Saturday, 13 July 2013

मोदी से डरने का सवाल नहीं


कांग्रेस का नौजवान चेहरा, आकर्षक लेकिन आक्रामक, जुबान में मिठास, लेकिन हमलावर, विरोधी दलों पर निगाह, अपने दल की बात दमदार तरीके से आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी। कांग्रेस ने शायद इसीलिए पिछले प्रभारी जनार्दन द्विवेदी से 20 साल कम उम्र के युवा कांग्रेसी को महासचिव के साथ मीडिया की जिम्मेदारी सौंप दी, क्योंकि अगली चुनावी लड़ाई का अहम हिस्सा होगा मीडिया। केन्द्र में कई मंत्रालय संभालने का अनुभव। कांग्रेस के महासचिव और संचार विभाग के प्रभारी अजय माकन।
अजय माकन
कांग्रेस महासचिव
जन्म 12 जनवरी 1964, दिल्ली
शिक्षा-कॅरियर
दिल्ली विवि.से पढ़ाई की, 1985 में डीयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने, तीन बार दिल्ली के विधायक रहे, 2004 में सांसद बने, 2009 में दोबारा संसद पहुंचे।
बतौर मंत्री
गृह राज्य मंत्री रहे, खेल व युवा मामलों का स्वतंत्र प्रभार रहा, हाउसिंग व शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री रहे।
खास बात
महज 39 साल की उम्र में दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष बने, जो कि एक रिकॉर्ड है।
मोदी नेशनल लीडर नहीं हैं, वो तो सिर्फ गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, गुजरात के नेता हैं और लोकप्रिय कतई नहीं। अभी आपने कर्नाटक में नहीं देखा, मोदी वहां चुनाव प्रचार के लिए गए थे। कर्नाटक में युवा वोटर भी हैं और सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले शहरी वोटर भी Êयादा हैं, लेकिन क्या हुआ नतीजा।
(नरेन्द्र मोदी को लोकप्रिय या राष्ट्रीय नेता मानने पर जवाब)
कां ग्रेस और चुनावी साल में एक अहम जिम्मेदारी संभालने के लिए बधाई। फूड सिक्योरिटी के लिए आप अध्यादेश लेकर आए हैं, Êयादातर लोग इसे वोट सिक्योरिटी बिल कहते हैं।
कांग्रेस ने 2009 के घोषणापत्र में वादा किया था फूड सिक्योरिटी बिल का, 22 दिसंबर 2011 को संसद में रखा। संसदीय समिति की रिपोर्ट आई, फिर 20 मार्च 2013 को बजट सत्र में रखा, लेकिन विपक्षी दलों ने इस पर चर्चा होने ही नहीं दी। 82 करोड़ लोगों को भोजन की सुरक्षा की कानूनी गारंटी का सवाल है। साथ ही बिल में 73 बदलाव करके अध्यादेश लाया गया है, जिसमें गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं और बच्चों को पौष्टिक आहार मिले, इसका ध्यान रखा गया है। केन्द्र ने सभी राज्यों से दो-दो बार चर्चा की। अध्यादेश में राज्य सरकारों की मांग पर ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा और लाभांवितों को चिन्हित करने के साथ उसके लिए मापदंड तय करने का अधिकार भी दिया गया है।

ले किन अध्यादेश क्यों, क्या संसद पर भरोसा नहीं और फिर इसे भी तो संसद में लाना ही पड़ेगा।
अध्यादेश की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि विपक्ष पर भरोसा नहीं था कि वो इसे मानसून सत्र में भी रखने देगा और पास होने देगा। अब मानसून सत्र में 6 हफ्तों में संसद को इस पर फैसला करना होगा। इसे वोट से जोड़कर देखना बेमायने है। ये कांग्रेस का वादा था, पांच साल के भीतर इसे पूरा करना था। अगले 6 माह में इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।

कांग्रेस के चुनावी वादे में कई और बिलों पर भरोसा दिलाया गया था, जैसे- भूमि अधिग्रहण बिल, लोकपाल बिल, उन पर क्या हो रहा है।
भूमि अधिग्रहण बिल को भी हम संसद के मानसून सत्र में चर्चा कर पास कराना चाहते हैं, क्योंकि ये किसानों के हित का बिल है और लोकपाल बिल भी कांग्रेस की प्राथमिकता है। हम कोशिश करेंगे कि ये दोनों बिल पास हो जाएं।

कु छ लोग तो कहते हैं कि कांग्रेस डर गई है, कुछ कहते हैं कि कांग्रेस को मोदीमैनिया हो गया है, क्या नरेन्द्र मोदी से डरते हैं आप?
मोदी से डरने का सवाल पैदा कहां होता है। अभी तो मोदी को अपनी पार्टी में स्वीकार्यता बनानी है। मोदी की जब गोवा में ताजपोशी हुई, तो आडवाणी बीमार पड़ गए, इस्तीफा दे दिया। सुषमा स्वराज गोवा से रूठकर दिल्ली लौट आई। यशवंत सिन्हा बगैर रोक-टोक बयान देते रहते हैं। गोवा के मुख्यमंत्री ने दो हफ्ते बाद ही गुजरात मॉडल को फेल बताया। शिवराज सिंह अलग तरीके की बात करते हैं। तो पहले उन्हें अपनी पार्टी में सर्वसम्मति बनाने दीजिए। वहां एनडीए सिकुड़ रहा है और कांग्रेस के सहयोगी दलों की तादाद बढ़ रही है।

मोदी को बीजेपी में चुनाव प्रचार की व आपको कांग्रेस में मीडिया की जिम्मेदारी मिली है, तो क्या राहुल बनाम मोदी से पहले माकन बनाम मोदी हो रहा है।
मोदी से पहले जेटली और महाजन बीजेपी में प्रचार समिति के प्रभारी रहे हैं। इसमें मोदी बनाम माकन का सवाल नहीं है। एनडीए में उनके दोस्त-दुश्मन तय करेंगें उनके बारे में।

क्या आपको लगता है कि अगला चुनाव राहुल बनाम मोदी होगा या कांग्रेस बचना चाहती है।
मोदी को बीजेपी पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाना चाहती। एनडीए में मोदी स्वीकार्य नहीं हैं, सिर्फ मीडिया मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाना चाहता है। आपने बीजेपी से पूछा कि उनका पीएम उम्मीदवार कौन है, क्या बीजेपी कहती है कि मोदी उनके पीएम पद के दावेदार होंगे, तो फि र बहस का क्या मतलब है।

आ प कांग्रेस की बात बताइए कि 2014 के चुनाव में आपका पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा।
ये सवाल सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होता, क्योंकि सरकार में बैठी पार्टी के पास अपना प्रधानमंत्री होता है। ये विपक्ष से पूछा जाता है कि आप मौजूदा सरकार को हटाना चाहते हैं, तो आपका उम्मीदवार कौन होगा।

क्या राहुल गांधी अगले चुनाव के लिए पीएम पद के दावेदार होंगे।
हमारे मुल्क में प्रेसिडेंशियल सिस्टम ऑफ गवनेंüस नहीं है कि एक व्यक्ति को लेकर चुनाव लड़ा जाए और लोकतंत्र में सांसदों को अधिकार होता है कि वे अपना नेता तय करें।
यूपीए-3 की तरफ तो जा ही रहे हैं हम लोग। कदम-दर-कदम बढ़ रहे हैं और यकीन है कि हम अगली बार फिर सरकार बनाएंगे और यूपीए 3 में जनता की सेवा करेंगे।
(यूपीए-3 सरकार की तरफ लौटने के भरोसे पर उनका जवाब)
इ स साल चार अहम राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं, आप कांग्रेस का क्या भविष्य देखते हैं।
राजस्थान में पिछले एक साल में गहलोत सरकार का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार काफी लोकप्रिय है और हमें उम्मीद है कि दोनों जगह हम फिर सरकार बनाएंगे। मध्यप्रदेश में करप्शन बड़ा मुद्दा है, छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर काबू नहीं पाया जा सका है, ये अहम मुद्दा है वहां पर।

दि ल्ली में आपको लोकप्रिय नेता माना जाता है, क्या ये मानूं कि चुनाव के बाद आप दिल्ली में सरकार की जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हैं।
दिल्ली में पिछले 15 साल से शीला जी के नेतृत्व में सरकार चल रही है और मुझे भरोसा है कि चौथी बार भी हम दिल्ली में चुनाव जीतेंगे और शीला जी ही मुख्यमंत्री होंगी।

कां ग्रेस झारखंड में नया बदलाव कर रही है, आप जेएमएम के साथ सरकार बनाने की तैयारी में हैं।
हम समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ चलना चाहते हैं। झारखंड, बिहार में ऎसा ही करना चाहते हैं। वहां कांग्रेस एक चुनी हुई सरकार देना चाहती है ताकि आम आदमी की सुनवाई हो सके।

हा ल ही में जनता दल यूनाइटेड ने एनडीए से रिश्ता तोड़ लिया है, बीजेपी पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर, क्या आप उन्हें भविष्य के लिए
एक अच्छे सहयोगी के तौर पर देखते हैं।
जनता दल यूनाइटेड से गठबंधन पर अभी कुछ कह पाना मुश्किल होगा। हमनें विश्वास मत के दौरान नीतीश कुमार की सरकार के पक्ष में वोट दिया था, क्योंकि हम साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकना चाहते थे, पर आगे के लिए अभी कह पाना मुश्किल है।

बि हार जैसी मुश्किल आपके लिए पश्चिम बंगाल में भी आ सकती है क्योंकि वहां तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों में से किसी एक को चुनना होगा, किसे चुनेंगे आप।
पश्चिम बंगाल में दोनों पार्टियां हमारे साथ रही हैं, पर ये भी एक तथ्य है कि दोनों ही पार्टियां आखिर तक हमारे साथ नहीं रहीं। कांग्रेस में एंटोनी कमेटी गठबंधन और नए सहयोगियों के बारे में सलाह मशविरा कर रही है।

आ पको लगता है कि अगला चुनाव करप्शन बनाम कम्युनलिज्म होगा?
करप्शन एक मुद्दा है। पिछले कुछ समय में करप्शन के कुछ मामले सामने आए हैं। जो लोग दोषी पाए गए उनके खिलाफ कांग्रेस ने कार्रवाई भी की है। भ्रष्टाचार उजागर करने का हथियार भी कांग्रेस ने ही दिया है जैसे-आरटीआई और विनोद राय जैसे सीएजी की नियुक्ति यूपीए सरकार में हुई। इसके साथ ही यूपीए सरकार के दस साल के कामकाज पर हम वोट मांगेंगे।

क्या आप साम्प्रदायिकता को चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहते।
साम्प्रदायिकता को मुद्दा बनाना हमारी इच्छा नहीं है। हम अपनी लकीर बड़ी करना चाहते हैं।


क्या आपको भरोसा है कि आप यूपीए 3 के तौर पर फिर लौट रहे हैं।
यूपीए 3 की तरफ तो जा ही रहे हैं हम लोग । कदम दर कदम बढ़ रहे हैं और यकीन है कि हम अगली बार फिर सरकार बनाएंगे और यूपीए 3 में जनता की सेवा करेंगे।

कु छ लोगों का मानना है कि देश में दो बड़ी पार्टियां होनी चाहिएं क्योंकि छोटी पार्टियां देश के हित को प्राथमिकता नहीं देती।
मोदी ये फैसला जनता को करना है कि वो देश में कैसी सरकार चाहती है, क्या वो एक गठबंधन को जनादेश देती है या फिर एक बड़ी पार्टी को। वैसे 1989 के बाद से ही देश में गठबंधन की राजनीति का दौर चल रहा है और कांग्रेस गठबंधन धर्म को हमेशा से अच्छे से निभाती आई है।

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