नई दिल्ली। बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं पर शोध के दौरान मुझे एक बड़ी
सीख तब मिली, जब मैंने अपनी विशेषज्ञ डॉ. अनुजा गुप्ता से पूछा कि यौन शोषण
का शिकार होने के बाद भी बच्चे अपने मां-बाप से उसके बारे में बताने में
कठिनाई महसूस क्यों करते हैं? उनका जवाब था, 'क्या हम बच्चों की सुनते हैं?
क्या हम उनकी बात सुनने के लायक हैं?' और यह वास्तव में एक बड़ा सवाल है।
मेरा अपने बच्चों के साथ क्या संबंध है? क्या मैं अपने बच्चों से उनकी
परेशानियां पूछता हूं? क्या वास्तव में बच्चों की बात सुनता हूं? क्या मैं
जानता हूं कि मेरे बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है? क्या मैं उसके भय,
सपनों, उम्मीदों के बारे में जानता हूं? क्या वास्तव में मैं यह सब जानना
भी चाहता हूं। क्या मैं अपने बच्चों का दोस्त हूं?
यद्यपि पहली पीढ़ी की तुलना में हमारी पीढ़ी बच्चों के साथ अधिक बातचीत
करती है। या कम से कम हम ऐसा मानना पसंद करते हैं..फिर भी हममें से कितने
हैं जो अपने बच्चों के साथ मजबूती से जुड़े हैं? हममें से कितनों के पास एक
स्वस्थ संबंध के लिए जरूरी समय और सोच है? सच्चाई यह है कि अगर आपका अपने
बच्चों के साथ स्वस्थ संवाद, भरोसा और दोस्ती होगी, तभी आपके बच्चे निडर
होकर और सहजता से आपके साथ अपनी हर तरह की भावनाएं साझा कर पाएंगे।
स्पष्ट है कि हम यह प्रार्थना ही कर सकते हैं कि किसी भी बच्चे को यौन
शोषण की यातना न झेलनी पड़े, किंतु यदि यह होता है तो बच्चे में इतनी हिम्मत
होनी चाहिए कि वह यह आपसे बता सके। बातचीत और संवाद के माध्यम से हममें
अपनी खुशियां और भय साझा करने की क्षमता विकसित होती है। जब मां-बाप और
बच्चों के बीच संवाद का सिलसिला शुरू हो जाता है तो यह अनेक मुद्दों के हल
होने का प्रस्थान बिंदु बन जाता है। तब यदि आपके बच्चे के साथ कुछ गलत होता
है तो वह बेझिझक आपके पास आकर आपको पूरी बात बता देगा और तब आप उस समस्या
को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भरोसा खुली बातचीत का आधार होता
है। हमारे बच्चे बड़े ध्यान से हमारा अवलोकन करते हैं। उनके अंदर हमारी
प्रतिक्रिया को ताड़ने की सहज प्रवृत्तिहोती है। अगर हम चाहते हैं कि वे
हमसे अपनी बात कहें तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें यह पता हो कि
हम उन पर विश्वास करते हैं।
जी हां, केवल सुनते ही नहीं, विश्वास भी करते हैं। बच्चे बहुत समझदार
और संवेदनशील होते हैं। हमें उनमें यह आत्मविश्वास भरना होगा कि हम न केवल
उनकी बात गंभीरता से सुनते हैं, बल्कि उन पर भरोसा भी करते हैं।
एक और बड़ी सीख हरीश की मां पद्मा अय्यर से मिली। अगर कोई बच्चा यौन
शोषण के बारे में बताता है तो अकसर हमारे दिमाग में पहला विचार यही आता है
कि हम अपने ही परिवार के सदस्य के खिलाफ कैसे कार्रवाई करेंगे? परिवार की
इज्जत ही हमारी इज्जत है। यह मिट्टी में मिल जाएगी। लोग क्या कहेंगे। मेरे
बच्चे के साथ ऐसा हुआ तो इस बात को छिपाने में ही भलाई है। पद्मा की तरह
पहले तो हम इस प्रकार की घटना को स्वीकार ही नहीं पाते। और तब हम इसे
छिपाने की कोशिश करते हैं। चूंकि हम इसे छिपा लेते हैं, इसलिए इसके खिलाफ
कार्रवाई नहीं कर पाते।
इस दौरान हम दूसरों के बारे में, समाज के बारे में सोचते रहते हैं,
किंतु हम अपने खुद के बच्चे के बारे में भूल जाते हैं। चार, पांच या छह साल
का अबोध बच्चा, जो सदमे के सबसे भयावह दौर से गुजरा है, जो हमारे पास
इसलिए आया है कि हम उसके मां-बाप हैं और बच्चे के पास हमें अपना दुख सुनाने
के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है। ऐसे बच्चे की हमें चिंता नहीं होती।
हमारा बच्चा ही हमारी चिंता का प्रमुख विषय होना चाहिए, शेष सब पहलू
बाद में आते हैं। ऐसे समय हमें सोचना चाहिए कि बच्चे पर क्या गुजर रही है
और हमें बच्चे के लिए क्या करने की जरूरत है। बस यही। उपचार की इस
प्रक्रिया से गुजरने के बाद बच्चा पहले से भी मजबूत बन जाता है और वह सदमे
से उबर जाता है। हमें अपनी पूरी ताकत के साथ इसे संभव बनाना चाहिए। इसके
अलावा, बच्चों के यौन शोषण को जघन्य अपराध के रूप में देखना शुरू कर देना
चाहिए, क्योंकि यह वास्तव में एक जघन्य अपराध है। जब आपके घर में चोरी हो
जाती है, तो क्या आप हंगामा खड़ा नहीं कर देते, 'बताइए! कोई मेरे घर में
घुसकर सामान पर हाथ साफ कर गया। मेरे सारे जेवर चुरा ले गया। यह हो क्या
रहा है? सिक्योरिटी कुछ कर क्यों नहीं रही है?' किंतु अगर हमारे घर में
किसी बच्चे के साथ यौन शोषण हो जाता है तो हम इस पर पर्दा डालने की कोशिश
करते हैं। हम ऐसा क्यों करते हैं? क्या बच्चे ने कुछ गलत किया है? नहीं।
बल्कि इसका उल्टा है। गलत बच्चे के साथ हुआ है। फिर आप इस पर पर्दा क्यों
डालते हैं? आपको चिल्लाना चाहिए, 'कोई हिम्मत कैसे कर सकता है कि मेरे घर
में आकर बच्चे के साथ यह करे।' आपको हंगामा मचा देना चाहिए! उस आदमी को
सींखचों के भीतर होना चाहिए। कानून के रखवालों को भी इस मुद्दे को गंभीरता
से लेना चाहिए। और सबसे बड़ी बात यह कि बच्चे को यह अहसास होना चाहिए कि
उसकी सुरक्षा आपके लिए कितना मायने रखती है।
मैं पहले ही 'सत्यमेव जयते' में उल्लेख कर चुका हूं कि बाल यौन शोषण से
संबंधित बिल पर संसद काम कर रही है और यौन शोषण से अपने बच्चों की सुरक्षा
के लिए हम एक मजबूत, प्रभावी और व्यावहारिक कानून की उम्मीद कर सकते हैं।
यह कानून जल्द ही बनने की संभावना है। अंत में मैं आपको बताना चाहूंगा कि
सेक्सुअलिटी पर हमारा दिमाग जितना कुंद या बंद होगा उतना ही अधिक वह कुंठित
होगा और यह खुद को भद्दे तरीकों से अभिव्यक्त करेगा। मैं उम्मीद करता हूं
कि एक समाज के रूप में हम जल्द ही ऐसी अवस्था में पहुंच जाएंगे, जहां अपनी
सेक्सुअलिटी के लिए हममें भय नहीं होगा। बल्कि, हम इससे मर्यादित, खुले,
जिम्मेदार और स्वस्थ तरीके से निबट सकेंगे।
11 साल तक हुआ यौन शोषण मगर श्रीदेवी को देख 'वो' भूल गया सारे गम!
आमिर
खान ने सत्यमेव जयते के दूसरे एपीसोड में बाल यौन शोषण जैसे संवेदनशील
मुद्दे को उठाया। इस हाई वोल्टेज इमोशनल प्रोग्राम को दर्शकों का बहुत
अच्छा रिस्पॉन्स मिला।
एपीसोड के आखिर में श्रीदेवी के आने से माहौल
कुछ हल्का हुआ वरना पूरे प्रोग्राम में बहुत आंसू भरा भावुक और तनावपूर्ण
वातावरण रहा।यह पहला मौका था, जब श्रीदेवी बॉलीवुड के सुपरस्टार आमिर के
साथ पर्दे पर नजर आई।
48 वर्षीय अभिनेत्री कार्यक्रम में बाल यौन
शोषण के शिकार हरीश अय्यर से मिलने आई थी। हरीश ने आमिर को बताया कि एक
शख्स ने उनका 11 वर्षो तक यौन शोषण किया और जब भी उन्होंने यह बात अपनी मां
को बताने की कोशिश की, तो उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया गया।
हरीश
ने कहा उस वक्त सिर्फ उनका कुत्ता और विशेषकर श्रीदेवी अभिनीत फिल्में ही
उनका सहारा थीं। यही कारण था कि अभिनेत्री को कार्यक्रम में आमंत्रित किया
गया था।
अपनी पसंदीदा कलाकार से तोहफा पाने के बाद हरीश खासे उत्साहित नजर आए।
कार्यक्रम
में आमिर ने कई अन्य पीड़ितों से भी बात की। एक अन्य पीड़ित सिंडरेला
प्रकाश ने कहा कि जिस वक्त वह महज 12 वर्ष की थी, तब एक 55 वर्षीय शख्स ने
उनका यौन शोषण किया।
सर्वेक्षण के अनुसार यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों में से 53 प्रतिशत लड़के हैं।
शो
में पहले ही आमिर ने बताया कि पैरेंटस अपने बच्चे को यह एपीसोड दिखाना
चाहते हैं कि नहीं, यह तय कर लें क्योंकि वह बाल यौन शोषण पर चर्चा करेंगे।
आमिर नहीं चाहते थे कि बच्चे उनका प्रोग्राम मिस करें। इसीलिए, उन्होंने
उनके लिए एक वर्कशॉप रखा ताकि वह इस शोषण के प्रति जागरूक हो सकें।
उन्होंने बच्चों को सिखाया कि बड़ों का सम्मान न करें, उनके व्यवहार का
सम्मान करें।
आमिर का इंवोल्वमेंट इस शो में काफी प्रभावशाली
और देखने लायक था। उनकी एंकरिंग से उनका कॉन्फिडेंस झलक रहा था। उन्होंने
शो में यौन शोषण से पीड़ित हुए लोगों, मनोवैज्ञानिक, स्पीकर्स से बात करते
हुए रिसर्च आंकड़ों के साथ इस मुद्दे को गहराई से प्रस्तुत किया।
आमिर
अपने ब्रांड और स्टारडम के साथ लोगों को प्रोग्राम से जोड़ने में सफल रहे
हैं। वह इसमें सिर्फ समस्या को उठा ही नहीं रहे, इसके समाधान की भी बात कर
रहे हैं। एनजीओ को डोनेशन देने से लेकर वह सरकार से भी इसके लिए अपील कर
रहे हैं।
आमिर मार्केटिंग स्किल्स जानते हैं। वह दर्शकों को शो
देखने के लिए मोटिवेट ही नहीं करते बल्कि उनको इमोशंस का भारी डोज भी देते
हैं। आज के शो में आंसूओं को कुछ ज्यादा ही हाइलाइट करके दिखाया गया। आखिर
में जब श्रीदेवी मंच पर आईं तो वहां ऐसा लगा कि इस शो के स्क्रिप्ट में
सबकुछ पहले से तय है।