Saturday, 21 December 2013

गीतांश की टीशर्ट

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गीतूऽऽऽ..ओ गीतूऽऽऽ..। उठता क्यों नहीं? क्या आज फिर स्कूल के लिए लेट होना है? मां ने उसकी रजाई हटाते हुए कहा। उसने मां के गले में बाहें डालते हुए कहा, ‘प्लीज मां मुझे थोड़ी देर और सोने दो। देखो न कितनी ठंड है।’ ‘देखो गीतू, अब ज्यादा नखरे दिखाए तो तुम मुझसे मार खाओगे। क्या तुम्हें आज फिर स्कूल के लिए लेट होना है।’ मां ने आंखें तरेरते हुए कहा। मां की डांट खाकर गीतू पलंग से उठा और बाथरूम की ओर जाने लगा। अचानक वह रुका और मां की ओर देखते हुए बोला, ‘क्या मां आप मुझे गीतू-गीतू बुलाती हैं। यह तो लड़कियों वाला नाम है। आप मेरे पूरे नाम गीतांश से क्यों नहीं बुलातीं। मुझे गीतू नाम अच्छा नहीं लगता।’ मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘मैं तुझे प्यार से गीतू कहती हूं और मुझे गीतू कहना ही अच्छा लगता है, समझे। एक बात और, अब ज्यादा बहाने मत बनाओ, जल्दी से तैयार हो जाओ और नाश्ता करके स्कूल जाओ।’ इतना कहकर मां रसोई की ओर चल दीं। गीतू भी जल्दी से बाथरूम में घुस गया।
नाश्ते की मेज पर आते ही गीतू ने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और स्कूल के लिए चल दिया। छठी क्लास में पढ़ने वाला गीतू यानी गीतांश सबका लाडला था। घर पर मम्मी-पापा, तो स्कूल में दोस्त और टीचर्स भी उसे बेहद पसंद करते थे। गीतांश पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेलकूद में भी होशियार था। बस उसमें एक कमी थी कि वह जिद्दी था। जब वह किसी बात पर अड़ जाता तो किसी की एक नहीं सुनता। अपनी इस आदत के कारण उसे कई बार नुकसान भी हुआ था और कई बार बड़ों से डांट भी खानी पड़ी थी। लेकिन इसके बावजूद वह अपनी इस गंदी आदत को नहीं छोड़ रहा था।  रोज की तरह आज भी खेल के पीरियड में गीतांश अपने दोस्तों के साथ फुटबाल खेल रहा था। आज काफी समय बीत जाने के बाद भी उससे गोल नहीं हो पा रहा था। इससे उसे अपने पर गुस्सा आ रहा था। और इसी गुस्से में उसने खेलते-खेलते रोहित को टांग मार कर गिरा दिया। रोहित गिरा तो उसका घुटना छिल गया। मोहित ने रोहित को उठाते हुए गीतांश से कहा, ‘तुमने रोहित को जानबूझ कर टांग मारकर क्यों गिराया?’ इस पर गीतांश ने कहा, ‘मैंने कहां जान बूझकर गिराया। वह तो रोहित ही अचानक मेरे सामने आ गया था, जिससे वह गिर गया। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।’ लेकिन गीतांश की बात मानने को कोई तैयार नहीं था, क्योंकि सबने देखा था कि गीतांश ने जानबूझ कर रोहित को गिराया है। फिर भी गीतांश अपनी गलती मानने को तैयार ही नहीं था। जब बात ज्यादा बढ़ गई तो सबने मिलकर गीतांश की शिकायत स्पोर्ट्स टीचर से कर दी। इसका नतीजा यह निकला कि टीचर ने गीतांश को जमकर डांट पिलाते हुए सुधरने की नसीहत दी। इसके बाद सब बच्चे अपनी क्लास में चले गए। क्लास में आने के बाद गीतांश उदास था। इस वजह से बाद के पीरियड में भी उसका मन पढ़ाई में नहीं लगा। स्कूल की छुट्टी होने के बाद घर लौटते हुए भी वह सारे रास्ते उदास ही रहा। घर पहुंचते ही उसने अनमने ढंग से दरवाजे की बेल बजाई तो सामने पुष्कर मामा को खड़े देखकर उसके आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह खुशी के मारे उनसे लिपट गया। उसके पुष्कर मामा आस्ट्रेलिया रहते हैं। वह आज दोपहर ही दिल्ली पहुंचे थे। गीतांश को मामाजी ने बताया कि वे केवल एक दिन के लिए ही आए हैं। उन्हें ऑफिस का कुछ काम है। उन्हें कल सुबह ही वापस भी जाना है। गीतांश को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा कि मामाजी सिर्फ एक दिन के लिए ही आए हैं। मामाजी गीतांश के लिए कई गिफ्ट भी लेकर आए थे, लेकिन गीतांश को उनमें से टीशर्ट सबसे अच्छी लगी थी, क्योंकि उसमें उसके फेवरेट गेम फुटबाल ग्राउंड का प्रिंट छपा हुआ था। वह मामाजी के हाथ से टीशर्ट लगभग छीनते हुए दूसरे कमरे में भागा। वहां पहुंच उसने टीशर्ट को पहना और खूब खुश हुआ। कमरे से बाहर आकर उसने सबको टीशर्ट दिखाई। सबने टीशर्ट की खूब तारीफ की। लेकिन गीतांश को चैन कहा। वह तो अपने दोस्तों को भी मामाजी का यह खूबसूरत गिफ्ट दिखाना चाहता था। बस, वह बाहर की ओर भागा अपने दोस्तों से मिलने के लिए। उसके दोस्तों ने भी उसकी टीशर्ट की खूब तारीफ की। कुछ देर खेलने के बाद सब अपने-अपने घर चले गए। खेलने के बाद जब गीतांश घर लौटा तो मां ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, ‘गीतू, क्या तुम इतनी ठंड में स्वेटर के बिना बाहर गए थे।’ ‘हां मां,’ गीतू ने जबाव दिया। ‘तुमने ऐसा क्यों किया? ऐसे तो तुम्हें ठंड लग जाएगी और तुम बीमार पड़ जाओगे,’ मां ने गीतू को समझाते हुए कहा। ‘मां अगर मैं स्वेटर पहनकर जाता तो मेरे दोस्त मेरी नई टीशर्ट कैसे देखते।’ गीतांश ने कहा। मां ने गुस्से से कहा, ‘यह टीशर्ट पहनने का मौसम नहीं है। अगर पहननी है तो इसके ऊपर स्वेटर भी पहनो, वरना मत पहनो।’ मां की बात सुनकर गीतांश पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चला गया। अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद गीतांश जब दोस्तों के साथ खेलने के लिए गया तो अपनी नई टीशर्ट पहन कर ही गया, जिसके लिए उसे मां से डांट भी खानी पड़ी थी। मां ने उसे जब देखा तो कुछ कहा नहीं, बस चुप रही। गीतांश की तो जैसे मौज हो गई। उसे लगा मां तो अब उसे कुछ कह नहीं रही हैं। अब वह बिना डर के इस नई टीशर्ट को पहन सकता है। इसके बाद तीन-चार दिन तक गीतांश का यही रुटीन बना रहा। आज सुबह मास्टरजी ने बताया कि कल से स्कूल में एक सप्ताह की सर्दियों की छुट्टी है। यह सुन सब बच्चे खुशी से उछल पड़े। सबसे ज्यादा खुश गीतांश था। उसने सोचा कि अब तो वह पूरे दिन अपनी नई टीशर्ट पहनकर खेलेगा। घर आते ही गीतांश खेलने के लिए चला गया। देर शाम को जब वह घर लौटा तो उसे सिर और पेट में दर्द हो रहा था। वह अपने कमरे में चला गया। उसने रात को ठीक से खाना भी नहीं खाया। अगले दिन जब सुबह सोकर उठा तो उसका बदन तप रहा था और सिर में दर्द भी था। मां उसे डॉक्टर के पास लेकर गईं। डॉक्टर ने बताया कि गीतांश को ठंड लग गई है, इसलिए बुखार और सिर दर्द है। उन्होंने दवाई देते हुए उसे आराम करने को कहा और साथ ही गर्म कपड़े पहनने की सलाह भी दी। यह सुनकर गीतांश उदास हो गया। उसे मां की डांट अब समझ आ रही थी। वह मन में बार-बार यही सोच रहा था कि काश, उसने मां का कहना मान लिया होता तो वह आज न तो बीमार पड़ता और न ही छुट्टियों का मजा किरकिरा होता।

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