Sunday 22 December 2013

आज भी हैं माधुरी के लाखों दीवाने

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अपनी खूबसूरती और डांस के लिए मशहूर अदाकारा माधुरी दीक्षित नेने बहुत जल्दी विशाल भारद्वाज निर्मित और अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ में महमूदाबाद की बेगम पा रा के किरदार में नजर आने वाली हैं। इस फिल्म में जहां उन्होंने कथक डांस किया है, वहीं लखनऊ के मशहूर पान भी खूब चबाए हैं।
आपने कभी सोचा था कि एक दिन आप लोगों को अपने डांस से दीवाना बना देंगी?
उस वक्त इस तरह की बात सोचने की मेरी उम्र ही नहीं थी। मेरी दादी को तो मेरा डांस सीखना भी पसंद नहीं था। मेरी मां ने हम बहनों को डांस सिखवाना शुरू किया था। धीरे-धीरे मेरी रुचि डांस के साथ-साथ फिल्मों की तरफ भी बढ़ती गयी। हालांकिमैं तो साइंस विषय के साथ पढ़ाई करते हुए डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी। जब मैं 12वीं क्लास में थी, तभी मेरे डांसर होने की बात मेरी बहन की सहेली के माध्यम से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ तक पहुंच गयी। ‘राजश्री प्रोडक्शन’ वालों ने मुझे फिल्म ‘अबोध’ में अभिनय करने का मौका दे दिया। ‘घाघरा’ गीत से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिलीं?
गाने और डांस नंबर की बहुत तारीफ हुई। लोगों ने कहा कि उन्हें रणबीर के साथ मेरी छेड़खानी पसंद आई। ‘डेढ़ इश्किया’ के प्रोमो आ रहे हैं, इन्हें देख कर आपके बच्चों ने क्या कहा?
बच्चे अभी इतने बड़े नहीं हुए हैं कि ज्यादा कुछ कह सकें। दूसरी बात हमारे बच्चे फिल्म और टीवी बहुत कम देखते हैं। एक दिन टीवी पर ‘डेढ़ इश्किया’ का प्रोमो आ रहा था, उसी वक्त मेरे बच्चे बाहर से खेलते हुए घर के अंदर घुसे और प्रोमो में मुझे देख कर आश्चर्य से कहा- ‘मम्मी यह आप हैं? आप तो बहुत सुंदर लग रही हैं।’ आपके बच्चे क्या ज्यादा पसंद करते हैं?
वे तो हमेशा खेल में ही बिजी रहते हैं। सुना है बेगम पारा को पान खाने का बड़ा शौक है। लखनऊ में पान लगाने का अनोखा तरीका होता है.. तो क्या वह सब भी सीखने की जरूरत पड़ी?
हम बहुत विस्तार में तो इस पर नहीं गए, पर बेगम को पान खाने का शौक है। वह सीन में भी पान बनाते हुए नजर आती है। पान खाने में मजा आया, पर शूटिंग के दौरान यह भी एहसास हुआ कि हम हर सीन में पान नहीं खा सकते।  निर्देशक अभिषेक चौबे के साथ कैसा अनुभव रहा?
मैं तो ‘इश्किया’ देख कर ही उनके काम से प्रभावित हो गयी थी। ‘डेढ़ इश्किया’ में उनके साथ काम करते हुए मैंने काफी एंज्वॉय किया। वह सेट पर बहुत बारीकी से देखते हैं कि चरित्र किस तरह का है और कलाकार उसे कैसे पेश कर रहा है? और जब सेट पर निर्देशक की सलाह बार-बार मिले तो परफॉरमेंस निखर कर आती है।  विशाल भारद्वाज से सेट पर कब और क्या बातचीत हुई?
वह सेट पर कभी आते ही नहीं थे। एक दिन यूं ही दो-तीन मिनट के लिए आए थे। पूछा- सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है? और चले गए। लंबे अर्से बाद आपने ‘गुलाब गैंग’ में एक्शन किया है?
मैंने ‘गुलाब गैंग’ में रज्जो का चरित्र निभाया है, जो औरतों के प्रति हो रही हिंसा के खिलाफ लड़ती है। दूसरी हिंदी फिल्मों में हीरो एक्शन करता रहता है और हीरोइन देखती रहती है, पर इसमें हीरोइन ही एक्शन करती है। आपके लिए एक्शन करना कितना कठिन रहा?
मेर लिए डांस और एक्शन में सिर्फ इतना फर्क है कि एक्शन करते समय इस बात का ख्याल रखना पड़ता है कि चोट न लगे। एक्शन करते समय ‘टाइमिंग’ बहुत सही होनी चाहिए। सिनेमा में जो बदलाव आया है, उसे आप कितना सही मानती हैं?
मुझे बहुत ज्यादा बदलाव नजर नहीं आता। आज भी टिपिकल हीरो-हीरोइन वाली फिल्में बन रही हैं। नॉन टिपिकल हीरो-हीरोइन वाली फिल्में भी बन रही हैं। भविष्य की योजना?
प्रोडक्शन हाउस खोल लिया है। कुछ रचनात्मक काम करना है। कुछ प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। कुछ ठोस होगा तो उस पर चर्चा करेंगे।

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