चार दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रपति के रूप
में आज एक साल पूरा हो गया और इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति भवन के भीतर और
बाहर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
एक सांसद और बाद में मंत्री के रूप में नियमों और परंपराओं का कड़ाई से पालन करने वाले मुखर्जी को जब भी मौका मिलता था तो वह सदन में बाधा उत्पन्न करने के लिए सांसदों को फटकार भी लगाते रहते थे और साथ ही न्यायपालिका को भी अपनी हदों में रहने की सलाह देते थे।
26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिकाओं का निपटारा करते समय मुखर्जी की एक सक्रिय राष्ट्रपति की छवि बनी और उनके इस कदम ने विवादों को भी जन्म दिया, लेकिन उनके सहयोगी कहते हैं कि राष्ट्रपति के पास कैबिनेट की सलाह पर काम करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं था।
कल राष्ट्रपति भवन में मीडिया के साथ अनौपचारिक बातचीत में मुखर्जी ने एक पत्रकार से इस संबंध में कहा कि एक राष्ट्रपति को सिद्धांतों के अनुरूप काम करना पड़ता है। राष्ट्रपति भवन में एक साल पूरा करने के मौके पर राष्ट्रपति का आज बेहद व्यस्त कार्यक्रम है। राष्ट्रपति भवन में वह एक सार्वजनिक पुस्तकालय का उदघाटन करेंगे, राष्ट्रपति भवन के भीतर ही एक स्कूल के क्रिकेट मैदान का उदघाटन तथा और राष्ट्रपति की वेबसाइट से संबद्ध डिजीटल लिंक को चालू करेंगे।
पिछले चार दशक से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन जीने वाले मुखर्जी के बारे में यह सर्वविदित है कि वह लोगों के साथ बहुत जल्द संवाद स्थापित कर लेते हैं और राष्ट्रपति भवन में पहले एक साल के दौरान उनके इस स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि राष्ट्रपति के पद को कड़ाई से प्रोटोकाल का पालन करने के लिए जाना जाता है।
चाहे खुशी से नारे लगा रही भीड़ से संवाद कायम करने का मामला हो या शिक्षण संस्थानों में देश के सर्वाधिक बौद्धिक वर्ग से चर्चा हो, मुखर्जी लोगों के साथ बातचीत का आनंद उठाते हैं। एक अरब से अधिक आबादी वाले देश के राष्ट्रपति के रूप में पिछले एक साल में मुखर्जी ने 23 राज्यों की यात्रा की, जिनमें पांच राज्य पूर्वोत्तर के थे। इस दौरान उन्होंने 36 शिक्षण संस्थानों का भी दौरा किया।
इन मौकों पर राष्ट्रपति ने पारंपरिक दिखावे को दरकिनार करते हुए अध्यापकों और छात्रों के साथ अनौपचारिक बातचीत की और जब भी वे किसी शैक्षणिक संस्थान के दौरे पर गए तो वहां अध्यापकों और छात्रों के विचारों को जानने समझने की कोशिश की और साथ ही उन्हें अपने विचारों से भी अवगत कराया।
मुखर्जी ने सम्मान सूचक हिज एक्सेलेंसी संबोधन को भी खत्म करवाया और राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले समारोहों में कड़े प्रोटोकाल नियमों को भी हटाए जाने को कहा। छोटी-छोटी बारिकियों को भी गहराई से देखना राष्ट्रपति के चरित्र की एक खास विशेषता है, जो पिछले 44 सालों से सार्वजनिक जीवन में रहे हैं और पिछले एक साल के दौरान राष्ट्रपति भवन को दिए गए नए रंगरूप में बारिकियों की यह समझ साफ झलकती है।
दरबार हाल और उसके समीप स्थित पुस्तकालय को जिस प्रकार नया रूप दिया गया है उससे साफ पता चलता है कि राष्ट्रपति को इतिहास से बहुत अधिक लगाव है। करीब साल भर पहले तक दरबार हाल का अधिक उपयोग नहीं किए जाने के कारण यह काफी खराब हालत में था, क्योंकि सरकारी समारोहों का आयोजन अधिकतर अशोक हाल में ही होता था।
लेकिन पिछले एक साल में इस विरासत इमारत के जीणोद्धार में किए गए बदलावों में दरबार हाल को फिर से उसका गौरव लौटाया गया है और इसमें आधुनिक ईको सिस्टम लगाया गया है ताकि किसी कार्यक्रम के आयोजन के समय आवाज गूंजे नहीं। इस हाल का गुंबद 33 मीटर उंचा है और इसी के कारण यहां कार्यक्रम आयोजित करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
यही मामला पुस्तकालय का भी है, जिसका इस्तेमाल कभी केवल किताबों को स्टोर में रखने की तरह होता था, लेकिन आज इस पुस्तकालय के संग्रह में 1800 ईसवी तक की पुरानी किताबें करीने से अलमारियों में लगी हैं। इस पुस्तकालय की रचना भी 1930 में एडविन लैंडसीर लुटियंस द्वारा तैयार किए गए डिजाइन के आधार पर की गयी थी। इसी ब्रिटिश वास्तुविद ने 340 कमरों वाली इस इमारत का नक्शा तैयार किया था।
इतिहास के प्रति अपने प्रेम के चलते ही मुखर्जी ने जनता का इतिहास और इस 320 एकड़ में फैली 85 साल पुरानी विरासत इमारत से रिश्ता जोड़ने के लिए जीर्णोद्धार कार्यक्रम पर जोर दिया। इसी जीर्णोद्धार कार्यक्रम के तहत मॉर्निंग रूम, कमेटी रूम, गार्डन लोगिया, तथा नार्थ और साउथ ड्राइंग रूम, लाइब्रेरी, दरबार हाल, संग्रहालय, प्राचीन फर्नीचर तथा दुर्लभ किताबों को विशेषज्ञों की देखरेख में नया रूप दिया गया।
एक सांसद और बाद में मंत्री के रूप में नियमों और परंपराओं का कड़ाई से पालन करने वाले मुखर्जी को जब भी मौका मिलता था तो वह सदन में बाधा उत्पन्न करने के लिए सांसदों को फटकार भी लगाते रहते थे और साथ ही न्यायपालिका को भी अपनी हदों में रहने की सलाह देते थे।
26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिकाओं का निपटारा करते समय मुखर्जी की एक सक्रिय राष्ट्रपति की छवि बनी और उनके इस कदम ने विवादों को भी जन्म दिया, लेकिन उनके सहयोगी कहते हैं कि राष्ट्रपति के पास कैबिनेट की सलाह पर काम करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं था।
कल राष्ट्रपति भवन में मीडिया के साथ अनौपचारिक बातचीत में मुखर्जी ने एक पत्रकार से इस संबंध में कहा कि एक राष्ट्रपति को सिद्धांतों के अनुरूप काम करना पड़ता है। राष्ट्रपति भवन में एक साल पूरा करने के मौके पर राष्ट्रपति का आज बेहद व्यस्त कार्यक्रम है। राष्ट्रपति भवन में वह एक सार्वजनिक पुस्तकालय का उदघाटन करेंगे, राष्ट्रपति भवन के भीतर ही एक स्कूल के क्रिकेट मैदान का उदघाटन तथा और राष्ट्रपति की वेबसाइट से संबद्ध डिजीटल लिंक को चालू करेंगे।
पिछले चार दशक से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन जीने वाले मुखर्जी के बारे में यह सर्वविदित है कि वह लोगों के साथ बहुत जल्द संवाद स्थापित कर लेते हैं और राष्ट्रपति भवन में पहले एक साल के दौरान उनके इस स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि राष्ट्रपति के पद को कड़ाई से प्रोटोकाल का पालन करने के लिए जाना जाता है।
चाहे खुशी से नारे लगा रही भीड़ से संवाद कायम करने का मामला हो या शिक्षण संस्थानों में देश के सर्वाधिक बौद्धिक वर्ग से चर्चा हो, मुखर्जी लोगों के साथ बातचीत का आनंद उठाते हैं। एक अरब से अधिक आबादी वाले देश के राष्ट्रपति के रूप में पिछले एक साल में मुखर्जी ने 23 राज्यों की यात्रा की, जिनमें पांच राज्य पूर्वोत्तर के थे। इस दौरान उन्होंने 36 शिक्षण संस्थानों का भी दौरा किया।
इन मौकों पर राष्ट्रपति ने पारंपरिक दिखावे को दरकिनार करते हुए अध्यापकों और छात्रों के साथ अनौपचारिक बातचीत की और जब भी वे किसी शैक्षणिक संस्थान के दौरे पर गए तो वहां अध्यापकों और छात्रों के विचारों को जानने समझने की कोशिश की और साथ ही उन्हें अपने विचारों से भी अवगत कराया।
मुखर्जी ने सम्मान सूचक हिज एक्सेलेंसी संबोधन को भी खत्म करवाया और राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले समारोहों में कड़े प्रोटोकाल नियमों को भी हटाए जाने को कहा। छोटी-छोटी बारिकियों को भी गहराई से देखना राष्ट्रपति के चरित्र की एक खास विशेषता है, जो पिछले 44 सालों से सार्वजनिक जीवन में रहे हैं और पिछले एक साल के दौरान राष्ट्रपति भवन को दिए गए नए रंगरूप में बारिकियों की यह समझ साफ झलकती है।
दरबार हाल और उसके समीप स्थित पुस्तकालय को जिस प्रकार नया रूप दिया गया है उससे साफ पता चलता है कि राष्ट्रपति को इतिहास से बहुत अधिक लगाव है। करीब साल भर पहले तक दरबार हाल का अधिक उपयोग नहीं किए जाने के कारण यह काफी खराब हालत में था, क्योंकि सरकारी समारोहों का आयोजन अधिकतर अशोक हाल में ही होता था।
लेकिन पिछले एक साल में इस विरासत इमारत के जीणोद्धार में किए गए बदलावों में दरबार हाल को फिर से उसका गौरव लौटाया गया है और इसमें आधुनिक ईको सिस्टम लगाया गया है ताकि किसी कार्यक्रम के आयोजन के समय आवाज गूंजे नहीं। इस हाल का गुंबद 33 मीटर उंचा है और इसी के कारण यहां कार्यक्रम आयोजित करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
यही मामला पुस्तकालय का भी है, जिसका इस्तेमाल कभी केवल किताबों को स्टोर में रखने की तरह होता था, लेकिन आज इस पुस्तकालय के संग्रह में 1800 ईसवी तक की पुरानी किताबें करीने से अलमारियों में लगी हैं। इस पुस्तकालय की रचना भी 1930 में एडविन लैंडसीर लुटियंस द्वारा तैयार किए गए डिजाइन के आधार पर की गयी थी। इसी ब्रिटिश वास्तुविद ने 340 कमरों वाली इस इमारत का नक्शा तैयार किया था।
इतिहास के प्रति अपने प्रेम के चलते ही मुखर्जी ने जनता का इतिहास और इस 320 एकड़ में फैली 85 साल पुरानी विरासत इमारत से रिश्ता जोड़ने के लिए जीर्णोद्धार कार्यक्रम पर जोर दिया। इसी जीर्णोद्धार कार्यक्रम के तहत मॉर्निंग रूम, कमेटी रूम, गार्डन लोगिया, तथा नार्थ और साउथ ड्राइंग रूम, लाइब्रेरी, दरबार हाल, संग्रहालय, प्राचीन फर्नीचर तथा दुर्लभ किताबों को विशेषज्ञों की देखरेख में नया रूप दिया गया।
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