हमारी फिल्म किसी देश के खिलाफ नहीं है। फिल्म चार जांबाज रॉ एजेंटों की
कहानी है, जो अपने देश के सबसे बड़े शत्रु को पड़ोसी देश से वापस अपने देश
में लाने की मुहिम में जुटे हैं। इस दौरान इन चारों की जिंदगी में
क्या-क्या होता है, हमने वह भी दिखाया है।
ऋषि कपूर के इकबाल के किरदार को लुक देने के लिये हमने तमाम भारतीय गैंगस्टरों के अलावा इटालियन माफिया को लेकर रिसर्च की। उनके लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज आदि पर गौर फरमाया। फिर ‘इकबाल’ के लिए मिश्रित लुक तैयार किया। मुझे फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हुए बीस साल हो गए हैं। हर दिन मैं यही सोचता था कि लोगों को एक दिन समझ में आएगा कि हम सिनेमा में क्या करना चाहते हैं और सिनेमा में बदलाव आएगा। जी हां! मैं लंबे समय से महसूस कर रहा था कि अब ईमानदारी से अलग तरह की फिल्म बनानी चाहिए। मैं अपने करियर के इस मुकाम पर पहुंच चुका था कि मुझे लगने लगा था कि अब कुछ नया करना चाहिए। ‘डी-डे’ एक थ्रिलर फिल्म है। सच कहूं तो ‘कल हो ना हो’ से पहले भी मैं थ्रिलर फिल्म बनाना चाहता था। इतना ही नहीं ‘सलाम ए इश्क’ से पहले मैं एक थ्रिलर फिल्म के लिए सलमान खान से मिलने गया था, लेकिन जिन लोगों ने मेरी पारिवारिक या रोमांटिक कॉमेडी फिल्में देख रखी थीं, उन्हें लग रहा था कि मैं थ्रिलर फिल्म नहीं बना पाऊंगा। बहरहाल, जब मैंने करण जौहर को फिल्म की रिलीज से एक माह पहले ‘डी-डे’ दिखाई तो उसने मुझसे कहा- ‘इससे पहले तुमसे किसने कहा था कि तुम प्रेम कहानी वाली फिल्म बनाओ।’ सच यही है कि ‘डी-डे’ बनाने से पहले मुझे भी अहसास नहीं था कि मैं ‘डी-डे’जैसी फिल्में सहजता से बना सकता हूं। माना कि मेरी फिल्म ‘डी-डे’ रोमांचक फिल्म है। हर कोई यही बात मान रहा है, इसमें एक्शन भी है, लेकिन मेरा मानना है कि इस फिल्म में मानवीय रिश्ते और मानवीय संवेदनाएं कहीं ज्यादा हावी हैं। हमारी फिल्म किसी देश के खिलाफ नहीं है। हमारी फिल्म चार जांबाज रॉ एजेंटों की कहानी है, जो अपने देश के सबसे बड़े शत्रु को पड़ोसी देश से वापस अपने देश में लाने की मुहिम में जुटे हैं। इस दौरान इन चारों की जिंदगी में क्या-क्या होता है, हमने वह भी दिखाया है। हमने संवेदनाओं और रिश्तों को अहमियत देते हुए रोमांचक फिल्म बनाई है। हमारी फिल्म को वे सारे दर्शक पसंद कर रहे हैं, जिन्हें अपने देश पर गर्व है। हमने अपनी फिल्म में किसी भी रॉ एजेंट द्वारा उसकी किसी वास्तविक मुहिम की बात नहीं की है। सारी मुहिम काल्पनिक है। फिल्म ‘डी-डे’ की कल्पना मेरे दिमाग में मेरे ड्राइवर की बातें सुन कर आई। जब हम सभी ने खबर सुनी कि अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान की सीमा में घुस ओसामा बिन लादेन को मार कर उसे अपने साथ अमेरिका ले गए तो मेरे ड्राइवर ने मुझसे कहा, ‘यदि अमेरिका कर सकता है तो हम विदेशों में बसे अपने देश के दुश्मनों के साथ ऐसा क्यों नहीं कर सकते?’ उसके बाद मैं अपने लेखक सुरेश नायर के साथ एक होटल में बैठा। इस पर बातचीत की। हम दोनों लेखकों ने बैठ कर यह निर्णय लिया कि हम काल्पनिक कथा बुनेंगे, मगर वह एक साधारण एक्शन मिशन वाली फिल्म नहीं होनी चाहिए, बल्कि बहुत ही यथार्थपरक कथा होनी चाहिए। फिर हमने सोचा कि क्यों न ऐसी कहानी बुनी जाए, जहां हमारे देश के चार बहादुर सैनिक अपने देश की सुरक्षा के लिए दूसरे देश पहुंचते हैं। वहां पर जब सब कुछ गलत हो जाता है, तब क्या होता है? काफी सोचने के बाद हमें लगा कि यदि चार सैनिकों की बजाय चार ‘रॉ एजेंट’ भेजें तो क्या होगा। हमें लगा कि कहानी का यह जो मोड़ होगा, वह किसी आतंकवादी को मार गिराने से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। कहानी का एक ढांचा दिमाग में आने के बाद मैंने व मेरे लेखक ने मिल कर इस मुद्दे पर रिसर्च करनी शुरू की। रिसर्च के आधार पर फिल्म की पटकथा तैयार करने के बाद हम कई रॉ एजेंटों से भी मिले। हमने जब कुछ रॉ एजेंटों को अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो वह भी आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने हमसे कहा, ‘आपको इतनी जानकारी कहां से मिली।’ उन्होंने कहा कि आप फिल्म में जिस तरह का मिशन और जिस तरह से मिशन को अंजाम होते हुए दिखाने जा रहे हैं, उसे यदि इसी तरह से अंजाम दिया जाएगा, तभी संभव है। पटकथा तैयार होने के बाद हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या थी पात्रों के अनुरूप कलाकारों का चयन करना। ऐसे कलाकारों का चयन करना, जो हमारी पटकथा को अपनी अभिनय प्रतिभा से सही परिप्रेक्ष्य में परदे पर साकार कर सकें। काफी सोच-विचार कर हमने अर्जुन रामपाल, इरफान व ऋषि कपूर के नाम सोचे। इनके अलावा दूसरे कलाकारों के नाम हमारे दिमाग में आए ही नहीं। अर्जुन रामपाल और इरफान तो पटकथा पढ़ते ही तैयार हो गए। इरफान ने मुझसे कहा कि क्या मैं इस फिल्म को उस तरह से रियल बना सकूंगा, जिस तरह से मैंने पटकथा में लिखा है? मैंने उनसे वादा किया कि मैं ऐसा ही करूंगा। इतना ही नहीं, इरफान को कनविंस करने के लिए मैंने अपने मित्र अनुराग की मदद ली। लेकिन इकबाल के किरदार को निभाने के लिए ऋषि कपूर तैयार नहीं थे, जबकि मैं फिल्म‘अग्निपथ’ में रउफ लाला के किरदार में उन्हें देख चुका था। जब हमने उनके साथ लुक टैस्ट लिया तो लुक टैस्ट देखने के बाद वह तैयार हो गए। ऋषि कपूर के इकबाल के किरदार को लुक देने के लिये हमने तमाम भारतीय गैंगस्टरों के अलावा इटालियन माफिया को लेकर रिसर्च की। उनके लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज आदि पर गौर फरमाया। फिर ‘इकबाल’ के लिए मिश्रित लुक तैयार किया। लोग कह रहे हैं कि ‘डी-डे’ में ऋषि कपूर का किरदार दाऊद से प्रेरित है, पर हकीकत में यह एक काल्पनिक पात्र है। हमारी फिल्म ‘डी-डे’ का मतलब है वह दिन, जब बदलाव की शुरुआत होगी या वह दिन, जब सब कुछ अच्छा हो जाएगा। हम जब ‘डी-डे’ बना रहे थे तो हमारे दिमाग में यह बात आई थी कि लोग इस फिल्म को देखते हुए तुरंत दाऊद से फिल्म को जोड़ने लगेंगे। फिर मैंने सोचा कि दर्शक को फिल्म में जो कुछ नजर आएगा, वह दाऊद की जिंदगी में नहीं हुआ है। हमारी फिल्म पूरी तरह से काल्पनिक है। हमारी फिल्म में ऋषि कपूर के किरदार का नाम इकबाल है, जिसे रॉ एजेंट गोल्ड मैन के नाम से पुकारते हैं। हर किसी को पता है कि अपने समय के चॉकलेटी हीरो रहे ऋषि कपूर ने रउफ लाला का किरदार निभा कर दिखा दिया था कि वह किस तरह से एक नकारात्मक किरदार को निभा सकते हैं। उसके बाद ‘औरंगजेब’ में नेगेटिव शेड्स वाले पुलिस अफसर का किरदार निभा कर सबको चौंका दिया। उसके बाद अब ‘डी-डे’ में तो उनके अभिनय का एक अलग पक्ष उभर कर आया है। पटकथा के साथ न्याय करने के लिए इसे कनविंसिंग लोकेशन पर फिल्माना भी जरूरी था। काफी लोकेशन देखने के बाद हमने गुजरात के अहमदाबाद शहर को चुना। मेरी फिल्म ‘डी-डे’ विचारोत्तेजक फिल्म है। इस फिल्म को देख कर निकलने वाला दर्शक चर्चा कर रहा है और कहीं न कहीं उनकी चर्चा से उनके अंदर की देशभक्ति जागृत हो रही है। यह सब देख कर मुझे लग रहा है कि मैंने अनजाने ही फिल्मकार के रूप में अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर दिया। मेरी फिल्म अपने मकसद में कामयाब हो गयी।
ऋषि कपूर के इकबाल के किरदार को लुक देने के लिये हमने तमाम भारतीय गैंगस्टरों के अलावा इटालियन माफिया को लेकर रिसर्च की। उनके लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज आदि पर गौर फरमाया। फिर ‘इकबाल’ के लिए मिश्रित लुक तैयार किया। मुझे फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हुए बीस साल हो गए हैं। हर दिन मैं यही सोचता था कि लोगों को एक दिन समझ में आएगा कि हम सिनेमा में क्या करना चाहते हैं और सिनेमा में बदलाव आएगा। जी हां! मैं लंबे समय से महसूस कर रहा था कि अब ईमानदारी से अलग तरह की फिल्म बनानी चाहिए। मैं अपने करियर के इस मुकाम पर पहुंच चुका था कि मुझे लगने लगा था कि अब कुछ नया करना चाहिए। ‘डी-डे’ एक थ्रिलर फिल्म है। सच कहूं तो ‘कल हो ना हो’ से पहले भी मैं थ्रिलर फिल्म बनाना चाहता था। इतना ही नहीं ‘सलाम ए इश्क’ से पहले मैं एक थ्रिलर फिल्म के लिए सलमान खान से मिलने गया था, लेकिन जिन लोगों ने मेरी पारिवारिक या रोमांटिक कॉमेडी फिल्में देख रखी थीं, उन्हें लग रहा था कि मैं थ्रिलर फिल्म नहीं बना पाऊंगा। बहरहाल, जब मैंने करण जौहर को फिल्म की रिलीज से एक माह पहले ‘डी-डे’ दिखाई तो उसने मुझसे कहा- ‘इससे पहले तुमसे किसने कहा था कि तुम प्रेम कहानी वाली फिल्म बनाओ।’ सच यही है कि ‘डी-डे’ बनाने से पहले मुझे भी अहसास नहीं था कि मैं ‘डी-डे’जैसी फिल्में सहजता से बना सकता हूं। माना कि मेरी फिल्म ‘डी-डे’ रोमांचक फिल्म है। हर कोई यही बात मान रहा है, इसमें एक्शन भी है, लेकिन मेरा मानना है कि इस फिल्म में मानवीय रिश्ते और मानवीय संवेदनाएं कहीं ज्यादा हावी हैं। हमारी फिल्म किसी देश के खिलाफ नहीं है। हमारी फिल्म चार जांबाज रॉ एजेंटों की कहानी है, जो अपने देश के सबसे बड़े शत्रु को पड़ोसी देश से वापस अपने देश में लाने की मुहिम में जुटे हैं। इस दौरान इन चारों की जिंदगी में क्या-क्या होता है, हमने वह भी दिखाया है। हमने संवेदनाओं और रिश्तों को अहमियत देते हुए रोमांचक फिल्म बनाई है। हमारी फिल्म को वे सारे दर्शक पसंद कर रहे हैं, जिन्हें अपने देश पर गर्व है। हमने अपनी फिल्म में किसी भी रॉ एजेंट द्वारा उसकी किसी वास्तविक मुहिम की बात नहीं की है। सारी मुहिम काल्पनिक है। फिल्म ‘डी-डे’ की कल्पना मेरे दिमाग में मेरे ड्राइवर की बातें सुन कर आई। जब हम सभी ने खबर सुनी कि अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान की सीमा में घुस ओसामा बिन लादेन को मार कर उसे अपने साथ अमेरिका ले गए तो मेरे ड्राइवर ने मुझसे कहा, ‘यदि अमेरिका कर सकता है तो हम विदेशों में बसे अपने देश के दुश्मनों के साथ ऐसा क्यों नहीं कर सकते?’ उसके बाद मैं अपने लेखक सुरेश नायर के साथ एक होटल में बैठा। इस पर बातचीत की। हम दोनों लेखकों ने बैठ कर यह निर्णय लिया कि हम काल्पनिक कथा बुनेंगे, मगर वह एक साधारण एक्शन मिशन वाली फिल्म नहीं होनी चाहिए, बल्कि बहुत ही यथार्थपरक कथा होनी चाहिए। फिर हमने सोचा कि क्यों न ऐसी कहानी बुनी जाए, जहां हमारे देश के चार बहादुर सैनिक अपने देश की सुरक्षा के लिए दूसरे देश पहुंचते हैं। वहां पर जब सब कुछ गलत हो जाता है, तब क्या होता है? काफी सोचने के बाद हमें लगा कि यदि चार सैनिकों की बजाय चार ‘रॉ एजेंट’ भेजें तो क्या होगा। हमें लगा कि कहानी का यह जो मोड़ होगा, वह किसी आतंकवादी को मार गिराने से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। कहानी का एक ढांचा दिमाग में आने के बाद मैंने व मेरे लेखक ने मिल कर इस मुद्दे पर रिसर्च करनी शुरू की। रिसर्च के आधार पर फिल्म की पटकथा तैयार करने के बाद हम कई रॉ एजेंटों से भी मिले। हमने जब कुछ रॉ एजेंटों को अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो वह भी आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने हमसे कहा, ‘आपको इतनी जानकारी कहां से मिली।’ उन्होंने कहा कि आप फिल्म में जिस तरह का मिशन और जिस तरह से मिशन को अंजाम होते हुए दिखाने जा रहे हैं, उसे यदि इसी तरह से अंजाम दिया जाएगा, तभी संभव है। पटकथा तैयार होने के बाद हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या थी पात्रों के अनुरूप कलाकारों का चयन करना। ऐसे कलाकारों का चयन करना, जो हमारी पटकथा को अपनी अभिनय प्रतिभा से सही परिप्रेक्ष्य में परदे पर साकार कर सकें। काफी सोच-विचार कर हमने अर्जुन रामपाल, इरफान व ऋषि कपूर के नाम सोचे। इनके अलावा दूसरे कलाकारों के नाम हमारे दिमाग में आए ही नहीं। अर्जुन रामपाल और इरफान तो पटकथा पढ़ते ही तैयार हो गए। इरफान ने मुझसे कहा कि क्या मैं इस फिल्म को उस तरह से रियल बना सकूंगा, जिस तरह से मैंने पटकथा में लिखा है? मैंने उनसे वादा किया कि मैं ऐसा ही करूंगा। इतना ही नहीं, इरफान को कनविंस करने के लिए मैंने अपने मित्र अनुराग की मदद ली। लेकिन इकबाल के किरदार को निभाने के लिए ऋषि कपूर तैयार नहीं थे, जबकि मैं फिल्म‘अग्निपथ’ में रउफ लाला के किरदार में उन्हें देख चुका था। जब हमने उनके साथ लुक टैस्ट लिया तो लुक टैस्ट देखने के बाद वह तैयार हो गए। ऋषि कपूर के इकबाल के किरदार को लुक देने के लिये हमने तमाम भारतीय गैंगस्टरों के अलावा इटालियन माफिया को लेकर रिसर्च की। उनके लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज आदि पर गौर फरमाया। फिर ‘इकबाल’ के लिए मिश्रित लुक तैयार किया। लोग कह रहे हैं कि ‘डी-डे’ में ऋषि कपूर का किरदार दाऊद से प्रेरित है, पर हकीकत में यह एक काल्पनिक पात्र है। हमारी फिल्म ‘डी-डे’ का मतलब है वह दिन, जब बदलाव की शुरुआत होगी या वह दिन, जब सब कुछ अच्छा हो जाएगा। हम जब ‘डी-डे’ बना रहे थे तो हमारे दिमाग में यह बात आई थी कि लोग इस फिल्म को देखते हुए तुरंत दाऊद से फिल्म को जोड़ने लगेंगे। फिर मैंने सोचा कि दर्शक को फिल्म में जो कुछ नजर आएगा, वह दाऊद की जिंदगी में नहीं हुआ है। हमारी फिल्म पूरी तरह से काल्पनिक है। हमारी फिल्म में ऋषि कपूर के किरदार का नाम इकबाल है, जिसे रॉ एजेंट गोल्ड मैन के नाम से पुकारते हैं। हर किसी को पता है कि अपने समय के चॉकलेटी हीरो रहे ऋषि कपूर ने रउफ लाला का किरदार निभा कर दिखा दिया था कि वह किस तरह से एक नकारात्मक किरदार को निभा सकते हैं। उसके बाद ‘औरंगजेब’ में नेगेटिव शेड्स वाले पुलिस अफसर का किरदार निभा कर सबको चौंका दिया। उसके बाद अब ‘डी-डे’ में तो उनके अभिनय का एक अलग पक्ष उभर कर आया है। पटकथा के साथ न्याय करने के लिए इसे कनविंसिंग लोकेशन पर फिल्माना भी जरूरी था। काफी लोकेशन देखने के बाद हमने गुजरात के अहमदाबाद शहर को चुना। मेरी फिल्म ‘डी-डे’ विचारोत्तेजक फिल्म है। इस फिल्म को देख कर निकलने वाला दर्शक चर्चा कर रहा है और कहीं न कहीं उनकी चर्चा से उनके अंदर की देशभक्ति जागृत हो रही है। यह सब देख कर मुझे लग रहा है कि मैंने अनजाने ही फिल्मकार के रूप में अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर दिया। मेरी फिल्म अपने मकसद में कामयाब हो गयी।
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