Sunday 17 November 2013

तेंदुलकर की शानदार विदाई को ब्रिटिश मीडिया ने सराहा

खेलों में इस तरह की विदाई कभी नहीं हुई। भारतीय क्रिकेट के आइकन सचिन तेंदुलकर की विदाई पर ब्रिटिश मीडिया की यह सर्वसम्मत राय थी। ब्रिटिश मीडिया ने अपना 200वां टेस्ट मैच खेलकर अलविदा कहने वाले तेंदुलकर की जमकर तारीफ की है। अपनी बल्लेबाजी से दुनिया के इस भाग Image Loading में भी काफी लोकप्रिय इस भारतीय बल्लेबाज की हमेशा विनम्र बने रहने और प्रशंसकों को चहेता बने रहने के लिए प्रशंसा की गयी है। तेंदुलकर के शनिवार को अपने विदाई के समय दिये गए भावनात्मक भाषण का जिक्र करते हुए डेली टेलीग्राफ ने लिखा है, खेलों में इस तरह की विदाई कभी नहीं देखी गयी। यह विदाई समारोह एक अरब तालियों और एक अरब आंसूओं को लाने के लिए बेहतरीन ढंग से तैयार किया गया था। अखबार ने लिखा है कि सचिन तेंदुलकर का अपने घरेलू मैदान पर आखिरी प्रदर्शन उनके बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक था। भले ही यह बल्ले से नहीं था लेकिन माइक पर उनका प्रदर्शन बेजोड़ रहा। समाचार पत्र ने इस 40 वर्षीय खिलाड़ी की अपने लाखों प्रशसंकों की भावनाओं पर पकड़ को उजागर किया है। इनमें से कुछ तो भाषण सुनकर रो पड़े। इस दौरान तेंदुलकर के लिए भी खुद की भावनाओं को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था। इसमें लिखा गया है, वानखेड़े स्टेडियम के इर्द गिर्द सभी आंखे नम थी। यह छोटे कद का इंसान घास पर खड़े होकर आखिरी बार अपने चहेतों से रू-ब-रू था। जब वह अपना बेजोड़ भाषण दे रहे थे तब भावनाओं का ज्वार हावी था। 24 साल तक 22 गज के दायरे में रही मेरी जिंदगी जैसे शब्दों का उपयोग करके उन्होंने चार चांद लगा दिये थे। समाचार पत्र ने तेंदुलकर की प्रशंसा करते हुए कहा कि भावनाओं का ज्वार उमड़ने के बावजूद उन्होंने बेहतरीन भाषण दिया और अपनी बात अच्छी तरह से रखी। अखबार के अनुसार, खूबसूरत। मुंबई में अविस्मरणीय शनिवार के दोपहर के भोजन के समय 32,000 दर्शकों की सचिन, सचिन की आवाज आसमान में गूंजने लगी। यह इतनी गगनभेदी थी कि इसे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सुना जा सकता था। समाचार पत्र ने लिखा है, इस उन्माद के बीच अनुमान लगाइए की कौन शांति की प्रतिमूर्ति बना था। वह माइक्रोफोन लेकर आग्रह कर रहा था कि मेरे सभी दोस्तो, शांत हो जाओ, मुझे बोलने दो। मैं ज्यादा भावुक हो जाउंगा। लग रहा था कि कहीं उनके आंसू न निकल जाए। इसके बजाय उन्होंने बहुत अच्छा भाषण दिया। अखबार ने लिखा है, वह जैसे ही पवेलियन की सीढ़ियां चढ़कर अंतर्ध्यान हुए, ऐसा लगा मानो भारत ने अपनी प्रेरणा, अपनी खुशी और आराम खो दिया हो। वे अपने सचिन के बिना जिंदगी की कल्पना कैसे कर सकते हैं। द गार्डियन ने लिखा है कि अपने 24 साल के करियर के दौरान उन्होंने क्रिकेटरों की एक पीढी को सिखाया कि खुद को कैसे संचालित करना चाहिए। अखबार ने लिखा है, खेल स्वयं थोड़ा अहमियत रखता है। अपने भावनात्मक विदाई भाषण में 40 वर्षीय तेंदुलकर ने जो कहा उसे पूरा देश महसूस कर रहा था...यह विश्वास करना मुश्किल है कि मेरी शानदार यात्रा समाप्त हो रही है। इसके अनुसार, स्टारडम, धन और सफलता के बावजूद तेंदुलकर हमेशा विनम्र, पेशेवर और जमीन से जुड़े रहे। एक ऐसा इंसान जिसने खुद को तराशने में घंटों व्यतीत किए।

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