथक तेलंगाना राज्य का समर्थन करते हुए मायावती ने कहा, ''केंद्र सरकार द्वारा यह देर से उठाया गया कदम है, लेकिन केंद्र सरकार के इस कदम के बाद तेलंगाना क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें और आकांक्षाएं पूरी हुई हैं। उम्मीद है कि उनका बेहतर विकास होगा।'' मायावती ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर के पद चिन्हों पर चलने वाली बसपा ने हमेशा छोटे राज्यों और छोटी इकाइयों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, ''उप्र की चार बार मुख्यमंत्री रही हूं और इस दौरान हमने तहसीलों, जिलों एवं मंडलों के अलावा नए पुलिस जोनों को स्थापित किया।'' मायावती ने कहा कि उप्र की 20 करोड़ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य के विभाजन का प्रस्ताव पहले मंत्रिमंडल और फिर विधानसभा में पारित कर 23 नवंबर, 2011 को केंद्र के समक्ष भेजा गया था। प्रस्ताव में उप्र को चा र भागों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिमी एवं हरित प्रदेश में विभाजित करने की बात कही गई थी। यह प्रस्ताव अब तक केंद्र सरकार के समक्ष लंबित है। उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार से मांग करती हूं कि जल्द से जल्द उप्र के विभाजन की प्रक्रिया भी शुरू की जाए, ताकि लोगों का और उपेक्षित क्षेत्रों का समुचित विकास हो सके। मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर जवाबी हमला बोलते हुए कहा, ''उप्र के मुख्यमंत्री मुझे राज्य में न आने की नसीहत दे रहे हैं। इसकी बजाय उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव को उप्र में न घुसने का फरमान जारी करना चाहिए, क्योंकि वह खुद सरकार की कार्यशैली पर कई बार सवाल खडे़ कर चुके हैं। निलंबित आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन को वापस लेने की मांग करते हुए मायावती ने कहा कि सपा के शासन में ईमानदार और निष्ठावान अधिकारियों को काम करने की छूट नहीं है। यह सरकार गुंडों और माफियाओं के हवाले हो चुकी है। सूबे में कानून का राज नहीं रह गया है। मायावती ने कहा कि दुर्गाशक्ति नागपाल के मामले में राज्यपाल और केंद्र को भी संज्ञान लेना चाहिए, वर्ना आने वाले समय में ईमानदार अधिकारियों के सामने और चुनौतियां आ सकती हैं। मायावती ने कहा कि मैं पहले भी कह चुकी हूं कि उप्र में कानून का राज समाप्त हो गया है और इसलिए यहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए और आज मैं फिर अपनी वही मांग दोहरा रही हूं।
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