Saturday 21 December 2013

नीला तोता

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दीपू के घर के पास सर्कस लगा था। बड़े-बड़े पोस्टर जिनमें शेर के कारनामे दिखाए गए थे। कहीं हाथी मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चला रहा था तो कहीं तोता एक्सरसाइज कर रहा था। एक पोस्टर देखकर तो दीपू के रोंगटे खड़े हो गए। शेर के मुंह में आदमी का सिर। क्या इसे डर नहीं लगता। शेर अगर नाराज हो जाए और इस आदमी की गरदन को अपने नुकीले दांतों से चबा ले तो।
एक दिन उसे पता चला कि कल उसकी क्लास के कई बच्चे सर्कस देखने जा रहे हैं तो उसने भी घर जाकर अपनी मम्मी से कहा। मम्मी बोलीं- उन्होंने आज तक सर्कस नहीं देखा है। वह भी देखना चाहती हैं। मगर दीपू मम्मी के साथ नहीं अपने दोस्तों के साथ जाना चाहता था। उसने कुछ नहीं कहा और उदास हो गया। खाना खाकर चुपचाप अपनी मेज पर बैठकर होमवर्क करने लगा। खाना खाते हुए अक्‍सर वह अपना प्रिय कार्टून भी देखता था, मगर उसने आज वह भी नहीं देखा। मम्मी आकर बोलीं-तू उदास क्यों हो गया। मैंने यह थोड़े ही कहा था कि तू सर्कस देखने मत जा। मैंने तो कहा था कि मैं भी सर्कस देखना चाहती हूं। अभी तू अपने दोस्तों के साथ चला जा। बाद में हमारे साथ भी चलना। मम्मी की बात सुनकर दीपू के हाथ इतनी तेजी से चले कि कब होमवर्क खत्म हुआ उसे पता ही नहीं चला। उसने अपनी किताब-कॉपी संभालकर रखीं और क्रिकेट का बैट लेकर खेलने के लिए उड़न छू हो गया। मम्मी उसे दूध पीने के लिए पुकारती ही रह गईं। पार्क में उसके सारे दोस्त जमा थे। वे उसका ही इंतजार कर रहे थे। देखते-देखते खेल शुरू हो गया। दीपू बैटिंग के लिए आया तो उसने इतने चौके-छक्के जड़े कि उसके दोस्त भी हैरान रह गए। आज दीपू को क्या हो गया सब सोच रहे थे। खेलते-खेलते शाम हो गई। दीपू घर लौटा तो मम्मी ने कहा- दूध भी नहीं पीकर गए। दूध पीना याद रखा करो। अचानक दीपू मम्मी के नजदीक आया और उनके गले से झूल गया- मम्मी आज तो मुझे सर्कस के अलावा कुछ याद नहीं। लगता है सपने में भी तू सर्कस ही देखेगा और कहीं शेर को देख लिया तो चीख-पुकार मचा देगा। -मम्मी ने कहा। अगले दिन दीपू तय कार्यक्रम के अनुसार दोस्तों के साथ सर्कस देखने पहुंचा। वहां हाथी क्रिकेट खेल रहे थे। कुत्ते जोकर के सिर पर लगी रिंग को पार करते हुए नीचे कूद रहे थे। एक कुत्ता पीछे से आया और उसने जोकर को इतनी जोर से धक्का दिया कि जोकर लड़खड़ा गया। सबसे ज्यादा मजा तो तोतों के करतबों और ऊंट की फैशन परेड में आया। सर्कस खत्म हुआ तो दीपू को लगा कि अभी उसका मन नहीं भरा। एक बार और सर्कस देखना है। मम्मी ने कहा भी है। वह मम्मी-पापा के साथ दोबारा भी आएगा और अपने दोस्तों पर दो बार सर्कस देखने का रौब जमाएगा। घर लौटकर उसने मम्मी-पापा को जो कुछ देखा था ज्यों का त्यों सुना दिया। सुनाते-सुनाते वह खुद भी कूद-फांद करने लगता, जैसे सर्कस में शो कर रहो हो। मम्मी-पापा हंस-हंसकर दोहरे हुए जा रहे थे। दोपहर को जब दीपू स्कूल से लौटा तो उसने अपने छज्जे पर एक बड़ा सा नीला-पीला तोता बैठे देखा- अरे यह यहां कहां से आ गया। ऐसे तोते तो सर्कस में थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि करतब दिखाते-दिखाते यह महाशय वहां से उड़ लिए हों और सर्कस वाला इन्हें ढूंढ़ता हो। मगर इस बात का पता कैसे चले। दीपू ने मम्मी को आवाज दी। उन्हें तोते को दिखाया। तोता इतना सुंदर था कि मम्मी उसे देखती ही रह गईं। बोलीं-यह तो कोई विदेशी नस्ल का तोता लगता है। हमारे घर के सामने वाले नीम के पेड़ पर तो हरे तोते रहते हैं। दीपू ने तोते को पुचकार कर बुलाया तो वह नीचे उतर आया। मम्मी ने उसे अमरूद और हरी मिर्च खाने को दी। दीपू ने मम्मी से कहा- मम्मी, आप दरवाजे और खिड़की बंद कर दो। यह सर्कस का तोता है। इसे कल मैंने वहां देखा था। मैं सर्कस वालों को बुला लाता हूं। ध्यान रखना उड़ न जाए। दीपू दौड़ा-दौड़ा सर्कस वालों के पास पहुंचा। शो शुरू होने में बस एक ही घंटा बाकी था। दर्शकों को तोतों के कारनामे बहुत पसंद थे और तोतों का लीडर गायब था। दीपू ने उनको जाकर सारी बात बताई तो दो लोग उसके साथ आए। तोते को देखकर बहुत खुश हुए। कहा- बेटा तुमने आज बड़ी मुसीबत से बचा लिया। पता नहीं इसे क्या हुआ था कि यह वहां से उड़ गया। यह तो हमें बहुत प्यार करता है। हम खाना न दें तो खाता भी नहीं । उनमें से एक ने आवाज दी- विक्टर। तोते ने नजर उठाकर देखा और उड़कर उसके कंधे पर बैठ गया। जाते-जाते उन दोनों ने कहा-अभी सर्कस एक महीने यहां और है। तुम्हारा जब मन करे आकर देखना। दीपू को और क्या चाहिए था। वह तो बस खुश ही खुश था।

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